हाइलाइट्स
- असम में एक व्यक्ति ने Emotional Freedom पाने के लिए 40 लीटर दूध से नहाया
- पत्नी के बार-बार प्रेमी संग भागने के बाद लिया तलाक का फैसला
- “अब मैं बोझ से मुक्त हूं” कहकर जताई आत्मशुद्धि की अनुभूति
- सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो, शुरू हुई गहरी बहस
- पुरुषों की भावनात्मक अभिव्यक्ति पर समाज की चुप्पी पर उठे सवाल
घटना कहां और क्या हुई?
असम के नलबाड़ी जिले के बरलियापार गांव में एक ऐसी घटना घटी जिसने पूरे देश का ध्यान खींच लिया। यह कहानी एक आम आदमी की Emotional Freedom की कहानी है जो किसी फिल्मी दृश्य जैसी प्रतीत होती है लेकिन उसके पीछे छुपा है गहरा दर्द।
यह मामला मुकलमुआ थाना क्षेत्र से जुड़ा है, जहां माणिक दास नामक एक युवक की पत्नी कई बार अपने प्रेमी के साथ घर छोड़कर जा चुकी थी। माणिक ने दो बार उसे माफ कर वापस लाने की कोशिश की, वो भी सिर्फ अपनी छोटी बच्ची की खातिर।
तीसरी बार टूटा धैर्य, उठाया बड़ा कदम
जब पत्नी तीसरी बार भी भाग गई और इस बार बेटी को भी अपने साथ ले गई, तब माणिक ने फैसला किया कि अब वह यह रिश्ता नहीं निभा सकता। उसने कानूनी रूप से तलाक की प्रक्रिया शुरू की और जैसे ही उसे कोर्ट से तलाक मिला, उसने एक असाधारण कदम उठाया — उसने खुद पर करीब 40 लीटर दूध उड़ेलकर “आज़ादी का स्नान” किया।
“ये दूध नहीं, मानसिक बोझ है जो धो रहा हूं”
माणिक ने कैमरे के सामने खड़े होकर भावुक स्वर में कहा:
“आज से मैं आज़ाद हूं! यह दूध नहीं, मेरे ऊपर चढ़ा मानसिक बोझ है जो मैं धो रहा हूं। ये मेरे Emotional Freedom का प्रतीक है।”
उसकी आंखों में आंसू थे लेकिन चेहरा संतोष से भरा हुआ। वह यह भी कहता है कि जब कोई स्त्री ऐसे रिश्ते को छोड़ती है, तो उसे सहानुभूति मिलती है, लेकिन एक पुरुष के टूटने पर समाज मज़ाक उड़ाता है या चुप रहता है।
“नायक” से तुलना या समाज पर करारा कटाक्ष?
लोगों ने इस दृश्य की तुलना अनिल कपूर की फिल्म “नायक” से की, जहां उन्हें दूध से नहलाया जाता है। लेकिन माणिक की यह “दूध स्नान” राजनीतिक जीत का नहीं, बल्कि Emotional Freedom का व्यक्तिगत उत्सव था।
कुछ लोगों ने इसे नाटकबाज़ी कहा तो कुछ ने इसे एक टूटे दिल की गहराई से उपजी भावनात्मक प्रक्रिया बताया। यह बहस अब केवल सोशल मीडिया पर नहीं, पुरुषों की मानसिक पीड़ा और उनके Emotional Freedom के अधिकार पर भी केंद्रित हो गई है।
अजब-गजब! प्रेमी के साथ भागी पत्नी, “40 लीटर दूध” से नहाकर बोला पति…मैं अब आज़ाद हूं!
असम के नलबाड़ी जिले में एक अजीबो-गरीब लेकिन बेहद चर्चित घटना सामने आई है !!बरलियापार गांव में रहने वाले एक व्यक्ति ने पत्नी से कानूनी तौर पर तलाक लेने के बाद 40 लीटर दूध से नहाकर अपनी “आज़ादी”… pic.twitter.com/mECRzo7kQc
— MANOJ SHARMA LUCKNOW UP🇮🇳🇮🇳🇮🇳 (@ManojSh28986262) July 13, 2025
सोशल मीडिया पर बहस: “Emotional Freedom” सिर्फ महिलाओं का अधिकार क्यों?”
इस घटना के बाद ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर #EmotionalFreedomForMen ट्रेंड करने लगा। कई लोगों ने लिखा कि,
“जब महिलाएं तलाक के बाद नाचती हैं, चियर करती हैं, तो हम उन्हें सलाम करते हैं। लेकिन एक पुरुष ऐसा करे, तो उसे ‘ड्रामेबाज़’ क्यों कहा जाता है?”
कुछ चर्चित टिप्पणियां:
- “इस आदमी ने दर्द को जश्न में बदला है। यह Emotional Freedom का उदाहरण है।”
- “अगर कोई महिला दूध से नहाती, तो इसे फेमिनिस्ट प्रतीक कहा जाता। लेकिन पुरुष ने किया तो ये मज़ाक बन गया।”
- “समाज पुरुषों के इमोशन्स को कब गंभीरता से लेगा?”
मनोवैज्ञानिक क्या कहते हैं?
गुवाहाटी के जाने-माने काउंसलर डॉ. अंशुल राय कहते हैं:
“यह व्यवहार प्रतीकात्मक है और गहरे मानसिक दबाव का परिणाम है। Emotional Freedom को पाने के लिए व्यक्ति अक्सर प्रतीकात्मक तरीकों से अपने तनाव को बाहर निकालता है। यह असामान्य नहीं है, लेकिन समाज को इसे समझने की जरूरत है।”
क्या पुरुषों की तकलीफों को जगह मिलेगी?
माणिक की यह कहानी उन हजारों पुरुषों की आवाज़ बन गई है जो शादी जैसे रिश्तों में बार-बार टूटते हैं लेकिन कुछ कह नहीं पाते। तलाक केवल कानूनी दस्तावेज नहीं, Emotional Freedom पाने की प्रक्रिया भी हो सकती है।
जब महिलाएं अपनी आज़ादी का उत्सव मना सकती हैं, तो पुरुषों को यह हक क्यों नहीं?
वायरल वीडियो का असर
यह वीडियो कुछ घंटों में ही लाखों बार देखा गया। स्थानीय मीडिया से लेकर राष्ट्रीय मीडिया तक यह खबर छा गई। लोगों ने माणिक के साहस की सराहना की और उसके कदम को पुरुषों की चुप्पी तोड़ने वाली पुकार कहा।
क्या यह केवल एक अजीब खबर है?
बिलकुल नहीं। यह एक प्रतीक है — उस Emotional Freedom का जिसे समाज पुरुषों के लिए अभी भी अपराध समझता है। माणिक की यह कहानी बताती है कि दर्द केवल महिलाओं को ही नहीं होता, और आत्ममुक्ति केवल उनका विशेषाधिकार नहीं।
अब समय आ गया है जब समाज को पुरुषों की मानसिक स्थिति और भावनात्मक संघर्ष को भी इंसानी नजर से देखना होगा, मज़ाक से नहीं।