हाइलाइट्स
- बागेश्वर बाबा ने बिहार में बयान दिया: “हिन्दू हूँ, हिन्दू की बात करूंगा”—Bhagwa E Hind का किया समर्थन
- मुसलमानों और ईसाइयों से नहीं, बल्कि जातिवादी हिन्दुओं से है दिक्कत: बागेश्वर
- आरक्षण और जाति जनगणना के खिलाफ बोले बाबा, कहा—“बांटने वाली राजनीति बंद हो”
- सामाजिक न्याय की मांग पर खामोशी, सवर्ण वर्चस्व को दी प्राथमिकता
- बाबा के बयान से खड़ा हुआ सवाल—हमें चाहिए Bhagwa E Hind या समतामूलक भारत?
बिहार की सरज़मीं एक बार फिर विचारधाराओं के टकराव का अखाड़ा बन गई है। इस बार बहस की चिंगारी सुलगाई है धर्मगुरु और कथावाचक के रूप में लोकप्रिय हो चुके बागेश्वर बाबा ने। अपने हालिया प्रवास के दौरान उन्होंने एक जनसभा में साफ शब्दों में कहा—“हिन्दू हूँ, हिन्दू की बात करूंगा। भारत को Bhagwa E Hind बनाना चाहिए।”
यह बयान जहां भगवाधारी समर्थकों को ऊर्जा देता दिखाई दिया, वहीं सामाजिक न्याय, दलित अधिकार और समतामूलक विचारधारा को मानने वालों के लिए यह चिंता का विषय बन गया।
Bhagwa E Hind: सपना या षड्यंत्र?
“हमें मुसलमानों और ईसाइयों से दिक्कत नहीं…”
अपने बयान में बाबा ने स्पष्ट किया कि उन्हें अल्पसंख्यकों से नहीं, बल्कि हिन्दुओं के भीतर फैले जातिवाद से दिक्कत है। उन्होंने कहा—“हमें हिन्दुओं में रहने वाले हिन्दुओं से दिक्कत है जो जाति के नाम पर लड़ते हैं।”
यह कथन सतह पर सुधारवादी लगता है, परंतु जब हम उनके अन्य वक्तव्यों को गहराई से देखें, तो एक विरोधाभास नजर आता है।
जाति जनगणना और आरक्षण पर तीखा विरोध
जातिगत आंकड़े क्यों नहीं चाहिए बागेश्वर को?
बागेश्वर बाबा ने आरक्षण और जाति जनगणना को समाज को तोड़ने वाला कदम बताया। उनका कहना है कि इससे “हिन्दू समाज बंटता है और राष्ट्र की एकता पर आघात होता है।”
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या वंचित और पिछड़ी जातियों को प्रतिनिधित्व देना हिन्दू धर्म को तोड़ना है, या फिर Bhagwa E Hind का असली मकसद जातीय वर्चस्व बनाए रखना है?
बाबा के विचार: हिंदुत्व की आड़ में सवर्ण वर्चस्व?
बिहार में बागेश्वर बाबा ने कहा, हिन्दू हूँ हिन्दू की बात करूंगा. बिहार को भगवा ए हिन्द बनाना चाहिए.
आगे बागेश्वर कहा, मुसलमानों या ईसाईयों से दिक्कत नही है. दिक्कत है हमें हिन्दुओं में रहने वाले हिन्दुओं से है जो जाति के नाम पर लड़ाते हैं.
बागेश्वर बाबा आरक्षण और जाति जनगणना… pic.twitter.com/AgfwGGfz17
— Kranti Kumar (@KraantiKumar) July 7, 2025
“हम चुनाव में हिन्दू बनें, बाकी समय जाति में रहें”
बाबा ने साफ कहा—“हमें चुनाव में हिन्दू बनना चाहिए, बाकी समय अपनी जाति में रहना चाहिए।” यह कथन न केवल राजनीतिक हिन्दुत्व की पोल खोलता है, बल्कि इस सोच को भी उजागर करता है कि भगवा आंदोलन जाति-विहीन नहीं, बल्कि जातीय संतुलन को सवर्णों के पक्ष में रखने का प्रयास है।
इसमें Bhagwa E Hind की असल परिभाषा दिखती है—एक ऐसा भारत जहां ब्राह्मणवादी वर्चस्व अक्षुण्ण रहे और दलित-पिछड़े अपनी आवाज बुलंद न कर पाएं।
सामाजिक न्याय बनाम सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
क्या कबीर, रैदास, फुले और बाबासाहेब की राह अब भी प्रासंगिक है?
बाबा के इस बयान ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि देश किस ओर जा रहा है? क्या हम Bhagwa E Hind की कल्पना को अपनाएंगे, जिसमें समानता की नहीं, बल्कि बहुसंख्यक एकता की बात होती है?
या फिर हम उस भारत के सपने को साकार करेंगे, जो रैदास, कबीर, चोखामेला, फुले और डॉ. भीमराव अंबेडकर ने देखा था—जहां हर व्यक्ति को समान अधिकार मिले, चाहे उसका धर्म, जाति, लिंग या वर्ग कुछ भी हो।
राजनीति और धर्म का खतरनाक मेल
बागेश्वर बाबा और RSS की वैचारिक समानता?
विश्लेषकों का मानना है कि बागेश्वर बाबा का Bhagwa E Hind विचार RSS के हिन्दू राष्ट्र के एजेंडे से मेल खाता है। जातिगत जनगणना का विरोध, आरक्षण को समाज तोड़ने वाला बताना, और चुनावी हिन्दू एकता की मांग—ये सभी तत्व संघ की रणनीति में पहले से ही देखे जा चुके हैं।
जनता के लिए चुनौती: किस भारत को चुनेंगे आप?
अब फैसला जनता के हाथ में है—क्या वह बाबा के Bhagwa E Hind के सपने को साकार करने में सहभागी बनेगी, या फिर बाबा साहेब और फुले के बताए रास्ते पर चलेगी?
एक ओर है एक धार्मिक राष्ट्र का सपना, जिसमें धर्म ही राजनीति का आधार होगा, दूसरी ओर है एक लोकतांत्रिक, समतामूलक भारत, जिसमें हर आवाज को सम्मान हो।
‘Bhagwa E Hind’ एक सपना या सामाजिक न्याय पर हमला?
बागेश्वर बाबा के भाषणों में जो धार है, वह साधारण धार्मिक उपदेश से कहीं अधिक राजनीतिक है। उनके विचार स्पष्ट रूप से Bhagwa E Hind को समर्थन देते हैं, लेकिन इसकी कीमत दलित, आदिवासी और पिछड़ी जातियों के अधिकारों पर पड़ सकती है।
हमें खुद से यह पूछने की जरूरत है—क्या धर्म के नाम पर सामाजिक न्याय का गला घोंटा जाना चाहिए? क्या एक रंग, एक भाषा और एक धर्म के नाम पर विविधता का अंत सही है?