100 बलात्कारियों से पूछे सवाल – एक लड़की की खोज ने खोली इंसान की सबसे डरावनी सोच

Latest News

हाइलाइट्स

  • यौन शिक्षा की कमी आज भी भारत में बच्चों को नहीं दी जाती, जिससे बढ़ती है यौन हिंसा की प्रवृत्ति
  • 22 साल की उम्र में मधुमिता पांडे ने की जेल में बलात्कारी कैदियों से बातचीत
  • पीएचडी रिसर्च के लिए तिहाड़ जेल में 100 से अधिक यौन अपराधियों का इंटरव्यू
  • इंटरव्यू में पता चला – अपराधियों को नहीं होता अपने कृत्य का पछतावा
  • समाज में जागरूकता और खुली बातचीत की है ज़रूरत, तभी रुकेगी यौन हिंसा

एक अकेली लड़की और समाज के सबसे अंधेरे कोने की पड़ताल

भारत में यौन हिंसा की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं। टीवी, अखबार, सोशल मीडिया पर हर दिन बलात्कार, छेड़छाड़ या यौन उत्पीड़न की खबरें सुर्खियों में होती हैं। लेकिन क्या कभी किसी ने यह जानने की कोशिश की है कि इन घटनाओं के पीछे के अपराधियों की मानसिकता क्या होती है? वे लोग, जो यौन हिंसा जैसे जघन्य अपराध को अंजाम देते हैं, उनके दिमाग में उस वक्त क्या चल रहा होता है? यही सवाल एक 22 साल की लड़की को भीतर तक झकझोर गया।

मधुमिता पांडे: जिसने चुना सबसे कठिन रास्ता

मधुमिता पांडे, जो अब 26 साल की हैं, उन्होंने अपने पीएचडी प्रोजेक्ट के लिए एक ऐसा विषय चुना जिसे कोई आम शोधार्थी छूने की हिम्मत भी नहीं करता। उन्होंने दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद बलात्कार के आरोपियों से बातचीत करने का निर्णय लिया, ताकि यह समझा जा सके कि ऐसे अपराधों की जड़ें क्या हैं।

तीन साल की मेहनत में उन्होंने 100 से अधिक यौन अपराधियों का इंटरव्यू लिया। इनमें से कई दोषी थे, कुछ सजायाफ्ता और कुछ विचाराधीन कैदी। मधुमिता ने न केवल उनकी सोच को समझने की कोशिश की बल्कि उनके अपराध के पीछे की सामाजिक, मानसिक और सांस्कृतिक परतों को भी खोला।

इंटरव्यू में क्या पता चला?

अपराधियों को नहीं था पछतावा

मधुमिता पांडे के मुताबिक, ज़्यादातर कैदियों को अपने किए पर अफसोस तक नहीं था। कुछ का तो यह भी मानना था कि उन्होंने कोई बड़ा अपराध नहीं किया। एक कैदी ने तो यह तक कहा कि, “अगर लड़की ने मना किया था, तो वो मज़ा ही क्या?”

यह बयान न केवल शर्मनाक है बल्कि हमारे समाज में यौन शिक्षा की कमी की गहराई को दर्शाता है। जब किसी पुरुष को यह ही नहीं पता कि सहमति का क्या मतलब है, तब यौन हिंसा होना स्वाभाविक-सा लगने लगता है।

समाज की कुंठित सोच और पुरुष वर्चस्व

इन इंटरव्यूज़ से एक और महत्वपूर्ण पहलू सामने आया – पुरुषों को लगता है कि महिलाओं का शरीर उनका अधिकार है। वे इसे अपनी मर्दानगी का हिस्सा मानते हैं। मधुमिता बताती हैं कि कई अपराधियों ने यह स्वीकारा कि वे महिलाओं को कमतर समझते हैं और अपनी इच्छा थोपना एक ‘सामान्य’ प्रक्रिया मानते हैं।

यह सोच, यह मानसिकता कहीं न कहीं यौन शिक्षा की कमी का ही नतीजा है।

यौन शिक्षा की कमी क्यों है गंभीर मुद्दा?

स्कूलों में मौन, घरों में शर्म

भारत में आज भी यौन शिक्षा को वर्जना माना जाता है। स्कूलों में सेक्स, प्रजनन, सहमति, या रिश्तों की बात करना शिक्षक और छात्र दोनों के लिए असहज होता है। अभिभावक भी इन विषयों पर बच्चों से बात करने से कतराते हैं।

जब किशोर अवस्था में बच्चा इंटरनेट, पोर्नोग्राफी या गलत साथियों के जरिए अधूरी और ग़लत जानकारी हासिल करता है, तब वह अपने व्यवहार में भी उसी भ्रम और कुंठा को दर्शाता है। यही कारण है कि यौन शिक्षा की कमी भारत में यौन अपराधों की एक बड़ी वजह बन चुकी है।

जागरूकता ही है समाधान

यदि हम चाहते हैं कि हमारे समाज में यौन हिंसा रुके, तो सबसे पहले हमें बच्चों और युवाओं को यौन शिक्षा देनी होगी। यौन शिक्षा केवल सेक्स तक सीमित नहीं है, यह सम्मान, सहमति, रिश्तों, आत्म-सम्मान और सुरक्षा की भी शिक्षा है।

यह आवश्यक है कि स्कूलों में यौन शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए और माता-पिता भी खुलकर अपने बच्चों से इस विषय में बात करें।

क्या कहती हैं विशेषज्ञ?

मनोरोग विशेषज्ञों के अनुसार, जो व्यक्ति यौन अपराध करता है, वह केवल शरीर नहीं, बल्कि मन से भी बीमार होता है। यह बीमारी तब और गंभीर हो जाती है जब समाज उसे अपराध नहीं, मर्दानगी मानता है।

मधुमिता के शोध ने यह भी दर्शाया कि ज़्यादातर बलात्कारी ग्रामीण या शहरी गरीब तबके से थे, जिन्होंने कभी यौन शिक्षा के बारे में सुना तक नहीं था। कुछ तो यह भी नहीं जानते थे कि बलात्कार एक गंभीर अपराध है।

मधुमिता पांडे का संदेश

मधुमिता का मानना है कि शोध केवल अकादमिक दस्तावेज नहीं होते। वे समाज को बदलने का माध्यम बन सकते हैं। उनका कहना है:

“अगर हम यह जानना शुरू कर दें कि अपराधियों की सोच क्यों विकृत होती है, तो हम उसे वहीं रोक सकते हैं जहां वह जन्म लेती है – समाज में, घरों में, स्कूलों में।”

 समाज को आईना दिखाती रिसर्च

इस रिपोर्ट के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि यौन शिक्षा की कमी केवल एक शैक्षिक समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक समस्या है। जब तक बच्चे और युवा सही उम्र में सही जानकारी नहीं पाएंगे, तब तक वे खुद और दूसरों के लिए ख़तरनाक बन सकते हैं।

इसलिए आज समय की मांग है कि भारत में यौन शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाए, न केवल स्कूलों में, बल्कि घरों में भी। साथ ही, ऐसे शोध कार्यों को प्रोत्साहित किया जाए जो समाज के काले कोनों को उजागर कर सकें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *