हाइलाइट्स
- कांवड़ियों का आतंक: साइड मिरर से कांवड़ टकराने पर मुस्लिम युवक को पीट डाला
- शिक्षक पत्नी को लेने जा रहे थे इस्लामुद्दीन, कार में बैठी थीं महिलाएं
- कांवड़ यात्रा के नाम पर सरेआम गुंडागर्दी, लाठी-डंडों से किया हमला
- पुलिस मौके पर पहुंची लेकिन आरोपियों पर कार्रवाई शून्य
- सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल, धार्मिक सौहार्द पर मंडराया खतरा
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसने न केवल कांवड़ियों का आतंक उजागर किया है, बल्कि राज्य की कानून व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। शिक्षक इस्लामुद्दीन अपनी पत्नी को स्कूल से लेने जा रहे थे, तभी मामूली सी बात पर कांवड़ यात्रा में शामिल कुछ युवकों ने उन्हें घेरकर बेरहमी से पीटा और उनकी कार को भी क्षतिग्रस्त कर दिया।
घटना का पूरा ब्यौरा
स्कूल से लौट रही थीं पत्नी, बीच रास्ते में हुआ हमला
यह घटना लखीमपुर के गोला इलाके की बताई जा रही है। पीड़ित इस्लामुद्दीन अपनी शिक्षक पत्नी को लेने स्कूल पहुंचे थे। स्कूल के पास की सड़क पर भारी संख्या में कांवड़ यात्रा चल रही थी। इसी दौरान, उनकी कार के साइड मिरर से एक कांवड़ टकरा गया। बस, इतनी सी बात पर कांवड़ियों ने गाड़ी रोक दी और गाली-गलौज शुरू कर दी।
कांवड़ियों का आतंक: बीच सड़क पर की गई मारपीट
देखते ही देखते भीड़ इकट्ठा हो गई और इस्लामुद्दीन को कार से खींचकर बाहर निकाला गया। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि लाठी-डंडों से लैस युवक, जिनके शरीर पर भगवा वस्त्र थे, इस्लामुद्दीन पर टूट पड़े। कार में बैठी महिला की चीखें भी उन्हें नहीं रोक पाईं।
वीडियो वायरल होने पर बढ़ा बवाल
सोशल मीडिया पर गूंजा ‘कांवड़ियों का आतंक’
घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर लोग इसे शेयर कर रहे हैं और सरकार से कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। कांवड़ियों का आतंक हैशटैग टॉप ट्रेंड करने लगा है। इस वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि किस तरह धर्म के नाम पर कानून को हाथ में लिया जा रहा है।
पुलिस की भूमिका पर उठे सवाल
पुलिस मौके पर तो पहुंची, लेकिन कांवड़ियों को रोकने के बजाय उन्हें शांत करने की कोशिश करती नजर आई। पीड़ित के अनुसार, न कोई गिरफ्तारी हुई और न ही कोई गंभीर कानूनी कार्रवाई। इससे स्थानीय मुस्लिम समुदाय में भय का माहौल बन गया है।
धर्म के नाम पर गुंडागर्दी: कौन देगा जवाब?
क्या कांवड़ यात्रा का मतलब कानून तोड़ना है?
हर साल सावन माह में शिवभक्तों की कांवड़ यात्रा होती है, जिसे एक धार्मिक परंपरा के रूप में देखा जाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस यात्रा की आड़ में कांवड़ियों का आतंक देखने को मिल रहा है। सड़कों पर जबरन कब्जा, लाउडस्पीकर से ध्वनि प्रदूषण और अब मारपीट जैसी घटनाएं आम होती जा रही हैं।
क्या प्रशासन मूक दर्शक बना रहेगा?
स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं। क्या सरकार जानबूझकर इस तरह की घटनाओं को नजरअंदाज कर रही है? या फिर बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं के डर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा?
पीड़ित परिवार की पीड़ा
“हमने कुछ गलत नहीं किया”: इस्लामुद्दीन
घटना के बाद पीड़ित इस्लामुद्दीन ने कहा, “मैं सिर्फ अपनी पत्नी को लेने गया था। साइड मिरर से हल्की सी टक्कर हो गई, पर मैंने माफी भी मांगी। फिर भी उन्होंने मुझ पर हमला किया। मेरी पत्नी कार में थीं, वो रोती रही, लेकिन किसी को दया नहीं आई।”
महिला सुरक्षा का क्या?
कार में महिला मौजूद होने के बावजूद कांवड़ियों ने हमला जारी रखा। यह साफ दर्शाता है कि अब महिला सुरक्षा का भी कोई मतलब नहीं रह गया जब कांवड़ियों का आतंक कानून से ऊपर नजर आने लगे।
क्या कहती है सरकार?
नेताओं की चुप्पी
इस संवेदनशील मुद्दे पर अभी तक न तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान आया है, और न ही किसी बड़े मंत्री ने इस घटना की निंदा की है। इससे अल्पसंख्यक समुदाय में आक्रोश फैलता जा रहा है।
क्या कोई कार्रवाई होगी?
पुलिस सूत्रों के अनुसार, “जांच की जा रही है, वीडियो फुटेज खंगाले जा रहे हैं।” लेकिन जनता का भरोसा अब खोता जा रहा है। सवाल यह है कि क्या इस तरह की घटनाओं को नजरअंदाज कर कांवड़ियों का आतंक को बढ़ावा दिया जा रहा है?
धार्मिक यात्रा बनाम कानून व्यवस्था
धार्मिक भावना और संविधान
कांवड़ यात्रा एक धार्मिक आयोजन हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि संविधान को ताक पर रख दिया जाए। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है जहां हर नागरिक को बराबरी का अधिकार है, फिर चाहे वह इस्लामुद्दीन हो या कोई और।
पुलिस की जवाबदेही तय होनी चाहिए
यदि कोई भीड़ कानून अपने हाथ में लेती है, तो पुलिस का कर्तव्य है उसे रोकना। यदि पुलिस ऐसा करने में असफल रहती है, तो उसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। वरना आने वाले दिनों में कांवड़ियों का आतंक और भी भयावह रूप ले सकता है।
लखीमपुर की घटना एक चेतावनी है कि यदि समय रहते प्रशासन और सरकार ने कार्रवाई नहीं की, तो धार्मिक आयोजनों के नाम पर भीड़तंत्र लोकतंत्र को निगल सकता है। एक मुस्लिम युवक को पीटना, सिर्फ इसलिए कि उसकी कार कांवड़ से टकरा गई – ये भारत के संवैधानिक मूल्यों पर हमला है। कांवड़ यात्रा श्रद्धा का प्रतीक है, परंतु जब वह भय का कारण बन जाए, तो उसका पुनर्मूल्यांकन जरूरी हो जाता है।