विदेश मंत्री के बेटे की संस्था को चीन से करोड़ों की फंडिंग! ‘Observer Research Foundation’ पर गहराया शक, क्या देश की विदेश नीति बिक रही है?

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हाइलाइट्स

  • Observer Research Foundation को 2016 और 2017 में चीनी दूतावास से कुल ₹1.75 करोड़ की फंडिंग मिली थी
  • विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बेटे ध्रुव जयशंकर इस थिंक टैंक में निदेशक के पद पर हैं
  • संस्था को Reliance Industries से भी आर्थिक सहयोग मिलने की पुष्टि
  • ORF में अक्सर एस. जयशंकर खुद भी व्याख्यान देने आते रहे हैं
  • भाजपा ने कांग्रेस पर लगाए थे चीन से फंड लेने के आरोप, अब सवाल भाजपा से जुड़े थिंक टैंकों पर भी उठने लगे हैं

भारतीय विदेश नीति को आकार देने वाले सबसे प्रभावशाली थिंक टैंकों में से एक Observer Research Foundation (ORF) इन दिनों गंभीर विवादों में घिर गया है। इस संस्था को 2016 और 2017 में चीन के दूतावास से कुल ₹1.75 करोड़ की फंडिंग मिलने की पुष्टि हुई है। यह खुलासा इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस संस्था से विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बेटे ध्रुव जयशंकर सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं और वर्तमान में ORF के निदेशक भी हैं।

Observer Research Foundation क्या है और इसका प्रभाव कितना बड़ा है?

Observer Research Foundation एक स्वतंत्र नीति अनुसंधान संस्था है, जिसे आमतौर पर थिंक टैंक कहा जाता है। इसका मुख्य कार्य:

  • वैश्विक और राष्ट्रीय नीति से जुड़े मुद्दों पर शोध करना
  • विदेश नीति, रणनीतिक साझेदारी, सुरक्षा और आर्थिक मसलों पर संवाद स्थापित करना
  • सरकार, मीडिया और कॉर्पोरेट जगत को नीति सुझाव देना

लेकिन जब यही संस्था किसी विदेशी शक्ति—विशेषकर चीन जैसे रणनीतिक प्रतिद्वंदी—से फंडिंग प्राप्त करती है, तो यह एक राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से गंभीर मामला बन जाता है।

ध्रुव जयशंकर की भूमिका और पारिवारिक जुड़ाव

ध्रुव जयशंकर, जो Observer Research Foundation के निदेशक पद पर कार्यरत हैं, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के पुत्र हैं। एस. जयशंकर खुद पूर्व में चीन में भारत के राजदूत रह चुके हैं और ORF में कई बार व्याख्यान देने भी गए हैं।

अब सवाल यह उठ रहा है कि:

  • क्या ORF की विदेश नीति संबंधी शोध पर चीनी फंडिंग का कोई प्रभाव रहा है?
  • क्या ध्रुव जयशंकर की भूमिका केवल एक अकादमिक शोधकर्ता की है, या नीति निर्माण में उनकी कोई सक्रिय भागीदारी है?
  • क्या इस प्रकार की फंडिंग से हितों का टकराव (Conflict of Interest) नहीं उत्पन्न होता?

ORF को फंडिंग देने वालों में रिलायंस इंडस्ट्रीज भी

Observer Research Foundation को केवल चीन ही नहीं, बल्कि भारत की बड़ी औद्योगिक कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज से भी फंडिंग मिलती रही है। इसका मतलब यह हुआ कि यह संस्था:

  • न केवल विदेशी शक्ति से पैसे लेती है
  • बल्कि देश के सबसे बड़े निजी कॉरपोरेट समूह से भी आर्थिक रूप से जुड़ी हुई है

क्या यह फंडिंग नीतिगत निष्पक्षता को प्रभावित कर सकती है? विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है, लेकिन सवाल गंभीर हैं।

भाजपा ने लगाए थे कांग्रेस पर चीन से फंड लेने के आरोप

याद दिला दें कि गलवान घाटी की झड़प और लद्दाख में चीन की घुसपैठ के बाद भाजपा ने कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि राजीव गांधी फाउंडेशन को भी चीन से फंडिंग मिली थी। लेकिन अब ORF और अन्य भाजपा से जुड़े संस्थानों पर भी चीन से संबंध के आरोप सामने आ रहे हैं।

Vivekananda International Foundation (VIF), जिसके संस्थापक निदेशक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल हैं, की वेबसाइट पर भी यह खुलासा हुआ है कि उसे चीन की विदेश नीति से जुड़े 9 अलग-अलग संगठनों से फंडिंग मिली है।

सवाल जो देश की सुरक्षा से जुड़े हैं

अब जब Observer Research Foundation जैसे थिंक टैंक के ऊपर विदेशी फंडिंग के आरोप लगे हैं, तो कुछ सवाल अपने आप खड़े हो जाते हैं:

क्या ORF जैसी संस्थाएं भारत की विदेश नीति को प्रभावित कर रही हैं?

 क्या यह एक रणनीतिक खतरा नहीं है जब नीति निर्धारण में शामिल थिंक टैंक पर विदेशी शक्तियों का आर्थिक प्रभाव हो?

 क्या सरकार को इस मामले में पारदर्शिता दिखाते हुए जांच बिठानी चाहिए?

 क्या विदेश मंत्री को स्वयं इस मामले में स्पष्टीकरण देना चाहिए?

पारदर्शिता की मांग: राजनीतिक नहीं, राष्ट्रीय मुद्दा

यह मुद्दा केवल भाजपा या कांग्रेस का नहीं है। यह मुद्दा है—राष्ट्रीय सुरक्षा, नीति निर्माण की निष्पक्षता, और नागरिकों के विश्वास का।

यदि ORF को विदेशी फंडिंग मिली है, तो यह जरूरी है कि:

  • संस्था इसकी पूरी पारदर्शिता दिखाए
  • यह स्पष्ट किया जाए कि इस फंडिंग का नीति निर्माण या रिपोर्ट्स पर क्या प्रभाव पड़ा
  • विदेश मंत्रालय और नीति आयोग जैसी संस्थाएं इस पर स्वतंत्र जांच करवाएं

 थिंक टैंक या थ्रेट?

Observer Research Foundation की भूमिका देश की नीति निर्माण प्रक्रिया में अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेकिन यदि यही संस्था विदेशी शक्तियों से आर्थिक लाभ प्राप्त कर रही है, तो यह एक संवेदनशील और खतरनाक संकेत है। भारत जैसे लोकतांत्रिक और रणनीतिक रूप से संवेदनशील राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि थिंक टैंकों पर कठोर निगरानी, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व लागू किया जाए।

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