VIDEO: प्यार के नाम पर खौफनाक खेल: सुनसान जगह पर प्रेमी जोड़े पर टूटी भीड़ की दरिंदगी

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हाइलाइट्स

  • मॉरल पुलिसिंग के नाम पर प्रेमी जोड़ों से मारपीट और जबरन उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही हैं
  • वायरल वीडियो में ग्रामीण इलाकों में भीड़ ने सुनसान जगह पर बैठे प्रेमी जोड़े के साथ किया बुरा बर्ताव
  • लड़के को बेरहमी से पीटा गया, लड़की का मोबाइल छीनकर उसे जबरन पत्थर पर बैठाया गया
  • सामाजिक दबाव और बदनामी के डर से कई पीड़ित परिवार शिकायत तक दर्ज नहीं कराते
  • विशेषज्ञों का कहना, युवाओं को सार्वजनिक स्थलों पर संयम रखना चाहिए, वहीं मॉरल पुलिसिंग पर कानून का डंडा जरूरी

मॉरल पुलिसिंग का नया चेहरा

हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें कुछ लोग सुनसान जगह पर बैठे एक प्रेमी जोड़े को पकड़कर मारपीट करते नजर आते हैं। लड़के को बुरी तरह पीटा गया, जबकि लड़की का हाथ पकड़कर उसे पत्थर पर जबरन बैठाया गया और उसका मोबाइल भी छीन लिया गया। यह दृश्य सिर्फ कानून और व्यवस्था पर सवाल नहीं उठाता, बल्कि इस बात को भी उजागर करता है कि मॉरल पुलिसिंग कैसे समाज में अपराध का नया चेहरा बनती जा रही है।

ग्रामीण इलाकों में बढ़ती घटनाएं

शहरों में ही नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब मॉरल पुलिसिंग के नाम पर इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं। गांव-देहात में दबंगई करने वाले समूह अक्सर प्रेमी जोड़ों को निशाना बनाते हैं। कई बार यह सिर्फ “इज्जत बचाने” का बहाना होता है, असल मकसद लड़की को डराकर उसके साथ यौन अपराध करना होता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि मॉरल पुलिसिंग के चलते कई लड़कियां मानसिक और शारीरिक शोषण की शिकार बन रही हैं, लेकिन बदनामी के डर से वह चुप रह जाती हैं।

वीडियो में दिखा भयावह सच

वायरल वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि चार-पांच लोगों का एक झुंड प्रेमी जोड़े के पास पहुंचता है। लड़के को गालियां देते हुए पीटना शुरू कर देता है। लड़की को पकड़कर जबरन पत्थर पर बैठाया जाता है। यह सब इतने सामान्य तरीके से किया जाता है मानो यह कोई अपराध न होकर “नैतिकता का पालन” हो।

लेकिन असलियत यह है कि मॉरल पुलिसिंग किसी भी रूप में अपराध ही है, और इससे समाज में कानून की धज्जियां उड़ती हैं।

कानून क्या कहता है?

भारतीय संविधान हर नागरिक को निजता और स्वतंत्रता का अधिकार देता है। किसी भी व्यक्ति को यह हक नहीं कि वह दूसरे के व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप करे। मॉरल पुलिसिंग न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है बल्कि यह भारतीय दंड संहिता के कई धाराओं के तहत गंभीर अपराध है।

कानून विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर किसी के साथ इस तरह का उत्पीड़न होता है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (महिला पर हमला या उसका शील भंग करने का प्रयास), धारा 506 (धमकी देना) और धारा 341 (गैरकानूनी तरीके से रोकना) लगाई जा सकती है।

युवाओं की जिम्मेदारी भी जरूरी

हालांकि यह भी सच है कि युवाओं को सार्वजनिक स्थानों या सुनसान इलाकों में इस तरह की गतिविधियों से बचना चाहिए। समाज की सोच बदलने में समय लगेगा, लेकिन इस बीच मॉरल पुलिसिंग को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियों को कम करने की जिम्मेदारी युवाओं की भी है।

इज्जत और सुरक्षा से बढ़कर कोई भी यौन सुख नहीं हो सकता। विशेषज्ञ कहते हैं कि पढ़ाई-लिखाई और करियर बनाने की उम्र में युवाओं को भटकने की बजाय जिम्मेदारी समझनी चाहिए।

सामाजिक दबाव और चुप्पी

कई बार पीड़ित परिवार शिकायत दर्ज कराने से कतराते हैं। ग्रामीण समाज में बदनामी का डर इतना बड़ा होता है कि मॉरल पुलिसिंग के शिकार लोग खामोश रह जाते हैं। इससे अपराधियों के हौसले और बुलंद हो जाते हैं।

महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर पीड़ित आवाज नहीं उठाएंगे तो ऐसी घटनाएं और बढ़ेंगी।

सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी

प्रशासन की जिम्मेदारी है कि ऐसे मामलों में तुरंत कार्रवाई करे। पुलिस को चाहिए कि हर वायरल वीडियो को संज्ञान में लेकर जांच करे और आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई करे। तभी समाज को यह संदेश जाएगा कि मॉरल पुलिसिंग कानूनन अपराध है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

विशेषज्ञों की राय

समाजशास्त्री मानते हैं कि मॉरल पुलिसिंग की जड़ें पितृसत्तात्मक मानसिकता में हैं। जहां पुरुष खुद को महिलाओं और युवाओं पर हक जताने वाला मानते हैं। जब तक यह मानसिकता नहीं बदलेगी, तब तक कानून और सजा का डर भी पूरी तरह कारगर नहीं होगा।

समाधान की राह

  1. कानून का सख्त पालन – हर घटना में तुरंत गिरफ्तारी और सजा।
  2. जनजागरूकता अभियान – ग्रामीण इलाकों में शिक्षा और समझ बढ़ाना।
  3. युवाओं की काउंसलिंग – उन्हें रिश्तों और जिम्मेदारियों का महत्व समझाना।
  4. महिला सुरक्षा तंत्र – लड़कियों को आत्मरक्षा और कानूनी अधिकारों की जानकारी देना।

मॉरल पुलिसिंग किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है। यह न तो संस्कृति की रक्षा है, न नैतिकता का पालन। बल्कि यह सीधा अपराध है, जो अक्सर महिलाओं के शोषण और उत्पीड़न में बदल जाता है। इस मानसिकता और प्रवृत्ति को खत्म करना कानून, प्रशासन, समाज और युवाओं – सभी की साझा जिम्मेदारी है।

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