22 की उम्र में पहुंची तिहाड़, 100 बलात्कारी कैदियों से पूछे ऐसे सवाल कि सुनकर कांप उठे सब — जवाब में मिला समाज की सबसे डरावनी सच्चाई का चेहरा

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हाइलाइट्स

  • “Sex Education” की कमी को बलात्कार के बढ़ते मामलों की सबसे बड़ी वजह बताया गया
  • सिर्फ 22 साल की उम्र में शोधकर्ता मधुमिता पांडे ने तिहाड़ जेल में 100 से ज़्यादा दुष्कर्म कैदियों के इंटरव्यू किए
  • इंटरव्यू में अधिकांश कैदियों ने अपने अपराध को अपराध मानने से ही किया इनकार
  • विशेषज्ञों का मानना: बचपन से “Sex Education” सुनिश्चित करने से यौन अपराधों में आ सकती है कमी
  • रिपोर्ट से साफ़ हुआ कि ग्रामीण–शहरी दोनों इलाक़ों में “Sex Education” के प्रति निरक्षरता समान

सामाजिक पृष्ठभूमि: अपराध की जड़ों में “Sex Education” का अभाव

यौन हिंसा के सांस्कृतिक व मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर शोध करते हुए 26 वर्षीय मधुमिता पांडे ने महसूस किया कि भारतीय समाज में “Sex Education” को लेकर अब भी बड़ी हिचकिचाहट है। ग्रामीण हों या उच्च–मध्यम वर्गीय शहरी परिवार, अधिकांश अभिभावक “Sex Education” शब्द सुनते ही विषय बदल देते हैं। नतीजतन किशोर अवस्था में गलत धारणाएँ, अश्लील सामग्री का ग़लत इस्तेमाल और स्त्री–पुरुष संबंधों को विकृत नज़रिये से देखने की प्रवृत्ति पनपती है। “Sex Education” यदि बचपन से सुलभ हो, तो यौन कुंठा की बहुत‐सी गांठें पहले ही खुल सकती हैं।

यौन अपराधियों की मानसिक खिड़की

तिहाड़ की कठोर दीवारों के भीतर जब मधुमिता ने सवाल पूछा—“आपने रेप क्यों किया?”—तो चौंकाने वाला जवाब मिला, “हमने तो कुछ गलत किया ही नहीं।” अपराधियों का तर्क था कि पीड़िता “उकसा” रही थी या “मना नहीं कर रही थी।” यह तर्क दर्शाता है कि “Sex Education” के अभाव में सहमति (Consent) की बुनियादी समझ ही विकसित नहीं हो पाई।

बचपन की सामाजिक सीख

मधुमिता की पड़ताल बताती है कि बचपन में लड़कों को घर से लेकर स्कूल तक जो संदेश मिलते हैं, वह स्त्री देह को वस्तु के रूप में स्थापित कर देते हैं। यदि “Sex Education” के ज़रिये रिश्तों, अधिकारों और सीमाओं की स्पष्ट व्याख्या दी जाए तो लड़कों की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव संभव है।

भारतीय शिक्षा व्यवस्था: “Sex Education” को अब भी खोज रही जगह

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के नवीनतम आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत के सिर्फ 11 राज्यों के पाठ्यक्रम में “Sex Education” अंशतः शामिल है। CBSE के स्तर पर 2005 में “Adolescent Education Programme” शुरू तो हुआ, लेकिन सामाजिक दवाब और राजनीतिक विरोध के कारण “Sex Education” शब्द हटाकर ‘मानसिक स्वास्थ्य’ जैसे अस्पष्ट शीर्षक थोप दिए गए। विशेषज्ञ मानते हैं कि बिना स्पष्ट “Sex Education” के किशोरों तक सही जानकारी पहुँच ही नहीं पाती।

नीति‐निर्माताओं की दुविधा

नीति आयोग के एक वरिष्ठ सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हम जानते हैं कि ‘Sex Education’ ज़रूरी है, मगर राजनीतिक लागत भी देखनी पड़ती है।” इस असमंजस का नतीजा यह है कि पाठ्यपुस्तकों में टीबी, मलेरिया पर अध्याय मिल जाएगा, पर “Sex Education” की साफ़ शब्दों में चर्चा नदारद रहती है।

शिक्षकों की तैयारियाँ

दिल्ली सरकार ने 2024 में “Happiness Curriculum” के तहत “Sex Education” शामिल करने का प्रयास किया, पर प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी सामने आई। शिक्षक स्वयं असहज महसूस करते हैं, क्योंकि उन्हें बचपन से “Sex Education” पर खुला संवाद करने का अभ्यास ही नहीं मिला।

अंतरराष्ट्रीय तुलना: जहाँ “Sex Education” ने घटाए अपराध

नीदरलैंड, स्वीडन और जर्मनी जैसे देशों में दशकों से समग्र “Sex Education” अनिवार्य है। यूएनडीपी की 2023 रिपोर्ट बताती है कि इन देशों में यौन हिंसा की दरें लगातार गिरावट पर हैं। विशेषज्ञों का मत है कि भारतीय संदर्भ में भी “Sex Education” को सांस्कृतिक संवेदनशीलता के साथ लागू किया जाए, तो सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।

केस स्टडी: नीदरलैंड मॉडल

नीदरलैंड में 4 साल की उम्र से “Sex Education” शुरू होती है। शुरुआती कक्षाओं में इसे ‘Respect Education’ कहा जाता है, जो consent, body autonomy और gender equality सिखाती है। मधुमिता कहती हैं, “यदि भारत में भी ‘सम्मान पथ’ नाम से “Sex Education” प्रारंभ हो जाए, तो सामाजिक स्वीकार्यता कुछ हद तक आसान हो सकती है।”

विशेषज्ञों की राय: “Sex Education” ही दीर्घकालिक समाधान

AIIMS दिल्ली की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सीमा अरोड़ा के अनुसार, बलात्कार केवल शारीरिक अपराध नहीं, यह सत्ता और नियंत्रण की मानसिकता है। “Sex Education” द्वारा बच्चों को यह सिखाया जा सकता है कि संबंध आपसी सहमति पर आधारित होते हैं। नेशनल लॉ स्कूल बेंगलुरु के प्रो. अनिरुद्ध राय का कहना है, “कानूनी सज़ा महत्त्वपूर्ण है, लेकिन “Sex Education” से अपराध की संभाव्यता ही कम हो सकती है।”

पुलिस एवम् सुधार गृह प्रणाली की चुनौतियाँ

तिहाड़ जेल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जेल में बंद दुष्कर्म अपराधियों के लिए ‘Behavioral Therapy’ कार्यक्रम चल रहा है, परन्तु आरोपी जब तक समाज में था, तब तक कोई रोकथाम उपाय नहीं था। यदि स्कूली स्तर पर “Sex Education” लागू हो, तो जेल में ऐसे कार्यक्रमों की जरूरत ही कम पड़ेगी।

पीड़िताओं की आवाज़: “Sex Education” से बदल सकती है मानसिकता

दिल्ली में कार्यरत परामर्शदाता रोशनी शर्मा बताती हैं, “हमारे पास आने वाली अधिकांश पीड़िताएँ कहती हैं कि अपराधियों ने ‘ना’ शब्द को मज़ाक समझा।” यह दर्शाता है कि समाज में ‘ना मतलब ना’ जैसी सरल अवधारणाएँ भी “Sex Education” के बिना स्पष्ट नहीं हो पातीं। यदि किशोरावस्था में ही consent और boundaries समझा दी जाएँ, तो अत्याचार का ग्राफ नीचे आ सकता है।

मीडिया की भूमिका

मीडिया अगर “Sex Education” विषय पर लगातार चर्चाएँ चलाए, तो सामाजिक टैबू टूट सकता है। वर्तमान में यौन अपराध की ख़बरें सनसनीखेज़ शीर्षकों में सीमित हो जाती हैं; “Sex Education” पर खबरें कम ही दिखाई देती हैं।

मार्ग आगे: “Sex Education” के लिए बहु‐आयामी पहल

  1. नीतिगत सुधार: केंद्र व राज्यों के पाठ्यक्रम में “Sex Education” को स्पष्ट शब्दों में शामिल किया जाए।
  2. शिक्षक प्रशिक्षण: B.Ed. कोर्स में अनिवार्य “Sex Education” मॉड्यूल जोड़ा जाए, ताकि शिक्षक आत्मविश्वास से विषय पढ़ा सकें।
  3. अभिभावक जागरूकता: पंचायत स्तर तक “Sex Education” वर्कशॉप चलें, जहाँ माता‐पिता भी खुली चर्चा कर सकें।
  4. डिजिटल सामग्री: सरकारी पोर्टल पर ‘Safe India, Safe Youth’ नाम से “Sex Education” संसाधन मुफ्त उपलब्ध हों।
  5. मीडिया कैंपेन: टीवी व ओटीटी पर राष्ट्रीय स्तर का सीरियल—“समझदारी की कहानी”—जिसकी पटकथा में “Sex Education” को केंद्र में रखा जाए।

मधुमिता पांडे के तिहाड़ रिसर्च ने बारीक़ी से दिखाया कि अपराध के बाद सज़ा ज़रूर दी जाती है, लेकिन अपराध से पहले “Sex Education” देकर ही समाज को सुरक्षित बनाया जा सकता है। जब तक “Sex Education” स्कूल, घर और मीडिया की मुख्यधारा में नहीं आएगी, तब तक सांस्कृतिक रुढ़ियाँ टूटेंगी नहीं और यौन अपराधों का ग्राफ गिरना मुश्किल होगा।

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