25% टैरिफ़ सिर्फ़ बहाना है… असली खेल कुछ और है! भारत-अमेरिका संबंधों में छिपा है बड़ा झटका?

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हाइलाइट्स

  • भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव ट्रंप की टैरिफ नीति से रिश्तों में दरार
  • ट्रंप ने भारत पर 25% टैरिफ लगाया, वहीं पाकिस्तान से ट्रेड डील की
  • भारत-रूस तेल सौदे पर अमेरिकी नाराजगी, पेनल्टी की चेतावनी
  • विशेषज्ञों का मानना: यह भारत की संप्रभुता पर दबाव डालने की रणनीति
  • पाक-अमेरिका तेल समझौते को इस्लामाबाद में कूटनीतिक जीत बताया जा रहा

ट्रंप की नई नीति, भारत के लिए नई चुनौती

2019 के ‘हाउडी मोदी’ और 2020 के ‘नमस्ते ट्रंप’ जैसे आयोजनों के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा था कि भारत और अमेरिका के रिश्ते इतिहास के सबसे बेहतर दौर में हैं। परंतु डोनाल्ड ट्रंप की सत्ता में वापसी के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं। भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव अब एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है, जब ट्रंप ने भारत पर 25 फ़ीसदी टैरिफ लागू कर दिया और पाकिस्तान से व्यापार समझौते की घोषणा कर दी।

ट्रंप की टैरिफ नीति: सिर्फ व्यापार या राजनीतिक दबाव?

भारत के लिए चेतावनी या व्यापारिक निर्णय?

डोनाल्ड ट्रंप का यह तर्क है कि अमेरिका में सस्ते विदेशी सामान आ रहे हैं, जबकि अमेरिकी उत्पादों पर अन्य देश भारी टैक्स लगाते हैं। इसी सोच के तहत उन्होंने भारत पर 25% व्यापार शुल्क लागू किया। लेकिन इस निर्णय के ठीक बाद पाकिस्तान के साथ व्यापार समझौते और तेल भंडार विकास की बात करना संकेत देता है कि भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव केवल व्यापारिक नहीं बल्कि रणनीतिक भी हो सकता है।

पाकिस्तान से सौदा और भारत से दूरी: दोहरा रवैया?

क्या ट्रंप की नजर भारत-रूस तेल सौदे पर है?

भारत ने रूस से सस्ते तेल की खरीद को प्राथमिकता दी है, जिससे अमेरिका नाखुश है। ट्रंप की तरफ से भारत को रूस से तेल खरीदने पर पेनल्टी की चेतावनी देना इसी नाराजगी की अभिव्यक्ति है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह चेतावनी भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव को और गहरा कर सकती है।

विशेषज्ञों की राय: भारत के विकल्प और रणनीति

शॉर्ट टर्म बनाम लॉन्ग टर्म इम्पैक्ट

आईसीआरआईईआर की प्रोफेसर शॉन रे के अनुसार, टैरिफ का शॉर्ट टर्म असर भारतीय निर्यातकों की आमदनी पर पड़ेगा, जबकि लॉन्ग टर्म में भारत को सप्लाई चेन डाइवर्सिफाई करनी होगी। कपड़े, दवाइयां और ऑटो पार्ट्स जैसे सेक्टर्स पर इसका सीधा प्रभाव दिखेगा।

मोदी सरकार की छवि पर असर?

व्यक्तिगत डिप्लोमेसी का उल्टा असर

‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ जैसे नारों के बाद ट्रंप का यह रवैया मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल खड़े करता है। पत्रकार पूर्णिमा जोशी कहती हैं कि ट्रंप ने बार-बार पाकिस्तान के साथ भारत की झड़पों में दखल देने की बात की, जिससे सरकार को संसद में सफाई देनी पड़ी।

क्या तेल ही सब कुछ है?

अमेरिका-पाकिस्तान तेल डील की हकीकत

‘इंडिपेंडेंट एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट’ के नरेंद्र तनेजा के अनुसार, अमेरिका की कोई सरकारी तेल कंपनी नहीं है, और जब तक डील की सटीक जानकारी सामने नहीं आती, इसे गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। उनका मानना है कि भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव की असली वजह भारत की स्वतंत्र विदेश नीति है।

पाकिस्तान में खुशी, भारत में चिंता

डिप्लोमैटिक लड़ाई भी जीतने का दावा

बीबीसी उर्दू के एडिटर आसिफ़ फारूकी के अनुसार, पाकिस्तान इस डील को अपनी राजनीतिक जीत के तौर पर देख रहा है। वहां यह दावा किया जा रहा है कि अब पाकिस्तान ने भारत को कूटनीतिक मोर्चे पर भी मात दे दी है। यह दावा भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव को और भड़काने वाला हो सकता है।

संस्थागत कूटनीति बनाम व्यक्तिगत संबंध

ट्रंप-मार्का कूटनीति से रिश्तों की अनदेखी?

लंदन स्थित पत्रकार ज़ुबैर अहमद कहते हैं कि मीडिया नेताओं की निजी दोस्ती को देशों के रिश्तों का पैमाना बना देता है, जो गलत है। बाइडन ने मोदी को ट्रंप से अधिक सम्मान दिया था, लेकिन अब ट्रंप की वापसी से यही संबंध ठंडे पड़ते दिख रहे हैं।

भारत के विकल्प क्या हैं?

रूस, चीन और वैकल्पिक ब्लॉक

भारत के पास रूस और चीन जैसे विकल्प हैं, लेकिन इनसे व्यापार करना अमेरिका को खटकता है। नरेंद्र तनेजा के अनुसार, अगर अमेरिका भारत को उसी तरह का डिस्काउंट देने लगे जैसे रूस देता है, तो भारत अमेरिकी तेल भी खरीदने को तैयार है। लेकिन फिलहाल यह संभव नहीं लगता।

 क्या यह अस्थायी दौर है?

भारत की विदेश नीति हमेशा से रणनीतिक स्वतंत्रता पर आधारित रही है। डोनाल्ड ट्रंप की नई व्यापार नीति और पाकिस्तान के साथ उनका सौदा दिखाता है कि भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव बढ़ता जा रहा है। लेकिन क्या यह केवल ट्रंप की शैली है या नई अमेरिकी विदेश नीति का संकेत?

विशेषज्ञों का मानना है कि यह दौर गुजर जाएगा, लेकिन भारत को अपनी नीतियों में स्पष्टता और रणनीतिक विकल्पों पर फोकस करना होगा। व्यक्तिगत संबंधों की बजाय संस्थागत कूटनीति ही आगे का रास्ता है

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