सीएम योगी की तारीफ़ बनी सियासी तूफ़ान, सपा ने विधायक पूजा पाल को दिखाया बाहर का रास्ता

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हाइलाइट्स

  • समाजवादी पार्टी ने विधायक पूजा पाल को पार्टी से निष्कासित किया।
  • योगी सरकार की तारीफ़ करना पड़ा पूजा पाल को भारी।
  • चायल सीट से विधायक हैं पूजा पाल, पति की हत्या का मामला रहा सुर्खियों में।
  • पिछले एक महीने में सपा से चार विधायकों को निकाला गया।
  • पार्टी विरोधी गतिविधियों और अनुशासनहीनता को बताया कारण।

अनुशासनहीनता पर चला सपा का डंडा

उत्तर प्रदेश की सियासत में विपक्षी खेमे की सबसे बड़ी ताकत मानी जाने वाली समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर सख्त कदम उठाते हुए अपनी विधायक पूजा पाल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। यह कार्रवाई उस वक्त की गई जब मानसून सत्र के दौरान पूजा पाल ने विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी जीरो टॉलरेंस नीति की तारीफ़ कर दी।

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पूजा पाल को संबोधित एक पत्र में स्पष्ट लिखा कि उन्होंने पार्टी विरोधी गतिविधियां की हैं, जिसके चलते उन्हें पहले भी चेताया गया था, लेकिन बावजूद इसके उन्होंने अपना रवैया नहीं बदला। पत्र में लिखा गया — “आपके द्वारा पार्टी विरोधी एवं गंभीर अनुशासनहीनता की गई है, जिससे पार्टी को भारी नुकसान हुआ है। अतः आपको समाजवादी पार्टी से तत्काल प्रभाव से निष्कासित किया जाता है।”

पूजा पाल का राजनीतिक सफर और विवाद

चायल (कौशांबी) से विधायक पूजा पाल का नाम यूपी की राजनीति में लंबे समय से चर्चा में रहा है। उनके पति की हत्या का मामला प्रदेश की राजनीति में बड़ा मुद्दा बना था, और इसी मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें न्याय दिलाने का भरोसा दिया था। यही वजह रही कि उन्होंने विधानसभा में सार्वजनिक रूप से सीएम योगी की सराहना कर दी।

पूजा पाल का यह बयान समाजवादी पार्टी के नेतृत्व को नागवार गुज़रा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एक विपक्षी दल के विधायक का सत्ता पक्ष की खुलकर तारीफ़ करना, खासकर विधानसभा के पटल पर, पार्टी की साख और रणनीति पर सीधा असर डाल सकता है।

पार्टी में बगावत के संकेत

पिछले एक महीने में यह चौथा मौका है जब समाजवादी पार्टी ने अपने किसी विधायक को बर्खास्त किया है। इससे पहले मनोज पांडेय, अभय सिंह और राकेश प्रताप सिंह पर भी अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए पार्टी से बाहर कर दिया गया था। इन घटनाओं को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि सपा के भीतर असंतोष बढ़ रहा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि विधानसभा में विपक्ष की ताकत बनाए रखने के लिए पार्टी लाइन का पालन करना ज़रूरी होता है। लेकिन लगातार विधायकों का बागी रुख अख्तियार करना और पार्टी के खिलाफ बयान देना, नेतृत्व के लिए चुनौती बन गया है।

योगी सरकार की तारीफ़ पर विवाद

विधानसभा के मानसून सत्र में ‘विजन डॉक्यूमेंट 2047’ पर चर्चा के दौरान पूजा पाल ने कहा था — “मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मेरे पति की हत्या के मामले में न्याय दिलाया और माफिया जैसे अपराधियों को सजा दी।”

उनके इस बयान पर मंत्री संजय निषाद ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा — “जो दिल में होता है, वह बाहर आ ही जाता है, यह सच है।” इस बयान ने सियासी माहौल को और गर्मा दिया, और जल्द ही समाजवादी पार्टी ने कड़ा कदम उठा लिया।

अखिलेश यादव की सख्त नीति

अखिलेश यादव की नेतृत्व शैली पर नज़र डालें तो यह साफ है कि वे पार्टी अनुशासन के मामले में किसी तरह की ढिलाई नहीं देते। चाहे बड़े नेता हों या साधारण कार्यकर्ता, पार्टी लाइन से भटकने पर कार्रवाई तय है।
विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा दौर में समाजवादी पार्टी 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी है, और ऐसे में पार्टी के भीतर अनुशासन बनाए रखना उसकी प्राथमिकता है।

राजनीतिक असर और संभावनाएं

पूजा पाल को निष्कासन के बाद से राजनीतिक पंडित यह अनुमान लगा रहे हैं कि क्या वह भाजपा या किसी अन्य दल में शामिल होंगी। योगी सरकार की तारीफ़ और भाजपा के साथ उनके सकारात्मक संबंध को देखते हुए यह अटकल तेज हो गई है कि आने वाले दिनों में उनका अगला राजनीतिक ठिकाना सत्ता पक्ष हो सकता है।

दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी समर्थकों का मानना है कि यह कदम पार्टी की एकजुटता और मजबूती के लिए ज़रूरी था। उनका कहना है कि चुनावी राजनीति में व्यक्तिगत बयानबाज़ी से पार्टी की नीतियों को नुकसान पहुंचता है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में संदेश

पूजा पाल के निष्कासन का असर सिर्फ चायल या कौशांबी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह संदेश पूरे प्रदेश में जाएगा कि समाजवादी पार्टी नेतृत्व बगावत या अनुशासनहीनता को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगा।
यह कदम आने वाले समय में उन नेताओं के लिए चेतावनी हो सकता है जो पार्टी लाइन से हटकर बयान देने का साहस रखते हैं।

पूजा पाल के निष्कासन ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि समाजवादी पार्टी अपने अनुशासन और नीति पर कोई समझौता नहीं करेगी। योगी सरकार की तारीफ़ से शुरू हुआ विवाद एक राजनीतिक बर्खास्तगी में बदल गया, जो आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश की सियासत में नए समीकरण पैदा कर सकता है।

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