हाइलाइट्स
- अमेरिका भारत संबंध दशकों से चली आ रही इन संबंधों की कहानी में हर बार भारत ने अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी।
- 1971 में पाकिस्तान को हराकर भारत ने अमेरिकी दबाव को धता बताया और वैश्विक राजनीति में नया संतुलन स्थापित किया।
- 1998 के परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने आत्मनिर्भरता का रास्ता अपनाया।
- कोविड-19 के समय भारत की वैक्सीन कूटनीति ने अमेरिका को भी झुकने पर मजबूर कर दिया।
- डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां अब एक बार फिर अमेरिका भारत संबंध में तनाव का कारण बन रही हैं।
अमेरिका भारत संबंध: दोस्ती, धोखा और दबाव की सियासी पटकथा
कभी हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप जैसे हाई-प्रोफाइल इवेंट्स से दुनिया को ये संदेश देने की कोशिश हुई कि अमेरिका भारत संबंध अब “बेस्ट फ्रेंड्स फॉरएवर” बन चुके हैं। मगर जैसे ही लाभ-हानि का समीकरण बदला, रिश्तों के रंग भी बदल गए। डोनाल्ड ट्रंप, जो कभी नरेंद्र मोदी को टफ निगोशिएटर बताते थे, आज वही ट्रंप भारत पर 25% टैरिफ थोपने की धमकी दे रहे हैं।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। अमेरिका भारत संबंध हमेशा ही एक जटिल समीकरण के इर्द-गिर्द घूमते रहे हैं, जिसमें दोस्ती की बजाय स्वार्थ और कूटनीति हावी रही है।
इतिहास गवाह है: जब-जब अमेरिका ने भारत को धमकाया, मुंह की खाई
1965: गेहूं के बदले युद्ध रोकने की धमकी
भारत-चीन युद्ध के बाद जब भारत अकाल से जूझ रहा था, अमेरिका ने PL-480 स्कीम के तहत गेहूं भेजना शुरू किया। लेकिन 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने भारत को धमकी दी कि अगर युद्ध नहीं रोका तो गेहूं की सप्लाई बंद कर देंगे। तब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कहा, “बंद कर दीजिए गेहूं भेजना।” भारत झुका नहीं।
1971: अमेरिका-पाक-चीन गठजोड़ के खिलाफ अकेला भारत
इंदिरा गांधी के नेतृत्व में जब भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में हराया और बांग्लादेश का निर्माण हुआ, तब अमेरिका ने USS Enterprise को भारत के खिलाफ खड़ा किया। मगर रूस की रणनीतिक मदद से भारत ने अमेरिका की धमकियों को नकार दिया। ये अमेरिका भारत संबंध का एक ऐतिहासिक टर्निंग पॉइंट था।
तकनीकी शक्ति बनते भारत से खफा अमेरिका
1974 और 1998 के परमाणु परीक्षण: अमेरिकी प्रतिबंधों का जवाब आत्मनिर्भरता
भारत के पहले परमाणु परीक्षण (1974) और पोखरण-II (1998) के बाद अमेरिका ने भारत पर कई प्रतिबंध लगाए। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी ने स्पष्ट कर दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होगा। भारत ने अमेरिका की ‘Glenn संशोधन’ जैसी शर्तों को नकारते हुए आत्मनिर्भर तकनीकी विकास को चुना।
डिप्लोमेसी के नए दौर में भारत का कूटनीतिक दांव
2005: ऐतिहासिक परमाणु समझौता
2005 में अमेरिका ने अपने संविधान तक में संशोधन कर भारत के साथ असैनिक परमाणु समझौता किया, जबकि भारत NPT (न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफरेशन ट्रीटी) पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं था। ये अमेरिका भारत संबंध की मजबूती का प्रतीक माना गया।
2016: WTO में अमेरिका की हार
डब्ल्यूटीओ में भारत ने अमेरिका की एच-1B वीजा नीति को चुनौती दी और केस जीतकर अपने आईटी प्रोफेशनल्स के हितों की रक्षा की। अमेरिका की आर्थिक नीतियों को पहली बार खुलकर भारत ने चुनौती दी।
कोविड काल और वैक्सीन डिप्लोमेसी
कोविड-19 महामारी के समय अमेरिका ने वैक्सीन और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन जैसे ड्रग्स के निर्यात पर रोक लगाई। भारत ने डिप्लोमैटिक स्तर पर दबाव बनाते हुए अमेरिकी निर्णय बदलवाया। तब ट्रंप ने खुद कहा, “मोदी ने हमारी मदद की, वो महान नेता हैं।” ब्राजील के राष्ट्रपति ने मोदी की तुलना हनुमान से की।
2022-2024: रूस-भारत साझेदारी और अमेरिकी चिंता
भारत ने अमेरिकी दबाव के बावजूद रूस से तेल खरीदना जारी रखा। साथ ही रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम की खरीद को भी अंतिम रूप दिया। अमेरिका ने CAATSA कानून के तहत प्रतिबंधों की धमकी दी, मगर भारत टस से मस नहीं हुआ। अमेरिका भारत संबंध अब बराबरी की साझेदारी की ओर बढ़ चले थे।
2025: फिर एक बार ट्रंप की धमकी, लेकिन मोदी की चुप्पी में जवाब
अब डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर 25% टैरिफ की धमकी दी है, जो 7 अगस्त से लागू हो सकते हैं। भारत ने अब तक कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी है। मगर पीएम मोदी का रिकॉर्ड बताता है कि वे शब्दों से नहीं, काम से जवाब देना पसंद करते हैं।
मोदी की चुप्पी अमेरिकी सियासत के लिए असहज जरूर है, लेकिन ये भारत की रणनीतिक परिपक्वता का भी संकेत है। अमेरिका भारत संबंध अब उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं, जहां धमकियों का कोई असर नहीं होता।
दोस्ती नहीं, आत्मसम्मान है प्राथमिकता
अमेरिका भारत संबंध का इतिहास यही बताता है कि जब भी अमेरिका ने भारत को दबाने की कोशिश की है, भारत ने अपनी कूटनीति और आत्मबल से जवाब दिया है। भारत अब एक रणनीतिक महाशक्ति बन चुका है, जो किसी भी देश की शर्तों पर नहीं, अपने स्वाभिमान पर फैसले करता है।
डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेताओं की धमकियां अब भारत को नहीं डरातीं। अमेरिका भारत संबंध अब ‘गिव एंड टेक’ की राजनीति से निकलकर ‘इक्वल पार्टनरशिप’ की दिशा में बढ़ रहे हैं।