स्कूल में कांवड़ पर रोक लगाने की साजिश? शिक्षक ने बच्चों से कहा – भगवान ने कभी किसी की ज़िंदगी नहीं बदली!

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हाइलाइट्स

  • Kanwar Yatra को लेकर Dr. Rajneesh Gangwar ने बच्चों के सामने विवादित बयान दिया
  • शिक्षक ने कहा – “कांवड़ लेने मत जाना, इससे किसी की जिंदगी नहीं बदलती”
  • बयान में Hinduism और परंपराओं को बताया गया “झूठ और ब्रेनवॉश”
  • छात्रों को कथित रूप से ‘Ambedkarite’ सोच के नाम पर हिंदू परंपराओं से विमुख किया जा रहा है
  • सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल, मामले की जांच शुरू

Kanwar Yatra पर क्यों आया यह विवाद?

उत्तर प्रदेश के एक सरकारी स्कूल में शिक्षक Dr. Rajneesh Gangwar द्वारा दिया गया विवादित बयान इन दिनों देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। Kanwar Yatra को लेकर उनके कथित रूप से दिए गए बयान—”कांवड़ लेने मत जाना, मैंने कहीं नहीं पढ़ा कि भगवान ने किसी की जिंदगी बदल दी”—ने ना सिर्फ हिंदू संगठनों को आक्रोशित किया है, बल्कि शिक्षा तंत्र पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

 शिक्षक ने बच्चों को क्या कहा?

Ambedkarite विचारधारा के नाम पर शिक्षण या ब्रेनवॉश?

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में Dr. Rajneesh Gangwar बच्चों को संबोधित करते हुए कहते हैं:

“Kanwar lene mat jana… Maine kahin nahi padha ki bhagwan ne kisi ki zindagi badal di. Ye sab dharmik dikhावा hai, asli badlav toh samvidhan se aata hai.”

यह कथन सुनने में भले एक सामान्य विचार जैसा लगे, लेकिन जब यह बात छोटे बच्चों के सामने एक शिक्षक कहे, तो उसका मनोवैज्ञानिक असर गहरा होता है। इस बयान में Kanwar Yatra जैसी हजारों साल पुरानी परंपरा को ‘नकली’ बताकर खारिज कर दिया गया।

 क्यों खास है Kanwar Yatra?

Kanwar Yatra उत्तर भारत में सावन के महीने में निकलने वाली एक विशेष धार्मिक यात्रा है जिसमें श्रद्धालु शिव भक्त गंगाजल लेकर अपने क्षेत्र के शिव मंदिरों में चढ़ाते हैं। यह परंपरा न केवल आस्था से जुड़ी है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और अनुशासन का प्रतीक भी मानी जाती है।

हर साल करोड़ों लोग Kanwar Yatra में भाग लेते हैं और यह आयोजन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड और दिल्ली सहित कई राज्यों में बड़े स्तर पर होता है।

 क्या कहते हैं अभिभावक और विद्यार्थी?

 अभिभावकों का विरोध

बरेली जिले के उस विद्यालय के कई अभिभावकों ने स्कूल प्रशासन से शिकायत की है। उनका कहना है कि बच्चों को धर्म के प्रति नकारात्मक सोच देना शिक्षा नहीं, अपसंस्कृति है।

“हमने अपने बच्चों को ज्ञान पाने के लिए भेजा है, न कि अपनी परंपराओं से घृणा करने के लिए,” – एक गुस्साए अभिभावक ने कहा।

 प्रशासन की प्रतिक्रिया

 जांच कमेटी गठित

शिक्षा विभाग ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई है जो यह जांच करेगी कि क्या Dr. Rajneesh Gangwar का बयान बच्चों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला था।

“अगर आरोप सही पाए जाते हैं तो कड़ी कार्यवाही की जाएगी,” – BSA, बरेली

Kanwar Yatra बनाम विचारधारा की राजनीति

भारत में Kanwar Yatra जैसी धार्मिक परंपराएं न सिर्फ भक्ति का प्रदर्शन हैं बल्कि यह हजारों वर्षों से सामाजिक ताने-बाने का हिस्सा रही हैं। जब एक शिक्षक अपने विचारों के तहत ऐसी परंपराओं को “झूठा” करार देता है, तो यह सिर्फ धार्मिक भावना का अपमान नहीं, बल्कि शिक्षा के स्वरूप पर भी हमला है।

 क्या यह विचारों की आज़ादी है?

कुछ मानवाधिकार संगठनों ने Dr. Gangwar का बचाव करते हुए इसे “freedom of expression” बताया है। वहीं दूसरी ओर, शिक्षा से जुड़े लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या बच्चों को धार्मिक परंपराओं से विमुख करना शिक्षक की जिम्मेदारी है?

 सोशल मीडिया पर हंगामा

 वीडियो वायरल, ट्विटर पर ट्रेंडिंग

“Kanwar Yatra” शब्द के साथ Dr. Rajneesh Gangwar का वीडियो ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा है। हिंदू संगठनों और आम नागरिकों ने उनके निलंबन की मांग की है।

“यह साफ़ ब्रेनवॉश है, हम अपने बच्चों को ऐसे शिक्षकों के हाथों नहीं छोड़ सकते,” – विश्व हिंदू परिषद का बयान

 क्या कहते हैं शिक्षा विशेषज्ञ?

 “विवादित विचार रखना गलत नहीं, पर छात्रों पर थोपना खतरनाक”

शिक्षाविदों का मानना है कि शिक्षक का व्यक्तिगत दृष्टिकोण हो सकता है, पर विद्यालय एक धर्मनिरपेक्ष स्थान है जहाँ बच्चों को समाज, संस्कृति और संविधान तीनों के बारे में संतुलित जानकारी दी जानी चाहिए।

Kanwar Yatra पर हमला या शिक्षा का दुरुपयोग?

Dr. Rajneesh Gangwar द्वारा दिया गया बयान एक बहस को जन्म देता है—क्या हम शिक्षा में निष्पक्षता बनाए रख पा रहे हैं? क्या शिक्षक अपने निजी विचारों को बच्चों पर थोप रहे हैं?

बच्चों को एक धर्म विशेष के खिलाफ करना, चाहे वह किसी भी विचारधारा के तहत हो, भारत की सांस्कृतिक विविधता को नुकसान पहुंचाता है। Kanwar Yatra जैसी परंपराओं को नकारना न सिर्फ आस्था का अपमान है, बल्कि भारतीय समाज की जड़ों को भी कमजोर करना है।

 निष्पक्ष जांच की दरकार

सरकार और शिक्षा विभाग को चाहिए कि इस मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर उचित कार्रवाई करे। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाए कि शिक्षक का काम बच्चों को ‘सोचने’ के लिए प्रेरित करना हो, न कि ‘सोचने की दिशा तय करना।’

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