हाइलाइट्स
- कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में दलित और हाशिए पर धकेले वर्ग के लिए आरक्षण लागू किया।
- मुख्यमंत्री बनने पर जमींदार द्वारा उनके परिवार पर किए गए अपमान की कहानी।
- आरक्षण लागू करने के बाद समाज के कुछ वर्गों द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए अपमानजनक नारे।
- लालू यादव द्वारा विधानसभा में कर्पूरी ठाकुर के साथ किए गए अपमान का किस्सा।
- जीवनभर सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष और जनता के उत्थान की दृढ़ इच्छा शक्ति।
मुख्यमंत्री बनने की यात्रा
भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर बिहार के पहले ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने दलित और पिछड़े वर्ग के उत्थान को अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य बनाया। जब वे पहली बार मुख्यमंत्री बने, तो उनके परिवार और गांव में खुशी का माहौल था। लेकिन खुशी का यह पल कष्ट और अपमान के बिना नहीं था।
कर्पूरी ठाकुर के पिता अपनी नियमित आदत के अनुसार जमींदार के घर हजामत करने गए थे। मुख्यमंत्री बनने के जश्न में देर होने की वजह से जमींदार नाराज हो गए और उनके पिता को बेंत से पीटा गया। यह घटना पूरे इलाके में आग की तरह फैल गई।
लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने अपने गुस्से को नियंत्रित किया। उन्होंने जमींदार के पास जाकर कहा, “लाइए आपकी दाढ़ी मैं बनाता हूं। मेरे पिता बूढ़े हो गए हैं। अगर आप आज्ञा दें तो मैं आपकी हजामत कर दूं।” यह उनकी सहनशीलता और आदर्श नेतृत्व का प्रतीक था।
आरक्षण लागू करने का साहस
कर्पूरी ठाकुर का सामाजिक न्याय के प्रति दृष्टिकोण उनकी नीतियों में स्पष्ट दिखाई देता है। वर्ष 1978 में उन्होंने बिहार में पिछड़े और हाशिए पर धकेले वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में 26 प्रतिशत आरक्षण लागू किया। यह निर्णय उन वर्गों के जीवन में बदलाव लाने वाला साबित हुआ।
हालांकि, इस निर्णय का विरोध भी हुआ। कुछ वर्गों ने उनके खिलाफ अपमानजनक नारे लगाए:
- “ये आरक्षण कहां से आई, कर्पूरिया की माई बियाई”
- “कर कर्पूरी, कर पूरा, छोड़ गद्दी, धर उस्तुरा।”
- “एमए बीए पास करेंगे, कर्पूरिया को बांस करेंगे।”
- “दिल्ली से चमड़ा भेजा संदेश”
- “कर्पूरी बाल (केश) बनावे, भैंस चरावे रामनरेश।”
यह दिखाता है कि सामाजिक न्याय के रास्ते में विरोध और अपमान हमेशा मौजूद रहते हैं, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने अपनी नीतियों की डोर कभी नहीं छोड़ी।
लालू यादव द्वारा किया गया अपमान
राजनीतिक गलियारे में यह किस्सा आज भी चर्चित है। जब कर्पूरी ठाकुर बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता थे, उनकी तबीयत ठीक नहीं थी और उन्हें बहस में भाग लेना था। गाड़ी में पेट्रोल नहीं होने की वजह से उन्होंने सहयोगी शिवनंदन पासवान के जरिए लालू यादव से सहायता मांगी।
लेकिन लालू यादव ने जीप देने से इनकार कर दिया और सुझाव दिया कि कर्पूरी ठाकुर खुद कार क्यों नहीं खरीद लेते। यह घटना उनके अपमान का उदाहरण है। फिर भी, कर्पूरी ठाकुर ने कभी व्यक्तिगत अपमान को अपनी सामाजिक न्याय की नीति पर हावी नहीं होने दिया।
सामाजिक न्याय के लिए जीवनभर संघर्ष
कर्पूरी ठाकुर ने न केवल सरकारी नीतियों के जरिए बल्कि अपने व्यक्तिगत साहस और दृष्टिकोण के जरिए भी समाज में बदलाव लाने की कोशिश की। उनके निर्णयों और कार्यों ने बिहार के दलित और पिछड़े वर्ग के जीवन में स्थायी प्रभाव डाला।
उनकी यह क्षमता कि वे अपमान और विरोध के बावजूद अपने आदर्शों पर कायम रहे, उन्हें एक विशिष्ट और आदर्श मुख्यमंत्री बनाती है।
कर्पूरी ठाकुर का जीवन और कार्यकाल यह दर्शाता है कि सामाजिक न्याय की डोर कभी भी विरोध और अपमान से टूट नहीं सकती। उनके साहस और धैर्य ने यह साबित किया कि नेता का मूल उद्देश्य केवल सत्ता नहीं, बल्कि जनता के उत्थान में योगदान होना चाहिए।
कर्पूरी ठाकुर ने बिहार की राजनीति में ऐसे आदर्श स्थापित किए, जिनका प्रभाव आज भी समाज में महसूस किया जाता है।