Water Crisis

जब हर सुबह पानी के लिए छिड़ती है जंग: खोड़ा की गलियों में क्यों बन चुका है Water Crisis एक खूनी संघर्ष? वायरल वीडियो

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हाइलाइट्स 

  • Water Crisis के कारण गाजियाबाद के खोड़ा क्षेत्र में पानी को लेकर रोज होती हैं हिंसक झड़पें
  • वॉटर लेवल 1000 फुट नीचे चला गया, सबमर्सिबल पंप लगाने पर पूरी तरह प्रतिबंध
  • नगर पालिका के टैंकरों से हो रही सीमित जल आपूर्ति, महिलाएं रातभर लाइन में
  • पिछले 10 वर्षों से पाइपलाइन परियोजना फाइलों में दबी, कोई ठोस कार्रवाई नहीं
  • सैकड़ों परिवार पानी की किल्लत से परेशान होकर इलाका छोड़ चुके हैं

पानी पर जंग: 21वीं सदी का सच

गाजियाबाद के खोड़ा इलाके की तंग गलियों में अब इंसान इंसान से नहीं, प्यास से लड़ रहा है। Water Crisis इस हद तक बढ़ चुका है कि हर रोज टैंकर आने से पहले महिलाएं और बच्चे बाल्टी लेकर मोर्चा संभाल लेते हैं। यह तस्वीर राजधानी दिल्ली से महज़ 20 किलोमीटर की दूरी पर बसे खोड़ा क्षेत्र की है, जो विकास के दावों के बावजूद जल संकट की भयावह स्थिति में है।

जल स्तर 1000 फुट नीचे, सबमर्सिबल पंप बैन

सबमर्सिबल नहीं, सिर्फ संघर्ष बचा है

खोड़ा इलाके में भूमिगत जल स्तर 1000 फुट से भी नीचे चला गया है। वैज्ञानिकों और जल विशेषज्ञों की माने तो यह स्थिति सीधे तौर पर Water Crisis का परिणाम है, जो अब गंभीर स्वास्थ्य संकट और सामाजिक अस्थिरता को जन्म दे रहा है। इस स्थिति को और भयावह बनाता है उत्तर प्रदेश सरकार का सबमर्सिबल पंप पर प्रतिबंध, जिससे अब स्थानीय लोग केवल नगर पालिका के टैंकरों पर निर्भर हो गए हैं।

टैंकर ही सहारा, पर हर दिन होती है जंग

टैंकर आते ही टूट पड़ते हैं लोग

नगर पालिका द्वारा भेजे जाने वाले टैंकर हर दिन खोड़ा में Water Crisis का असली चेहरा दिखाते हैं। टैंकर के आते ही लाइन में लगी महिलाओं और बच्चों में धक्का-मुक्की शुरू हो जाती है। कई बार यह झगड़े हाथापाई तक पहुंच जाते हैं, जिससे कई घायल भी होते हैं। 14 साल की साक्षी बताती है, “मम्मी सुबह 4 बजे लाइन में लगती हैं, लेकिन कई बार नंबर ही नहीं आता।”

पाइपलाइन: 10 साल से कागजों में

फाइलें तो हैं, पानी नहीं

गाजियाबाद विकास प्राधिकरण और नगर पालिका पिछले 10 साल से खोड़ा में पाइपलाइन बिछाने की योजना बना रहे हैं, लेकिन आज तक जमीन पर कोई काम शुरू नहीं हुआ। हर साल बजट में इसका जिक्र होता है, फाइलें चलती हैं, लेकिन Water Crisis वहीं का वहीं खड़ा है। खोड़ा की निवासी रेखा बताती हैं, “हमने इतने साल से सिर्फ वादे सुने हैं। पानी आया नहीं, नेता जरूर आए थे वोट लेने।”

पलायन शुरू: पानी नहीं तो जीवन कैसे?

पानी की कमी ने तोड़ा लोगों का धैर्य

Water Crisis का असर अब इतना गहरा हो चुका है कि लोग अपना पुश्तैनी घर छोड़कर दूसरे इलाकों में बसने को मजबूर हो रहे हैं। पिछले तीन सालों में खोड़ा से करीब 1,500 परिवार पलायन कर चुके हैं। दिल्ली-नोएडा की सीमाओं पर बसे क्षेत्रों में इन परिवारों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता रवि ठाकुर कहते हैं, “जब जीने का आधार ही पानी नहीं है, तो लोग मजबूर हैं अपना घर छोड़ने को।”

स्वास्थ्य संकट भी गहराया

गंदा पानी, बीमारियों का घर

जहां टैंकर नहीं पहुंचते, वहां लोग गंदे और दूषित पानी से काम चलाते हैं। इससे डायरिया, टाइफाइड, त्वचा संक्रमण और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। खोड़ा की स्थानीय क्लीनिक में डॉक्टर भावना शर्मा बताती हैं, “हर महीने डायरिया के मामलों में 40% तक इजाफा हो रहा है। यह सब Water Crisis का ही दुष्परिणाम है।”

सरकारी उदासीनता पर सवाल

जवाब मांग रही जनता

पिछले वर्षों में Water Crisis को लेकर कई बार आंदोलन भी हुए, लेकिन स्थानीय प्रशासन की प्रतिक्रिया सिर्फ आश्वासनों तक सीमित रही। विधायक और पार्षदों के दावे हर बार चुनावी मंचों तक ही सिमट जाते हैं। इस मुद्दे पर RTI कार्यकर्ता संजय वर्मा कहते हैं, “सरकारी सिस्टम सिर्फ पेपर वर्क तक सीमित है। आम जनता की त्रासदी पर किसी का ध्यान नहीं है।”

क्या है समाधान?

स्थायी समाधान की ज़रूरत

विशेषज्ञों का मानना है कि खोड़ा जैसे इलाकों में Water Crisis से निपटने के लिए निम्नलिखित कदम आवश्यक हैं:

  • हर घर तक पाइपलाइन से जल आपूर्ति
  • वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बनाना
  • भूजल दोहन पर सख्त निगरानी
  • टैंकर की संख्या और गुणवत्ता में सुधार
  • जागरूकता अभियानों का संचालन

 यह सिर्फ खोड़ा की कहानी नहीं है

Water Crisis अब केवल खोड़ा या गाजियाबाद की समस्या नहीं रह गई है। यह देशभर के शहरी और ग्रामीण इलाकों में धीरे-धीरे फैल रही आपदा है। यदि सरकार और समाज समय रहते नहीं जागा, तो अगली पीढ़ी को यह सबसे बड़ा संकट झेलना पड़ेगा।

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