हाइलाइट्स
- मेजर मोहित शर्मा की बहादुरी से पाकिस्तानी सेना और ISI खौफ खाती थी।
- 21 मार्च 2009 को कुपवाड़ा में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हुए।
- अकेले 4 आतंकवादियों को मार गिराकर 2 साथियों की जान बचाई।
- परमवीर चक्र से सम्मानित, देश के वीर सपूत।
- स्वतंत्रता दिवस पर उनके बलिदान को याद कर रहा है पूरा देश।
मेजर मोहित शर्मा: देश का वह सपूत जिससे दुश्मन कांपते थे
परिचय
मेजर मोहित शर्मा, भारतीय सेना के उन वीर योद्धाओं में से एक थे, जिनकी कहानी साहस, बलिदान और अदम्य देशभक्ति से भरी हुई है। उनका नाम सुनकर न केवल देशवासी गर्व से सिर उठाते हैं, बल्कि सीमा पार बैठे दुश्मन भी थर्रा जाते हैं। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हम आपको उस जांबाज की गाथा सुनाने जा रहे हैं, जिसने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा की।
कौन थे मेजर मोहित शर्मा
मेजर मोहित शर्मा का जन्म 13 जनवरी 1978 को हुआ। 6 फुट 2 इंच लंबे, सशक्त काया वाले इस वीर जवान ने बचपन से ही सेना में जाने का सपना देखा था। इंडियन मिलिट्री अकादमी से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उन्होंने पैराशूट रेजिमेंट (स्पेशल फोर्स) में शामिल होकर कई अहम ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूरे किए। उनकी कार्यशैली और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें कम उम्र में ही भारतीय सेना के श्रेष्ठ अधिकारियों में शामिल कर दिया।
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI की नजर में
मेजर मोहित शर्मा का नाम पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के लिए भय का पर्याय था। उनकी रणनीति और साहसिक ऑपरेशनों ने कई बार दुश्मनों की योजनाओं को नाकाम किया। सूत्रों के मुताबिक, ISI के अधिकारियों और पाकिस्तानी सेना के जनरल्स तक को उनके नाम से घबराहट होती थी। सीमा पार से होने वाली घुसपैठ के प्रयास कई बार उनकी अगुवाई में नाकाम कर दिए गए।
शहीदी का दिन – 21 मार्च 2009
21 मार्च 2009 को जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में आतंकवादियों के खिलाफ एक विशेष अभियान चलाया जा रहा था। इस ऑपरेशन में मेजर मोहित शर्मा अपनी टीम का नेतृत्व कर रहे थे। दुश्मनों से घिरे होने के बावजूद उन्होंने पीछे हटने से इनकार किया।
जब गोलियों की बौछार हो रही थी, तब भी उन्होंने अदम्य साहस दिखाया और 4 आतंकवादियों को मार गिराया। उनके शरीर पर कई गोलियां लगीं, लेकिन उन्होंने अपने दो साथियों की जान बचाकर ही दम लिया। उसी दिन वे वीरगति को प्राप्त हुए।
मेजर मोहित शर्मा का बलिदान
मेजर मोहित शर्मा का बलिदान केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा बन गया। उनके इस अदम्य साहस को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया। यह सम्मान केवल उन्हीं को मिलता है जिन्होंने असाधारण वीरता और बलिदान का परिचय दिया हो।
परिवार का गर्व
मेजर मोहित शर्मा के परिवार ने हमेशा उनकी वीरता पर गर्व किया। उनकी पत्नी ने कहा था—
“मोहित सिर्फ मेरे पति नहीं, बल्कि पूरे देश के बेटे थे। उन्हें खोने का दर्द है, लेकिन गर्व उससे कहीं ज्यादा है।”
उनके माता-पिता आज भी युवाओं को देश सेवा के लिए प्रेरित करते हैं।
युवाओं के लिए प्रेरणा
मेजर मोहित शर्मा की कहानी केवल एक शौर्यगाथा नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शन है। आज भी भारतीय सेना के ट्रेनिंग कैम्प में उनका नाम गर्व से लिया जाता है। उनकी रणनीति, नेतृत्व क्षमता और दृढ़ निश्चय ने कई नए अधिकारियों को प्रेरित किया है।
स्वतंत्रता दिवस पर विशेष सम्मान
हर साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश उनके बलिदान को याद करता है। स्कूलों, कॉलेजों और सेना की परेड में उनका नाम आदर के साथ लिया जाता है। कुपवाड़ा में जिस स्थान पर वे शहीद हुए, वहां आज एक स्मारक बनाया गया है, जो आने वाली पीढ़ियों को उनके बलिदान की याद दिलाता है।
मेजर मोहित शर्मा की बहादुरी के किस्से
- गोपनीय ऑपरेशन: कई बार उन्होंने गुप्त रूप से आतंकियों के बीच जाकर जानकारी जुटाई।
- जिंदगी का खतरा उठाकर: साथियों की रक्षा करना उनका पहला कर्तव्य था।
- मानवीय चेहरा: केवल सैनिक ही नहीं, बल्कि गरीब और जरूरतमंदों की मदद करने वाले इंसान भी थे।
- निर्भीक नेतृत्व: कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी शांत और संयमित रहे।
मेजर मोहित शर्मा केवल भारतीय सेना के एक अधिकारी नहीं, बल्कि राष्ट्र के असली हीरो थे। उनकी बहादुरी, नेतृत्व और बलिदान ने न केवल देश की रक्षा की, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित किया।
आज, जब हम स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, हमें याद रखना चाहिए कि हमारी आज़ादी के पीछे ऐसे ही अनगिनत वीरों की कहानियाँ छुपी हैं।