हाइलाइट्स (Highlights)
- Manithaneya Makkal Katchi के अध्यक्ष MH Jawahirullah ने Tamil Nadu में Muslim political representation बढ़ाने की मांग की
- जनसंख्या के अनुपात में विधानसभा सीटों की पुनर्वितरण की अपील
- मुस्लिम समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए राजनीतिक भागीदारी ज़रूरी बताई
- विपक्षी दलों ने मांग को ‘धार्मिक ध्रुवीकरण’ का प्रयास बताया
- संविधान और चुनावी प्रणाली में Muslim political representation को लेकर बहस फिर तेज़ हुई
MH Jawahirullah की मांग ने खड़ा किया राजनीतिक विवाद
तमिलनाडु की राजनीति में एक नया विवाद उस वक्त खड़ा हो गया जब Manithaneya Makkal Katchi (MMK) के अध्यक्ष और पूर्व विधायक MH Jawahirullah ने राज्य में Muslim political representation बढ़ाने की सार्वजनिक मांग की। उन्होंने दावा किया कि राज्य में मुस्लिम आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, लेकिन इसके अनुपात में राजनीतिक भागीदारी अब भी बेहद सीमित है।
Jawahirullah ने तर्क दिया कि मुस्लिम समुदाय की जरूरतें और समस्याएं तभी प्रभावी तरीके से हल की जा सकती हैं जब उन्हें उचित संख्या में विधानसभा और अन्य राजनीतिक मंचों पर प्रतिनिधित्व मिले।
जनसंख्या बनाम प्रतिनिधित्व: आंकड़ों में असंतुलन
तमिलनाडु की कुल जनसंख्या में मुस्लिम समुदाय की भागीदारी लगभग 6-7% मानी जाती है, लेकिन 2021 की अनुमानित जनगणना रिपोर्ट के अनुसार यह आंकड़ा अब बढ़कर लगभग 9% तक पहुँच सकता है। इसके बावजूद, विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या सिर्फ 4-5 तक ही सीमित रही है।
Jawahirullah का कहना है कि यह प्रतिनिधित्व Muslim political representation के लिहाज़ से न्यायपूर्ण नहीं है। उन्होंने चुनाव आयोग और सरकार से मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में सीट पुनर्संरचना की मांग की है, जिससे समुदाय की आवाज़ अधिक मजबूती से सुनाई दे।
संविधान क्या कहता है? धर्म आधारित राजनीति पर संवैधानिक दृष्टिकोण
भारतीय संविधान धर्म आधारित आरक्षण की अनुमति नहीं देता, लेकिन यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को समान अवसर और प्रतिनिधित्व मिले। हालांकि, कुछ राज्य जातीय आधार पर पिछड़ी जातियों को राजनीतिक आरक्षण प्रदान करते हैं, लेकिन Muslim political representation के लिए विशेष आरक्षण की मांग पर अभी तक केंद्र सरकार ने सहमति नहीं दी है।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि यदि धार्मिक आधार पर सीट आवंटन की अनुमति दी गई, तो यह देश की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल खड़ा कर सकता है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया: समर्थन और विरोध दोनों
MH Jawahirullah की इस मांग को लेकर राजनीतिक दलों की राय बंटी हुई है:
- DMK और कांग्रेस जैसे गठबंधन दलों ने इस मुद्दे पर खुलकर तो कुछ नहीं कहा, लेकिन “सामाजिक न्याय” और “प्रतिनिधित्व की समानता” के सिद्धांत का हवाला दिया।
- वहीं, BJP और AIADMK जैसे दलों ने इस मांग को “धार्मिक ध्रुवीकरण” और “तुष्टिकरण की राजनीति” करार दिया।
BJP प्रवक्ता का कहना था —
“भारत में राजनीतिक प्रतिनिधित्व योग्यता और लोकतांत्रिक चुनावों से तय होता है, न कि धर्म के आधार पर। यह मांग संविधान के खिलाफ है।”
विश्लेषण: मुस्लिम समुदाय की सामाजिक स्थिति और प्रतिनिधित्व
तमिलनाडु में मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा हुआ है। सरकारी नौकरियों, उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में उनकी भागीदारी अपेक्षाकृत कम है।
विशेषज्ञों का मानना है कि बेहतर Muslim political representation से इन मुद्दों को नीति निर्माण स्तर पर अधिक प्राथमिकता मिल सकती है। जब समुदाय के अपने प्रतिनिधि विधानसभा में होंगे, तो वे अपनी समस्याओं को सीधे सरकार तक पहुँचा सकेंगे।
इतिहास में झांके तो… मुस्लिम राजनीति की झलक
तमिलनाडु की राजनीति में मुस्लिमों की हिस्सेदारी ऐतिहासिक रूप से सीमित रही है। चाहे वो Indian Union Muslim League (IUML) हो या MMK, इन दलों का प्रभाव स्थानीय स्तर तक ही सीमित रहा है।
हालांकि, Jawahirullah जैसे नेताओं ने शिक्षा, अल्पसंख्यक अधिकार और धर्मनिरपेक्षता के मुद्दों को विधानसभा में उठाया है। लेकिन अब जब वे सीधे Muslim political representation बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, तो यह नया मोड़ राजनीतिक विमर्श को प्रभावित कर रहा है।
क्या है आगे की राह?
Jawahirullah ने साफ किया है कि उनकी मांग सिर्फ मुस्लिमों की नहीं, बल्कि तमिलनाडु के सामाजिक न्याय की भी है। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा केवल एक धर्म का नहीं, बल्कि लोकतंत्र की समावेशिता का है।
उन्होंने प्रस्ताव रखा कि सरकार को जनसंख्या आधारित सीट पुनर्संरचना पर विचार करना चाहिए और जरूरत पड़ी तो अलग ‘Political Representation Commission’ का गठन होना चाहिए जो Muslim political representation समेत सभी हाशिये पर पड़े समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करे।
क्या बढ़ती जनसंख्या के साथ बढ़ेगी राजनीतिक आवाज़?
MH Jawahirullah की यह मांग एक गंभीर और बहस योग्य विषय है। जहां एक ओर यह बात सही है कि हर समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए, वहीं संविधान और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत भी बनाए रखने होंगे।
Muslim political representation को सिर्फ धर्म के आधार पर न देख कर, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में समझना होगा। यह विमर्श केवल तमिलनाडु नहीं, बल्कि पूरे भारत में अल्पसंख्यकों की भूमिका और अधिकारों को लेकर नई बहस को जन्म दे सकता है।