Religious discrimination

कथावाचक के अपमान पर भड़के सपा प्रमुख अखिलेश यादव, ट्वीट कर दी चेतावनी – प्रशासन को कार्रवाई के लिए दिया 3 दिन का अल्टीमेटम

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Table of Contents

हाइलाइट्स

  • Religious discrimination को लेकर इटावा में कथावाचक के साथ क्रूरता, वीडियो ने मचाई सनसनी
  •  कथावाचक मणि सिंह यादव को जाति बताने पर अपमानित कर, मुंडन और नाक रगड़वाने जैसी अमानवीय घटनाएं
  •  बकेवर थाना क्षेत्र के दादरपुर गांव में 21 से 27 जून तक हो रही थी भागवत कथा
  •  चार आरोपी पुलिस की गिरफ्त में, मुख्य आरोपी निक्की अवस्थी बाल काटते वीडियो में कैद
  •  धार्मिक कार्यक्रमों में religious discrimination पर मानवाधिकार संगठनों ने जताई गहरी चिंता

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के बकेवर थाना क्षेत्र में स्थित दादरपुर गांव में religious discrimination का एक अत्यंत निंदनीय मामला सामने आया है। धार्मिक कार्यक्रम के दौरान एक कथावाचक मणि सिंह यादव के साथ जो कुछ हुआ, वह सिर्फ इंसानियत को नहीं, बल्कि पूरे धार्मिक तानेबाने को झकझोर देने वाला है।

यह घटना 21 से 27 जून के बीच उस समय घटित हुई जब कथावाचक गांव में भागवत कथा करने के लिए आए थे। लेकिन कथावाचक की जातिगत पहचान सामने आने के बाद उनके साथ जो अमानवीय व्यवहार किया गया, उसने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या 21वीं सदी में भी हम religious discrimination से आगे नहीं बढ़ पाए हैं?

कैसे शुरू हुआ विवाद: जाति पूछते ही बदला बर्ताव

खानपान के दौरान उत्पीड़न की शुरुआत

कथावाचक मणि सिंह यादव के अनुसार, जब वे भोजन कर रहे थे, तब कार्यक्रम के आयोजक पप्पू बाबा ने उनकी जाति पूछी। यादव होने की जानकारी मिलते ही उन्हें कथित रूप से “दलित” कहकर अपमानित किया गया। इसके बाद कहा गया — “ब्राह्मणों के गांव में भागवत कथा करने की हिम्मत कैसे की?”

यह पूछताछ और अपमान यहीं नहीं रुका। कथावाचक के साथ मौजूद उनके सहयोगी को भी मारा-पीटा गया। कथावाचक को बाल पकड़कर घसीटा गया और फिर सार्वजनिक रूप से उनका सिर मुंडवा दिया गया।

वीडियो में कैद हुई क्रूरता: वायरल क्लिप ने खोली सच्चाई

सोशल मीडिया पर वायरल हुआ religious discrimination का यह मामला

पूरी घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया है। इस वीडियो में कथावाचक का सिर जबरन मुंडवाते हुए, उन्हें ज़मीन पर घसीटते और एक महिला यजमान के पैरों में नाक रगड़वाने जैसी बर्बर घटनाएं साफ देखी जा सकती हैं।

यह दृश्य सिर्फ religious discrimination का उदाहरण नहीं, बल्कि धर्म की आड़ में हो रहे जातिगत अत्याचार की कड़वी हकीकत है।

पुलिस की त्वरित कार्रवाई: चार आरोपी गिरफ्तार

एसएसपी ने खुद लिया संज्ञान, 4 गिरफ्त में

इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए इटावा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बृजेश कुमार श्रीवास्तव ने त्वरित कार्रवाई की और चार आरोपियों को गिरफ्तार किया।
गिरफ्तार लोगों में आशीष तिवारी, उत्तम अवस्थी, प्रथम दुबे उर्फ मनु दुबे, और निक्की अवस्थी शामिल हैं। निक्की अवस्थी वही आरोपी है जो कथावाचक के बाल काटते हुए वीडियो में स्पष्ट रूप से देखा गया।

एसएसपी ने बताया कि मामले में और भी नाम सामने आ सकते हैं, और जांच के दौरान किसी को बख्शा नहीं जाएगा।

Religious Discrimination पर उठे सवाल: क्या धर्म सिर्फ कुछ जातियों की बपौती है?

मानवाधिकार संगठनों और संत समाज की तीखी प्रतिक्रिया

यह मामला केवल एक कथावाचक से जुड़ा नहीं है, बल्कि पूरे समाज की उस सोच को उजागर करता है, जो अब भी जाति और धर्म के नाम पर लोगों को नीचा दिखाने में लगी है।

भारत एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश है, जहां religious discrimination के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। इस घटना ने इस बात को रेखांकित किया है कि ग्रामीण भारत में अब भी धर्म और जाति के नाम पर गहरी खाई मौजूद है।

मानवाधिकार संगठन और संत समाज ने इस कृत्य की तीव्र निंदा की है और दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग की है।

Religious Discrimination पर क्या कहता है कानून?

भारतीय संविधान की धारा 15 कहती है कि धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, आईपीसी की कई धाराएं ऐसे कृत्यों को संज्ञेय अपराध मानती हैं।

इस घटना में religious discrimination, शारीरिक उत्पीड़न, सामाजिक अपमान और सार्वजनिक तौर पर मानहानि जैसे कई गंभीर आरोप बनते हैं। यदि दोष साबित हो जाते हैं, तो आरोपियों को 7 से 10 साल तक की सजा हो सकती है।

धार्मिक कार्यक्रम की गरिमा को कलंकित करने वाला कृत्य

धर्म के नाम पर असहिष्णुता समाज को ले जा रही है विनाश की ओर

भागवत कथा जैसे आयोजनों का उद्देश्य अध्यात्म, प्रेम, और समानता का संदेश देना होता है। लेकिन religious discrimination की इस शर्मनाक घटना ने ऐसे आयोजनों की गरिमा को धूल में मिला दिया है।

जहां एक ओर देश में “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की बात की जाती है, वहीं दूसरी ओर इस तरह की घटनाएं साबित करती हैं कि सामाजिक सुधार की राह अभी बहुत लंबी है।

 धार्मिकता में छुपे जातिगत जहर से कब मिलेगा मुक्ति?

इटावा की यह घटना केवल एक क्षेत्रीय समाचार नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। जब तक religious discrimination को जड़ से खत्म नहीं किया जाएगा, तब तक कथावाचकों, पुजारियों, और आम नागरिकों के साथ इस तरह की अमानवीय घटनाएं होती रहेंगी।

हमें एकजुट होकर ऐसी मानसिकता के खिलाफ खड़ा होना होगा। धर्म को बांटने का नहीं, जोड़ने का माध्यम बनाना होगा।

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