हाइलाइट्स
- Polyandry Tradition: सिरमौर जिले में दो सगे भाइयों ने समुदाय की सदियों पुरानी परंपरा के तहत एक ही युवती से विवाह किया
- हाटी समाज में “उजला पक्ष” के नाम से जानी जाने वाली यह Polyandry Tradition अब कम दिखाई देती, लेकिन ताज़ा मामले से फिर चर्चा में
- दोनों भाइयों में एक विदेश में नौकरी करता है और दूसरा सरकारी सेवा में, दोनों परिवारों की पूर्ण सहमति से Polyandry Tradition का निर्वाह
- कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि संविधान के तहत “एक पत्नी कानून” लागू है, फिर भी पहाड़ी इलाकों की कुछ खास जातीय परंपराएँ Polyandry Tradition को जीवित रखे हुए हैं
- सामाजिक वैज्ञानिकों का कहना है कि संसाधनों की कमी और ज़मीन के बँटवारे से बचने के आर्थिक कारणों ने कभी Polyandry Tradition को जन्म दिया
प्राचीन पहाड़ी समाज में Polyandry Tradition की जड़ें
उत्तर भारतीय हिमालयी बेल्ट में रहने वाले कई समुदायों में Polyandry Tradition का इतिहास बेहद पुराना है। आदिकाल में दुर्गम पर्वतीय भूभाग, सीमित कृषि भूमि और कठोर जलवायु ने परिवारों को ऐसा सामाजिक ढाँचा विकसित करने पर मजबूर किया जहाँ एक ही महिला के साथ कई भाइयों का विवाह संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण का साधन बना। यही कारण है कि तिब्बत, लाहौल‑स्पीति, हरकीदून व सिरमौर जैसे क्षेत्रों में Polyandry Tradition अलग‑अलग नामों से प्रचलित रही।
‘उजला पक्ष’—हाटी समाज का विशिष्ट रूप
हाटी समुदाय, जो गिरि व तोन्स नदियों के बीच बसता है, अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान के लिए जाना जाता है। यहाँ Polyandry Tradition को ‘उजला पक्ष’ कहा जाता है, जिसमें दो या उससे अधिक भाई एक ही स्त्री को पत्नी मानते हैं। स्थानीय बुज़ुर्ग बताते हैं कि “उजला” का अर्थ है साझा‑पन और आपसी उजाला; यानी परिवार का वैभव संयुक्त ही चमके। संसाधन‑केंद्रित इस रीत के पीछे मूल तर्क यह था कि खेती की छोटी‑छोटी पट्टियों का विभाजन रोका जा सके।
वर्तमान घटना—शिक्षित युवाओं ने निभाई पुरानी परंपरा
सिरमौर के निचली शिलाई क्षेत्र में रहने वाले दो शिक्षित भाइयों—27‑वर्षीय अरुण (विदेश में आईटी इंजीनियर) और 25‑वर्षीय तरुण (राज्य लोक अभियोजन विभाग)—ने अपनी 23‑वर्षीय बचपन की मित्र रितिका से सामूहिक रूप से विवाह किया। इस समारोह में न सिर्फ़ हाटी बल्कि आसपास के गैर‑हाटी रिश्तेदार भी शामिल हुए और उन्होंने Polyandry Tradition को अपनी आँखों के सामने पुनर्जीवित होते देखा।
क़ानूनी और संवैधानिक पेच—कहाँ खड़ी है Polyandry Tradition?
भारतीय दंड संहिता की धारा 494 बहुविवाह को दंडनीय अपराध मानती है। हालाँकि जनजातीय आबादियाँ अनुसूचित क्षेत्र संरक्षण कानूनों के कारण कभी‑कभी अलग व्यवहार प्राप्त करती हैं। हिमाचल हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील राकेश चौहान के अनुसार, “जहाँ Polyandry Tradition स्थानीय रीतियों में सुरक्षित रही है, वहीं विवाह पंजीकरण की आधुनिक बाध्यता इसे कानूनी चुनौती देती है।” कानूनी असमंजस के कारण अधिकांश ऐसे विवाह ग्राम सभा के लेखे‑जोखे तक सीमित रहते हैं।
महिला अधिकारों और उत्तराधिकार का सवाल
स्त्री अधिकार कार्यकर्ता मीनाक्षी ठाकुर कहती हैं, “Polyandry Tradition में महिला पर दोहरी‑तीहरी ज़िम्मेदारियाँ आ जाती हैं। उत्तराधिकार कानून में उसका और बच्चों का दर्जा अस्पष्ट रहता है।” हालांकि हाटी समाज के प्रबुद्ध लोग तर्क देते हैं कि महिला की सहमति सर्वोपरि है और संयुक्त परिवार रोज़मर्रा का बोझ बाँटता है।
सुप्रीम कोर्ट की दृष्टि
सुप्रीम कोर्ट ने 2011 के ‘सुरेश बनाम राज्य’ प्रकरण में यह कहा था कि “सामाजिक प्रथाएँ यदि मूल अधिकारों का उल्लंघन न करें तो अदालतें उदार दृष्टिकोण रख सकती हैं।” विशेषज्ञ मानते हैं कि Polyandry Tradition यदि वयस्कों की सहमति से है और किसी प्रकार का शोषण नहीं है, तो इसे “समानता” के चश्मे से देखा जा सकता है, बशर्ते महिला के उत्तराधिकार व गरिमा की गारंटी हो।
समाजशास्त्रीय विश्लेषण—क्या बदलता भारत छोड़ देगा Polyandry Tradition को पीछे?
भारतीय समाज 21वीं सदी में तीव्र शहरीकरण, डिजिटल शिक्षा और रोज़गार के नए अवसरों से गुजर रहा है। ऐसे में Polyandry Tradition जैसी परंपराएँ तेजी से कम हो रही हैं। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग की प्रोफेसर डॉ. उर्मिला कंवर बताती हैं, “महिलाएँ अब स्वतंत्र आर्थिक पहचान बना रही हैं। व्यक्तिगत पसंद के विवाह बढ़ रहे हैं। इसलिए संसाधन‑संरक्षण वाला मूल तर्क कमज़ोर पड़ता दिख रहा है।”
आर्थिक कारक—भूमि विभाजन की कड़वी सच्चाई
हिमालयी राज्यों में एक खेत प्रायः पीढ़ी दर पीढ़ी सिमटकर ‘कुल्हियों’ में बदल जाता है। Polyandry Tradition ने कभी इस विखंडन को रोका। सिरमौर के किसान संगठन के अध्यक्ष मोहन चौहान का कहना है, “यदि दो भाइयों का खेत पाँच‑पाँच बीघा है और दोनों अलग‑अलग परिवार बसाएँगे तो खेती घाटे का सौदा बन सकती है। Polyandry Tradition जहाँ-तहाँ अभी भी इसी चिंता से जुड़ी है।”
बदलती कृषि और पर्यटन—नई संभावनाएँ
हालिया सालों में सेब, कीवी जैसी नक़दी फ़सलों और साहसिक पर्यटन ने युवाओं को वैकल्पिक आय दी है। इससे Polyandry Tradition का आर्थिक दबाव घटा है। फिर भी सीमित भूमि और दूरस्थ भूभाग वाले गाँवों में सामूहिक विवाह की सोच पूरी तरह नदारद नहीं हुई।
पीढ़ियों का नज़रिया—परंपरा बनाम आधुनिकता
युवाओं की नई सोच
सिरमौर के इसी हाटी क्षेत्र के 21‑वर्षीय कॉलेज छात्र मयंक ने कहा, “हमने Polyandry Tradition सुनी है, पर शहरों में पढ़ने‑लिखने के बाद यह हमें अप्रासंगिक लगती है।” दूसरी ओर, 35‑वर्षीय स्थानीय बैंक कर्मी सुरेश का तर्क है, “परंपरा गलत या सही नहीं, वह परिस्थिति‑जन्य समाधान थी। आज भी कुछ परिवार इसे सम्मानजनक मानते हैं।”
बुज़ुर्गों की यादें
75‑वर्षीय बुज़ुर्ग देवी सिंह याद करते हैं, “हमारे दादा‑परदादा ने भी Polyandry Tradition निभाई थी। तब दूर‑दराज़ स्कूल नहीं थे, सड़कें नहीं थीं। आज हालात बदल गए हैं, पर रीति को बुरा कहना उचित नहीं।”
स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक पहलू—तीन व्यक्तियों का एक दांपत्य
मनोचिकित्सक डॉ. संजय शर्मा कहते हैं कि Polyandry Tradition में स्नेह का त्रिकोण जटिल हो सकता है। “रिश्तों का स्पष्ट संवाद, व्यक्तिगत सीमाएँ और समय का संतुलन ज़रूरी है।” महिलाओं के स्वास्थ्य पर शोध बताता है कि नियमित चिकित्सा सुविधा की उपलब्धता रिश्तों को सुरक्षित बनाती है।
बच्चों की पहचान और सामाजिक स्वीकार्यता
ग्रामीण समाज में जन्म प्रमाणपत्र की नई अनिवार्यता ने Polyandry Tradition में जन्मे बच्चों की ‘पिता’ पहचान को टेढ़ा सवाल बना दिया है। शिक्षा विभाग के अधिकारी बताते हैं कि अभिभावक‑नाम के कॉलम में अब ‘संयुक्त पिता’ लिखने के उदाहरण मिलने लगे हैं, जिन्हें प्रशासनिक स्तर पर समायोजित करना पड़ता है।
धर्म और आस्था का कोण
हाटी समाज बौद्ध‑हिन्दू सम्मिश्र आस्थाओं का पालन करता है। अधिकांश स्थानीय देवी‑देवता इस Polyandry Tradition को निषिद्ध नहीं मानते। विवाह से पहले गोत्र और कुल‑देवी पूजा सामूहिक रूप से होती है ताकि धार्मिक मान्यता सुनिश्चित हो।
परंपरा का पुनर्मूल्यांकन
सिरमौर की इस घटना ने एक बार फिर दिखाया है कि Polyandry Tradition सिर्फ़ इतिहास की किताबों में नहीं, जीवित सामाजिक प्रयोगशाला में विद्यमान है। क़ानून, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान और संस्कृति—चारों मोर्चों पर सवाल खड़े हैं। क्या ऐसे विवाहों को कानूनी छूट मिले? क्या महिला व बच्चों के अधिकारों की स्पष्ट नीति बने? जब तक इन प्रश्नों पर ठोस विमर्श नहीं होगा, Polyandry Tradition पहाड़ी समाज में कभी‑कभार फूट पड़ने वाली धारा की तरह बहती रहेगी—शांत, पर गहरी।