हाइलाइट्स
-
Lucknow Rape Case: जेल से छूटे आरोपी ने दोबारा किया पीड़िता से दुष्कर्म
-
पीड़िता को झाड़ियों में बेसुध हालत में पाया गया, हाथ-पैर थे बंधे
-
आरोपी अंशू मौर्य को पहले भी दुष्कर्म के आरोप में जेल भेजा गया था
-
अदालत से मिली जमानत के बाद फिर से किया अपहरण और रेप
-
पुलिस की लापरवाही पर उठे सवाल, आरोपी अब भी फरार
क्या यह इंसाफ़ है या सिस्टम की नाकामी?
लखनऊ के दुबग्गा थाना क्षेत्र में सामने आया Lucknow Rape Case एक बार फिर यह सवाल उठाता है कि क्या भारत की न्यायिक और पुलिस व्यवस्था रेप पीड़िताओं की सुरक्षा के लिए पर्याप्त है? एक महिला, जो पहले ही एक दरिंदे की हैवानियत का शिकार हो चुकी थी, उसे न्याय की उम्मीद में कोर्ट और पुलिस के दरवाजे खटखटाना पड़ा, लेकिन उसके साथ दोबारा वही दंश दोहराया गया।
पहली बार जब टूटी थी चुप्पी, पहली बार हुआ था केस दर्ज
यह घटना तब शुरू हुई जब पीड़िता ने साहस जुटाकर Lucknow Rape Case में आरोपी अंशू मौर्य के खिलाफ रेप का केस दर्ज कराया था। आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया, जिससे यह लगा कि शायद अब पीड़िता को सुरक्षा मिलेगी। लेकिन यह सुरक्षा कितनी खोखली थी, इसका अंदाज़ा तब हुआ जब अदालत ने अंशू मौर्य को जमानत दे दी।
जमानत और फिर वही हैवानियत: दूसरी बार रेप
जेल से बाहर आते ही अंशू मौर्य ने बदले की नीयत से पीड़िता को फिर से निशाना बनाया। आरोपी ने न केवल महिला का अपहरण किया, बल्कि उसे फिर से रेप का शिकार बनाया। इसके बाद उसे लखनऊ के दुबग्गा थाना क्षेत्र के एक सुनसान इलाके में झाड़ियों में फेंक दिया गया, जहां वह बेसुध हालत में मिली।
इस दिल दहला देने वाले Lucknow Rape Case ने फिर से साबित कर दिया कि जमानत का गलत इस्तेमाल कितनी भयावह परिणति ला सकता है।
झाड़ियों में पड़ी थी बेसुध, बंधे थे हाथ-पैर
स्थानीय लोगों की नजर झाड़ियों में पड़ी एक महिला पर गई, जो न हिल रही थी, न बोल पा रही थी। उसके हाथ-पैर बंधे हुए थे और वह दर्द से कराह रही थी। तुरंत पुलिस को सूचित किया गया और महिला को अस्पताल पहुंचाया गया। चिकित्सकों ने पुष्टि की कि महिला के साथ फिर से बलात्कार किया गया है।
पुलिस की लापरवाही या सिस्टम की असफलता?
Lucknow Rape Case में बड़ा सवाल यह है कि पुलिस ने जेल से छूटे आरोपी पर नजर क्यों नहीं रखी? क्या यह पुलिस की जिम्मेदारी नहीं थी कि वह रेप जैसे गंभीर केस के आरोपी की गतिविधियों पर निगरानी रखे? क्या यह अदालत की जिम्मेदारी नहीं थी कि वह जमानत देने से पहले यह सुनिश्चित करती कि पीड़िता की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं होगा?
जज साहब की मेहरबानी….
लखनऊ में झाड़ियों में बेसुध मिली लड़की…
किडनैप के बाद रेप और फिर फेंका झाड़ियों मेंजी हाँ, मामला लखनऊ के दुबग्गा थाना का है
जहाँ पूर्व में इस महिला के साथ दुष्कर्म हो चुका था. पीड़िता ने अंशू मौर्य नाम के युवक के खिलाफ केस दर्ज कराया.. पुलिस ने अंशू… pic.twitter.com/9i3hgyHk5w— Deepak Sharma (@SonOfBharat7) July 11, 2025
अंशू मौर्य फिर बना हैवान, पुलिस के हाथ खाली
इस वक्त सबसे बड़ा सवाल यह है कि Lucknow Rape Case का आरोपी अंशू मौर्य कहां है? पुलिस ने उसके खिलाफ फिर से केस दर्ज कर लिया है और तलाश जारी है। लेकिन क्या इस तलाश से उस पीड़िता को फिर से वो हिम्मत मिलेगी जो पहले टूटी थी?
क्या कहते हैं मानवाधिकार कार्यकर्ता?
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह एक क्लासिक केस है जहां जमानत प्रणाली का दुरुपयोग हुआ है। “अगर जमानत के दौरान निगरानी की जाती, तो यह दोबारा नहीं होता। सिस्टम को ये समझना होगा कि रेप का आरोपी जेल से छूटने के बाद बदले की भावना से प्रेरित हो सकता है,” एक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा।
जमानत की शर्तें हों सख्त, निगरानी हो अनिवार्य
Lucknow Rape Case से एक बात साफ हो जाती है — हमें अपनी जमानत व्यवस्था पर पुनः विचार करना होगा। रेप जैसे गंभीर अपराधों में आरोपी को जमानत देने से पहले मानसिक स्थिति और संभावित खतरे का मूल्यांकन जरूरी है।
पीड़िता को चाहिए न्याय और सुरक्षा
पीड़िता फिलहाल अस्पताल में है, मानसिक और शारीरिक रूप से बेहद कमजोर है। उसका एक ही सवाल है – “मैंने न्याय के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन मुझे फिर से नर्क में धकेल दिया गया।”
सवाल जो रह गए अनुत्तरित
- जब आरोपी को जमानत मिली, तो क्या पुलिस ने पीड़िता को कोई सुरक्षा मुहैया कराई?
- क्या अदालत ने आरोपी की मानसिकता और खतरे का मूल्यांकन किया था?
- क्या पुलिस की लापरवाही के कारण यह दोबारा हुआ बलात्कार?
- और सबसे जरूरी – क्या अब भी हम महिलाओं को सुरक्षित समाज देने का दावा कर सकते हैं?
बदलाव की सख्त ज़रूरत है
Lucknow Rape Case एक चेतावनी है — एक ऐसी चेतावनी जो बताती है कि सिस्टम में कई कमजोर कड़ियां हैं। जमानत नीतियों की समीक्षा, पुलिस की निगरानी व्यवस्था में सुधार और पीड़िता की सुरक्षा के लिए स्पेशल प्रोटेक्शन यूनिट का गठन जैसे कदम अब केवल विकल्प नहीं, अनिवार्यता हैं।