हाइलाइट्स
- मुंबई में एक cancer patient बुजुर्ग महिला को पोते ने सड़क किनारे छोड़ा, समाज को झकझोर देने वाली घटना
- महिला की हालत बेहद नाजुक, अस्पतालों ने भर्ती करने से किया इनकार
- यशोदा गायकवाड़ नामक महिला को पड़ा मिला कचरे के ढेर पर
- पोते पर लगाए सनसनीखेज आरोप: “अब बेकार हो गई हैं इसलिए छोड़ दिया”
- पुलिस जांच में जुटी, दो पते मिले – कांदिवली और मलाड
मुंबई के आरे कॉलोनी में दर्दनाक मंजर
मुंबई के आरे कॉलोनी इलाके में शनिवार सुबह एक ऐसा दृश्य देखने को मिला, जिसने हर उस व्यक्ति की आत्मा को झकझोर दिया, जिसने उस बुजुर्ग महिला की हालत देखी। 60 वर्षीय cancer patient यशोदा गायकवाड़ को लोगों ने कचरे के ढेर पर बेसुध हालत में पड़ा देखा। इतनी कमज़ोर कि हिल भी नहीं पा रही थीं। उनकी आंखों में पीड़ा थी, लेकिन जुबां पर शिकायत नहीं – बस एक सिसकती हुई खामोशी थी।
राहगीरों ने दिखाई इंसानियत
मौके से गुजर रहे कुछ राहगीरों ने जब उन्हें इस हाल में देखा, तो तुरंत पुलिस को सूचित किया। मुंबई पुलिस मौके पर पहुंची और बुजुर्ग महिला से बातचीत की। महिला बेहद कमजोर हालत में थीं, लेकिन उन्होंने जो बात बताई, उसने सबको सन्न कर दिया।
पोते ने छोड़ा कचरे के ढेर पर: “अब दादी बेकार हो चुकी हैं”
Cancer Patient के खिलाफ हुई नफरत?
यशोदा गायकवाड़ ने बताया कि वह cancer patient हैं और पिछले कुछ महीनों से इलाज के लिए अपने पोते पर निर्भर थीं। परंतु जब बीमारी बढ़ने लगी और देखभाल की ज़रूरत ज़्यादा होने लगी, तो उनके पोते ने उन्हें आरे कॉलोनी लाकर सड़क किनारे छोड़ दिया।
उनका कथन था – “वो कहता था कि अब मैं किसी काम की नहीं रही, सिर्फ बोझ हूं।”
एक संवेदनहीन समाज की तस्वीर
यह घटना सिर्फ एक बुजुर्ग महिला के त्याग की नहीं, बल्कि पूरे समाज के रिश्तों में आई दरार की प्रतीक बन गई है। Cancer patient होना कोई अपराध नहीं, परंतु जिस तरह से उन्हें छोड़ा गया, वह संवेदनाओं की हत्या जैसा है।
अस्पतालों ने भी झटक लिया हाथ
इलाज के लिए भटकती रही पुलिस
मुंबई पुलिस ने महिला को अस्पताल ले जाने की कोशिश की, लेकिन उनकी स्थिति देख कई निजी अस्पतालों ने उन्हें भर्ती करने से मना कर दिया। कई घंटों तक प्रयास करने के बाद आखिरकार शाम 5:30 बजे कूपर अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया।
डॉक्टरों की राय
कूपर अस्पताल के डॉक्टरों ने पुष्टि की कि यशोदा गायकवाड़ को स्किन कैंसर है और उनकी स्थिति बेहद गंभीर बनी हुई है। अस्पताल प्रशासन ने उन्हें आईसीयू में स्थानांतरित कर विशेष निगरानी में रखा है। Cancer patient होने के चलते उन्हें निरंतर चिकित्सा सहायता की ज़रूरत है।
पुलिस कर रही परिवार की तलाश
दो पते – लेकिन कोई जिम्मेदार नहीं
महिला ने पुलिस को दो पते बताए – एक कांदिवली का और दूसरा मलाड का। पुलिस ने तत्काल इन दोनों क्षेत्रों के थानों में तस्वीर और विवरण साझा किए हैं।
पोते की तलाश में टीमें तैनात
मुंबई पुलिस ने आरोपी पोते की तलाश शुरू कर दी है। महिला की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए अब उसके खिलाफ मामला दर्ज करने की तैयारी हो रही है। अगर महिला के आरोप सही पाए जाते हैं, तो उसे धारा 317 (नाबालिग या अक्षम व्यक्ति को त्यागना) व 406 (विश्वासघात) के तहत सज़ा मिल सकती है।
क्या यह सिर्फ उपेक्षा है या कोई गहरी साजिश?
कानून से बड़ा सवाल: Cancer patient होने पर क्या समाज से बहिष्कृत होना तय है?
इस घटना ने सिर्फ एक इंसान की संवेदनहीनता ही नहीं, बल्कि एक पूरे समाज की चुप्पी को भी बेनकाब किया है। क्या बीमार होना अब शर्म की बात बन गई है? क्या बुजुर्गों की देखभाल अब अनचाही जिम्मेदारी मानी जाने लगी है?
सामाजिक संस्थाएं भी चुप
अभी तक किसी एनजीओ या सामाजिक संगठन ने इस मामले में आगे आकर सहयोग नहीं दिया है। सवाल यह भी उठता है कि जब एक cancer patient सड़क पर बेसहारा पड़ी हो, तो क्या हम सिर्फ वीडियो बनाने तक ही सीमित रह गए हैं?
समाज को आत्ममंथन की ज़रूरत
बुजुर्गों की दुर्दशा बढ़ रही
भारत में लाखों बुजुर्ग आज अकेलेपन, बीमारी और उपेक्षा का सामना कर रहे हैं। Cancer patient यशोदा गायकवाड़ की कहानी एक बानगी है उस सच्चाई की, जिसे हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
सरकार और समाज की ज़िम्मेदारी
सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों के लिए तत्काल राहत और पुनर्वास की व्यवस्था हो। साथ ही सामाजिक संगठनों को भी cancer patient जैसे मामलों में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। बुजुर्गों के लिए न सिर्फ फिजिकल हेल्थ, बल्कि मानसिक सहयोग भी ज़रूरी है।
संवेदनशीलता की पुनर्स्थापना ज़रूरी
यशोदा गायकवाड़ की कहानी केवल एक खबर नहीं, एक चेतावनी है। अगर हमने आज उपेक्षा और असंवेदनशीलता के इस बढ़ते चलन पर अंकुश नहीं लगाया, तो कल यह समस्या और विकराल रूप ले सकती है। Cancer patient होना जीवन का अंत नहीं होना चाहिए – यह हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है कि हम ऐसे लोगों को सहारा दें, न कि उन्हें सड़क पर फेंक दें।