हाइलाइट्स
- Salt Epidemic को लेकर ICMR‑NIE ने दी चेतावनी, शहरों में औसत नमक सेवन WHO सीमा से लगभग दोगुना
- हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ा
- प्रोसेस्ड फूड और पैकेट स्नैक्स अतिरिक्त सोडियम के गुप्त स्रोत
- कम‑सोडियम नमक और व्यवहार‑परिवर्तन अभियानों पर जोर
- पंजाब‑तेलंगाना में तीन‑वर्षीय सामुदायिक अध्ययन से नीति‑निर्माण को दिशा
नमक क्यों बन गया है ‘साइलेंट किलर’?
ICMR के राष्ट्रीय महामारी विज्ञान संस्थान (NIE) ने ताज़ा आँकड़ों में खुलासा किया कि भारतीयों का औसत दैनिक नमक सेवन 9.2 ग्राम तक पहुँच चुका है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की 5‑ग्राम सीमा से कहीं अधिक है. शोधकर्ताओं ने इसे Salt Epidemic कह कर चेतावनी दी है कि अगर रफ्तार नहीं रोकी गई तो गैर‑संचारी रोगों का बोझ बेलगाम हो जाएगा.
शहरी बनाम ग्रामीण अंतर
Salt Epidemic शहरों में ज़्यादा आक्रामक है. शहरी भारत में उपभोग 9.2 ग्राम प्रतिदिन है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह 5.6 ग्राम प्रतिदिन है. प्रोसेस्ड फूड, रेस्तराँ भोजन और त्वरित स्नैक्स शहरी परिवारों में अतिरिक्त सोडियम का मुख्य स्रोत हैं.
Salt Epidemic के स्वास्थ्य परिणाम
विशेषज्ञों के अनुसार, Salt Epidemic सीधे‑सीधे उच्च रक्तचाप से जुड़ी है. लिवमिंट की रिपोर्ट बताती है कि अत्यधिक नमक सेवन से कार्डियोवास्कुलर बीमारियों का जोखिम दोगुना तक बढ़ सकता है.
गुर्दों पर असर
अधिक सोडियम के कारण शरीर में पानी का संतुलन बिगड़ता है और किडनी पर दबाव बढ़ता है. डॉक्टरों का कहना है कि नियमित जांच और नमक सेवन घटाने से बीमारी की प्रगति रोकी जा सकती है.
ICMR‑NIE की रणनीति
हैदराबाद स्थित NIE ने तीन‑वर्षीय सामुदायिक अध्ययन शुरू किया है. लक्ष्य है पंजाब और तेलंगाना के परिवारों में लो‑सोडियम नमक तथा ‘वन पिंच एट अ टाइम’ अभियान के ज़रिये Salt Epidemic का मुकाबला करना.
‘वन पिंच एट अ टाइम’
इस पहल के तहत भोजन पकाते समय सामान्य नमक की मात्रा एक चुटकी कम करने को प्रोत्साहित किया जा रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कटौती साल‑भर में 1.5 किलोग्राम तक सोडियम बचा सकती है.
नीति‑सिफारिशें
इंसाइट्स ऑन इंडिया के नीति‑पत्र में सुझाव है कि पैकेटबंद खाद्य पदार्थों पर ‘सोडियम ट्रैफिक लाइट’ लेबल अनिवार्य किया जाए, ताकि उपभोक्ता Salt Epidemic के जोखिम को तुरंत समझ सकें.
उद्योग की प्रतिक्रिया
फूड प्रोसेसिंग कंपनियाँ रेसिपी सुधारने पर विचार कर रही हैं. एसोसिएशन के महासचिव राजीव अग्रवाल कहते हैं, ‘‘यदि सरकार टैक्स प्रोत्साहन दे तो Salt Epidemic से निपटने वाले उत्पाद तेजी से आ सकते हैं.’’
कम‑सोडियम नमक: समाधान या सावधानी?
इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, पोटैशियम‑समृद्ध नमक से सिस्टोलिक बीपी औसतन 7 mmHg और डायस्टोलिक 4 mmHg तक घटता है. हालांकि किडनी रोगियों को पोटैशियम अधिक होने का खतरा रहता है, इसलिए Salt Epidemic के संदर्भ में ऐसे नमक का प्रयोग डॉक्टर की सलाह से ही करें.
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: Salt Epidemic सिर्फ भारत तक सीमित नहीं
ऑस्ट्रेलिया से अर्जेंटीना तक कई देश Salt Epidemic से जूझ रहे हैं. हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के 2024 सर्वे में पाया गया कि वैश्विक औसत सोडियम सेवन 10.8 ग्राम प्रतिदिन है. ब्रिटेन ने 15 वर्ष की नीति‑कार्यवाही से सेवन 15% घटाया और स्ट्रोक मृत्यु‑दर में 42% गिरावट देखी. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत भी कड़े नियम बना कर यह मॉडल अपना सकता है.
घर में नमक घटाने के पाँच आसान उपाय
- खाना पकाते समय Salt Epidemic याद रखते हुए चखने से पहले नमक न डालें.
- टेबल से नमकदानी हटाएँ.
- अदरक‑लहसुन पाउडर, काली मिर्च व जड़ी‑बूटियों से स्वाद बढ़ाएँ.
- लेबल देखें—सिंगल सर्विंग में 400 mg से ज़्यादा सोडियम हो तो सावधान रहें.
- सप्ताह में एक दिन ‘लो‑सॉल्ट’ चुनौती लेकर परिवार सहित प्रगति ट्रैक करें.
केंद्र एवं राज्य सरकार की पहल
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ‘राष्ट्रीय नमक‑शकर रोकथाम मिशन’ पर काम कर रहा है. मसौदे में स्कूल कैन्टीनों में अधिक सोडियम वाले स्नैक्स पर रोक और विज्ञापनों में चेतावनी संदेश अनिवार्य हैं. आंध्र प्रदेश सरकार पहले ही एफएम रेडियो के माध्यम से Salt Epidemic के ख़िलाफ़ जागरूकता कार्यक्रम चला रही है. नीति‑निर्माताओं का अनुमान है कि बहुस्तरीय संपर्क और कठोर लेबलिंग मिलकर Salt Epidemic की तीव्रता घटाएँगे.
आगे का रास्ता
ICMR‑NIE का लक्ष्य अगले पाँच वर्षों में देश का औसत नमक सेवन 30% तक घटाना है. विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि Salt Epidemic पर समय रहते काबू पा लिया जाए तो हर साल हज़ारों दिल‑दिमाग संबंधी मौतें रोकी जा सकती हैं.
Salt Epidemic की चुनौती भले अदृश्य लगे, पर इसके नतीजे ठोस और जानलेवा हैं. व्यक्तिगत बदलाव और नीतिगत कार्रवाई, दोनों ही इस साइलेंट महामारी को रोकने की कुंजी हैं.