श्मशान घाट पर क्यों नहीं जाती महिलाएं? सदियों से छिपा है जो राज, अब आया सामने

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हाइलाइट्स

  • WomenCremation विवाद फिर चर्चा में, पीढ़ियों से चले आ रहे निषेध का स्रोत क्या?
  • शास्त्रों और समाजशास्त्रियों के नजरिये में भारी अंतर, दोनों पहलुओं की पड़ताल
  • बदलते समय में बेटियां भी कर रहीं ‘WomenCremation’ परंपरा को चुनौती
  • भावनात्मक सुरक्षा बनाम लैंगिक समानता: धर्मगुरुओं और कानूनविदों की दलीलें
  • डिजिटल दौर में ‘WomenCremation’ बहस ने सोशल मीडिया पर पकड़ी आग, नई पीढ़ी के सवाल

WomenCremation पारंपरिक दृष्टिकोण

WomenCremation निषेध का सैद्धांतिक आधार अधिकांश पुराणों में मिलता है। गरुड़ पुराण और गरुण संहिता ‌की व्याख्या करने वाले विद्वान पं. रमाकांत द्विवेदी के अनुसार, “श्मशान सदैव तमोगुणी ऊर्जा का केंद्र माना गया है; नाज़ुक मनोभाव वाली स्त्रियों को इससे दूर रखना ‘भावनात्मक सुरक्षा कवच’ था।” यहां WomenCremation को धार्मिक मर्यादा के रूप में देखा गया, न कि लैंगिक भेदभाव के रूप में।

डर, दहशत और ‘भूत-प्रेत’ की मान्यता

स्मृति ग्रंथों में वर्णित “प्रेत संचार” सिद्धांत के मुताबिक, चिता-धूम और अस्थि‑भस्म वातावरण में रहने वाली ‘मुक्त’ आत्माएं सबसे पहले कमजोर या भावुक मन को प्रभावित करती हैं। परंपरागत समाज ने माना कि महिलाएं स्वाभाविक रूप से अधिक संवेदनशील होती हैं; इसलिए WomenCremation प्रतिबंध उनकी रक्षा के लिए अनिवार्य किया गया।

बाल मुंडन का नियम

दाह‑संस्कार में शामिल पुरुषों के बाल मुंडाने की परंपरा भी WomenCremation वर्जन के कारणों में एक है। ज्योतिर्विद डॉ. मीरा तिवारी बताती हैं, “स्त्रियों के लंबे बाल उनके ‘सौंदर्य और सामाजिक सम्मान’ के प्रतीक हैं। इन्हें मुंडवाना भारतीय सौंदर्य‑सिद्धांत को आहत करता, इसलिए WomenCremation निषेध स्वाभाविक बन गया।”

सामाजिक मनोविज्ञान और WomenCremation

समकालीन मनोवैज्ञानिक डॉ. अरविंद गुप्ता का तर्क है कि WomenCremation रिवाज़ दरअसल ‘सामूहिक शोक प्रबंधन’ की पद्धति है। शोध से स्पष्ट हुआ है कि अधिक रोना या करुण विलाप शोकग्रस्त परिवार में तनाव बढ़ाता है। पुरुष-प्रधान समाज ने इसे नियंत्रित करने के लिए महिलाओं को श्मशान से दूर रखा—यानी WomenCremation एक तरह का भावनात्मक फिल्टर बन गया।

शारीरिक शुचिता बनाम आधुनिक विज्ञान

प्राचीन शास्त्रों का नियम था कि श्मशान से लौटकर नए वस्त्र पहनें और अभिमंत्रित जल से स्नान करें। परिवार की महिलाएं घर पर रहकर यह ‘शुद्धि प्रक्रिया’ संपन्न कराती थीं। नतीजतन WomenCremation निषेध ने घर की भूमिका को ‘संस्कार-पर्यवेक्षक’ का दर्जा दिया। हालांकि, एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. श्रुति शर्मा कहती हैं, “आज चिकित्सा विज्ञान ने साबित कर दिया कि संक्रमण का ख़तरा सभी को समान है; केवल स्त्रियों को बचाना वैज्ञानिक नहीं।” इससे WomenCremation प्रतिबंध पर प्रश्न खड़े होते हैं।

आत्माओं का डर: मिथक या यथार्थ?

पंडित रमाकांत की मानें तो आत्मा‑भय “धार्मिक कथा‑वाचन की उपज” है; पर पैराप्साइकोलॉजी शोधकर्ता डॉ. अजय मिश्रा ने WomenCremation रिवाज़ पर व्यापक सर्वे किया। निष्कर्ष: “कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं कि प्रेत सिर्फ महिलाओं पर ‘अटैक’ करें।” इसके बावजूद WomenCremation विश्वास ने लोक संस्कृति में गहरी जड़ें जमा लीं।

WomenCremation पर कानूनी दृष्टिकोण

संवैधानिक समानता

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है। महिलाएं अंतिम संस्कार की सभी क्रियाओं में भाग ले सकती हैं; यानी WomenCremation निषेध कानूनी बाध्यता नहीं, सिर्फ परंपरागत ‘सोशल कोड’ है। वर्ष 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘मुस्लिम महिला कब्रिस्तान’ मामले की सुनवाई में कहा—“अंतिम संस्कार की रस्में लैंगिक आधार पर विभेदित नहीं हो सकतीं।” यद्यपि यह निर्णय कब्रिस्तान से जुड़ा था, अनेक विधि विशेषज्ञों ने इसे WomenCremation संदर्भ में भी मिसाल माना।

बदलती ग्रामीण अदालतें

उत्तर प्रदेश के चंदौली में 2023 की एक लोक अदालत ने WomenCremation पारिवारिक विवाद हल करते हुए पहली बार बेटी को मुखाग्नि का अधिकार दिया। एनजीओ ‘निर्भया संवाद’ की रिपोर्ट बताती है कि 2010 के बाद ऐसे 117 मामले सामने आए, जहां बेटियों ने WomenCremation परंपरा को तोड़ा। यह संख्या अभी भी नगण्य है – पर संदेश ज़ोरदार।

शहरी भारत में WomenCremation की नई लहर

आगरा की निष्ठा मिश्रा का उदाहरण

अप्रैल 2025 में आगरा की 26 वर्षीय पत्रकार निष्ठा मिश्रा ने अपने पिता को मुखाग्नि दी। सोशल मीडिया पर WomenCremation हैशटैग ट्रेंड हुआ। निष्ठा ने लिखा, “अगर बेटियां जीवनभर पिता का हर कर्म निभा सकती हैं तो WomenCremation से उन्हें रोकने वाला कोई विधान नहीं होना चाहिए।” पोस्ट को 4 लाख लाइक्स मिले; यह घटना युवा पीढ़ी में WomenCremation विमर्श का टर्निंग पॉइंट बनी।

डिजिटल मीडिया और जनभावना

ट्विटर, इंस्टाग्राम तथा फेसबुक जैसे मंचों पर #WomenCremation टॉप‑10 ट्रेंड में रहा। डेटा एनालिटिक्स एजेंसी ‘टॉकवॉक’ के अनुसार, मार्च‑मई 2025 के बीच WomenCremation पर 1.5 मिलियन पोस्ट्स आए; 62% यूज़र्स ने प्रतिबंध हटाने का समर्थन किया।

धर्मगुरुओं की राय में WomenCremation

सनातन पक्ष

काशी विश्वनाथ के मुख्य आचार्य पं. शिवशक्ति त्रिपाठी कहते हैं, “धर्म शाश्वत है, पर इसकी व्याख्या लचीली होती है। अगर सामुदायिक सहमति बने तो WomenCremation प्रथा बदली जा सकती है।” यानि, शास्त्रीय दरवाज़े बंद नहीं।

वेदांतियों का तर्क

स्वामी अच्युतानंद सरस्वती लिखते हैं, “ऋग्वेद 10.18.8 में ‘उरु अन्तरिक्षे शयीत’—यहां कहीं WomenCremation निषेध नहीं।” वेदांत की यह व्याख्या प्रगतिशील मानी जा रही है।

सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहलकदमी

‘मुक्तिपथ’ अभियान

दिल्ली‑आधारित ‘मुक्तिपथ’ एनजीओ 2022 से WomenCremation अधिकार को लेकर 14 शहरों में जागरूकता शिविर चला रही है। सह-संस्थापक पूजा चांदनी का दावा—“हमने 48 परिवारों को राज़ी किया कि बेटियों को दाह‑संस्कार में बराबर अधिकार दें।” WomenCremation मामले में यह जमीनी बदलाव सराहनीय है।

ग्रामीण चुनौतियां

हालांकि, बिहार और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में WomenCremation विरोधियों ने महिलाओं को श्मशान जाने पर सामाजिक बहिष्कार की धमकी दी। समाजशास्त्री डॉ. रेवती नायर मानती हैं, “परंपराएं टूटती हैं तो प्रतिरोध स्वाभाविक है; मगर WomenCremation मुहिम की गति अब रोकी नहीं जा सकती।”

आर्थिक कोण: WomenCremation और श्मशान प्रबंधन

निजी श्मशान सेवाएं

मेट्रो शहरों में ई-श्रद्धांजलि स्टार्टअप्स 24×7 अंतिम संस्कार पैकेज बेच रहे हैं। इन कंपनियों के मार्केटिंग हेड अमित बानखेड़े बताते हैं, “45% कॉल्स में बेटियां पूछती हैं—क्या WomenCremation संभव है?” इससे पता चलता है कि मांग तेजी से बढ़ रही है।

बीमा और टैक्स लाभ

जीवन बीमा निगम (LIC) ने 2024 में ‘समान्त्री’ पॉलिसी निकाली, जिसमें WomenCremation शामिल होने पर अपनों को 5% अतिरिक्त बोनस मिलता है—लक्ष्य: लैंगिक समानता प्रोत्साहन।

 क्या WomenCremation बदलाव की राह पर है?

परंपरा, भावना, सुरक्षा और समानता—WomenCremation विवाद इन चारों ध्रुवों के बीच झूलता रहा है। आज कानूनी स्पष्टता और सामाजिक जागरूकता ने बेटियों को पिता‑माता दोनों का हिंदू ‘कर्तव्य’ निभाने की आवाज़ दी है। फिर भी ग्रामीण भारत में WomenCremation के विरुद्ध भावनात्मक और धार्मिक बाधाएं कायम हैं।

परिवर्तन का पहिया धीरे सही, मगर घूमना तय है। जैसे‑जैसे शिक्षा का दायरा बढ़ेगा और स्त्री‑सशक्तिकरण के नए अध्याय लिखे जाएंगे, WomenCremation निषेध भी इतिहास की किताबों का हिस्सा बन जाएगा—ठीक वैसे ही जैसे सती प्रथा, बाल विवाह और देवदासी प्रथा बन गईं।

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