शिक्षामित्रों के मानदेय पर हाईकोर्ट सख्त, 18 सितंबर को हाजिर होंगे अपर मुख्य सचिव?

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हाइलाइट्स

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों का सम्मानजनक मानदेय बढ़ाने के आदेश के पालन पर कड़ा रुख अपनाया।
  • 18 सितंबर को अनुपालन हलफनामा दाखिल नहीं करने पर उच्च अधिकारी न्यायालय में पेश होंगे।
  • राज्य सरकार बार-बार समय मांग रही है, कारण—लगभग 1.40 लाख शिक्षामित्रों का मामला।
  • कोर्ट ने पहले ही समिति गठित कर सम्मानजनक मानदेय तय करने का निर्देश दिया था।
  • आदेश का पालन न करने पर अवमानना कार्यवाही शुरू हो सकती है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश और पृष्ठभूमि

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर राज्य सरकार को स्पष्ट निर्देश दिया है कि शिक्षामित्रों का सम्मानजनक मानदेय बढ़ाने से जुड़े आदेश का पूर्ण अनुपालन किया जाए। अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि यदि 18 सितंबर तक अनुपालन हलफनामा दाखिल नहीं किया गया, तो बेसिक शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार, शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा, निदेशक प्रताप सिंह बघेल और सचिव सुरेंद्र कुमार तिवारी को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होना होगा।

यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की एकल पीठ ने वाराणसी निवासी विवेकानंद की अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याचिका में आरोप लगाया गया था कि अदालत के पिछले आदेश का पालन सरकार की ओर से नहीं किया गया।

शिक्षामित्रों का सम्मानजनक मानदेय: विवाद की जड़

राज्य सरकार के अनुसार, लगभग 1.40 लाख शिक्षामित्र इस व्यवस्था में कार्यरत हैं। ऐसे में शिक्षामित्रों का सम्मानजनक मानदेय बढ़ाने पर सरकार पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा। इसी कारण सरकार ने अदालत से बार-बार अतिरिक्त समय मांगा।

हालांकि, अदालत का मानना है कि यह मामला लंबे समय से लंबित है और सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। शिक्षामित्र वर्षों से मानदेय बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक ठोस निर्णय नहीं लिया गया।

याचिकाकर्ताओं की दलील

याचिकाकर्ता विवेकानंद और अन्य ने दलील दी कि 2023 में जितेंद्र कुमार भारती सहित 10 शिक्षामित्रों ने समान कार्य के लिए समान वेतन की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। अदालत ने समान वेतन की मांग तो खारिज कर दी थी, लेकिन यह स्वीकार किया कि शिक्षामित्रों का मानदेय न्यूनतम है और उनके लिए सम्मानजनक राशि तय की जानी चाहिए।

अदालत ने सरकार को निर्देश दिया था कि एक समिति का गठन कर शिक्षामित्रों का सम्मानजनक मानदेय सुनिश्चित किया जाए। लेकिन सरकार की ओर से समिति गठित करने और मानदेय बढ़ाने को लेकर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया।

कोर्ट की नाराजगी और अवमानना की तलवार

बीते गुरुवार को राज्य सरकार के स्थायी अधिवक्ता ने अदालत से एक माह का और समय मांगा। इस पर अदालत ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि आदेश का पालन नहीं किया गया तो अवमानना कार्यवाही अनिवार्य होगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर हलफनामा दाखिल नहीं किया गया, तो शीर्ष अधिकारी कोर्ट में उपस्थित रहेंगे।

इस प्रकार, अदालत ने यह साफ संकेत दिया कि अब शिक्षामित्रों का सम्मानजनक मानदेय बढ़ाने के मामले को टाला नहीं जा सकता।

क्यों महत्वपूर्ण है शिक्षामित्रों का सम्मानजनक मानदेय?

आर्थिक स्थिति

शिक्षामित्र लंबे समय से न्यूनतम मानदेय पर कार्य कर रहे हैं। कई बार उनकी आय इतनी कम होती है कि परिवार का भरण-पोषण कठिन हो जाता है। ऐसे में शिक्षामित्रों का सम्मानजनक मानदेय सुनिश्चित करना उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए जरूरी है।

शिक्षा व्यवस्था पर असर

कम मानदेय मिलने से शिक्षामित्रों में असंतोष बढ़ता है। इसका सीधा असर बच्चों की शिक्षा पर भी पड़ता है। यदि शिक्षामित्रों का सम्मानजनक मानदेय बढ़ाया जाता है, तो उनकी कार्यक्षमता और समर्पण भी बढ़ेगा।

सामाजिक सम्मान

शिक्षामित्र समाज में शिक्षा की रीढ़ माने जाते हैं। उन्हें उचित सम्मान और पारिश्रमिक मिलना उनके योगदान की मान्यता है। अदालत भी यही मानती है कि मानदेय इतना होना चाहिए जिससे वे गरिमा के साथ जीवन यापन कर सकें।

सरकार की दुविधा

सरकार की सबसे बड़ी चुनौती वित्तीय बोझ है। यदि सभी 1.40 लाख शिक्षामित्रों का मानदेय बढ़ाया जाता है, तो बजट पर अरबों रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। सरकार इस पर विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के साथ मंत्रणा कर रही है।

फिर भी, अदालत के आदेश की अनदेखी करना सरकार के लिए मुश्किल हो सकता है। ऐसे में सरकार को संतुलन बनाते हुए कोई ठोस समाधान निकालना होगा।

आगे की राह

18 सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई बेहद अहम होगी। यदि सरकार अनुपालन हलफनामा दाखिल नहीं करती है, तो शीर्ष अधिकारियों को अदालत में उपस्थित होना पड़ेगा। इसके बाद अवमानना की कार्यवाही शुरू हो सकती है।

इस मामले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले शिक्षामित्रों के साथ न्याय कब होगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह रुख स्पष्ट करता है कि अब टालमटोल की गुंजाइश नहीं बची है। राज्य सरकार को हर हाल में समिति की सिफारिशों के आधार पर शिक्षामित्रों का सम्मानजनक मानदेय तय करना होगा। अन्यथा न सिर्फ अवमानना कार्यवाही होगी बल्कि शिक्षा व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल उठेंगे।

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