BJP worker

30 साल से BJP की वफादार, अब घोषित कर दी गई ‘बांग्लादेशी’—क्या यही सच्चे कार्यकर्ता का इनाम है?

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हाइलाइट्स

  • एक महिला BJP worker को हाल ही में ‘बांग्लादेशी नागरिक’ घोषित किया गया
  • 30 वर्षों से दिल्ली में रह रही हैं, भाजपा से जुड़ाव को भी दो दशक से अधिक हो चुका है
  • महिला का दावा: “भाजपा अपने सच्चे कार्यकर्ताओं के साथ गद्दारी कर रही है”
  • वोट बैंक की राजनीति के आरोप, महिला ने कहा – “भाजपा को वोट देना मेरी सबसे बड़ी गलती थी”
  • मामला राष्ट्रीय पहचान और राजनीति में वफादारी की बहस को फिर से गरमा रहा है

 परिचय: एक महिला BJP worker के साथ राजनीतिक धोखा?

दिल्ली की एक वरिष्ठ BJP worker को अचानक विदेशी नागरिक, यानी ‘बांग्लादेशी’ घोषित कर देना न केवल हैरान करने वाला है, बल्कि यह भारतीय राजनीति में वफादारी और पहचान को लेकर गहरी बहस भी छेड़ता है। यह महिला न केवल दशकों से दिल्ली की नागरिक रही हैं, बल्कि पिछले कई वर्षों से भाजपा के जमीनी स्तर पर कार्य कर रही थीं।

अब जब इस महिला को विदेशी ठहरा दिया गया है, तो कई सवाल उठने लगे हैं:
क्या भाजपा अपने सच्चे कार्यकर्ताओं को भी बलि का बकरा बना सकती है?
क्या यह मामला वोट बैंक और पहचान की राजनीति से जुड़ा है?

 महिला BJP worker कौन हैं और मामला क्या है?

दिल्ली के त्रिलोकपुरी क्षेत्र में रहने वाली यह महिला पिछले 30 वर्षों से भारत की नागरिक की तरह रह रही थीं, और करीब 20 वर्षों से अधिक समय से BJP worker के रूप में पार्टी से जुड़ी रही हैं। स्थानीय निकाय चुनाव से लेकर संसद चुनावों तक, इन्होंने पार्टी के प्रचार-प्रसार और संगठनात्मक कार्यों में अपनी भूमिका निभाई है।

हाल ही में दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय की ओर से जारी नोटिस में इन्हें “अवैध प्रवासी बांग्लादेशी” घोषित कर दिया गया, और इन्हें जल्द देश छोड़ने के लिए कहा गया है। इस नोटिस के बाद इनका कहना है:

“मैं वर्षों से BJP worker के रूप में काम कर रही हूं। अब पार्टी मुझे पहचानने से इनकार कर रही है। क्या यही भाजपा की वफादारी है?”

 महिला के आरोप: BJP वफादारी नहीं पहचानती

इस महिला ने मीडिया से बातचीत में खुलकर कहा:

“मैंने भाजपा को अपना सब कुछ दिया। मोहल्लों में प्रचार किया, सभाओं में हिस्सा लिया, मतदाताओं को पार्टी से जोड़ा। लेकिन जब मुझ पर संकट आया, तो पार्टी ने मुझे पहचानने से ही मना कर दिया। मुझे बांग्लादेशी घोषित कर दिया गया। मैंने भाजपा को वोट देकर गलती की।”

उन्होंने यह भी कहा कि उनका पूरा परिवार भारत में है, बच्चे भारतीय स्कूलों में पढ़ते हैं और आधार, वोटर ID जैसे सभी दस्तावेज मौजूद हैं।

 क्या दस्तावेज़ों की जांच में चूक हुई या यह राजनीतिक चाल?

इस मामले में एक बड़ा सवाल यह भी है कि जब महिला के पास आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर ID, और यहां तक कि BJP worker ID card तक मौजूद हैं, तो फिर किस आधार पर उन्हें बांग्लादेशी कहा गया?

कई सामाजिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आशंका जताई है कि यह मामला सिर्फ पहचान नहीं, बल्कि राजनीतिक भेदभाव का हिस्सा हो सकता है।

कुछ स्थानीय नेताओं का कहना है कि पार्टी में आंतरिक गुटबाजी और बढ़ती असहमति के कारण कुछ पुराने BJP workers को किनारे करने की कोशिशें चल रही हैं।

 कानूनी लड़ाई: अब अदालत का दरवाजा खटखटाएंगी महिला

महिला ने साफ कर दिया है कि वह दिल्ली हाईकोर्ट में इस नोटिस को चुनौती देने जा रही हैं।

उनके वकील ने बताया कि:

“हमारे पास पर्याप्त दस्तावेज़ हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि यह महिला भारतीय नागरिक हैं। उन्हें BJP worker के रूप में सरकार ने खुद कई आयोजनों में सम्मानित किया है। यह मामला राजनीतिक प्रतिशोध का हो सकता है।”

 क्या यह मामला अन्य BJP workers के लिए खतरे की घंटी है?

यह मामला अब सिर्फ एक महिला तक सीमित नहीं रहा। देशभर में हजारों BJP workers इसे एक संदेश के रूप में देख रहे हैं—
अगर पार्टी वफादार कार्यकर्ताओं के साथ भी इस तरह का व्यवहार कर सकती है, तो बाकी की उम्मीद क्या?

कई भाजपा समर्थक सोशल मीडिया पर इस महिला के समर्थन में आ चुके हैं और #JusticeForBJPWorker ट्रेंड भी करने लगा है।

 राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: विपक्ष ने उठाए सवाल

विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर भाजपा को आड़े हाथों लिया है।
कांग्रेस की प्रवक्ता ने कहा:

“भाजपा वफादारी की बात करती है, लेकिन जब अपने कार्यकर्ता को संकट में देखती है, तो पीठ फेर लेती है। क्या यह पार्टी की नीति है?”

आप पार्टी के नेताओं ने इस मामले को संसद में उठाने की मांग की है।

क्या वफादारी की कोई कीमत नहीं?

यह घटना भाजपा के लिए एक साख और नैतिक जिम्मेदारी का सवाल बन चुकी है।
एक महिला जो दशकों तक BJP worker के रूप में ईमानदारी से कार्य करती रही, अगर उसे ही विदेशी घोषित कर दिया जाए, तो यह किसी भी राजनीतिक दल के लिए आत्ममंथन का विषय होना चाहिए।

क्या राजनीति में वफादारी का मोल केवल चुनाव तक सीमित है?
क्या कार्यकर्ताओं की पहचान उनके योगदान से नहीं, बल्कि राजनीतिक समीकरणों से तय की जाती है?

इस मामले के निष्कर्ष पर देशभर के BJP workers की नजरें टिकी हैं। अगर सही जांच न हुई और न्याय नहीं मिला, तो यह मामला भाजपा के संगठनात्मक ढांचे पर गहरे सवाल खड़े कर सकता है।

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