Floating Shivling

क्या सच में हवा में तैरता था सोमनाथ मंदिर का शिवलिंग? 1000 साल पुराना रहस्य आज भी अनसुलझा!

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 हाइलाइट्स

  • Floating Shivling की रहस्यमयी मान्यता ने सदियों से वैज्ञानिकों और श्रद्धालुओं को किया है चकित
  • सोमनाथ मंदिर का इतिहास करीब 2000 वर्षों में कई बार विध्वंस और पुनर्निर्माण का साक्षी
  • चंद्रदेव ने भगवान शिव की तपस्या कर यहाँ की थी स्थापना – hence ‘सोमनाथ’
  • महमूद गजनवी से लेकर मुगलों तक ने कई बार किया आक्रमण, पर हर बार हुआ पुनर्निर्माण
  • आज़ादी के बाद सरदार पटेल और डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने फिर रचाया मंदिर का स्वर्णिम इतिहास

 सोमनाथ मंदिर: इतिहास, संस्कृति और चमत्कार का संगम

गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित सोमनाथ मंदिर, भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला और सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत के गौरव, आस्था और आक्रमणों के बीच फिर खड़े हो जाने वाली जिद का प्रतीक है।

पौराणिक कथाओं से लेकर आधुनिक ऐतिहासिक प्रमाणों तक, सोमनाथ मंदिर का अस्तित्व सदियों से श्रद्धालुओं, आक्रमणकारियों और इतिहासकारों के लिए रहस्य और प्रेरणा का विषय बना रहा है।

 चंद्रमा के श्राप से जन्मी थी ज्योतिर्लिंग की यह परंपरा

 कैसे मिला ‘सोमनाथ’ नाम?

कथा के अनुसार, राजा दक्ष प्रजापति के श्राप से पीड़ित चंद्रदेव ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। शिव ने उन्हें श्रापमुक्त किया, और इसी स्थान पर चंद्रदेव ने शिवलिंग की स्थापना की। तभी से इस स्थान का नाम सोमनाथ पड़ा, जिसमें ‘सोम’ का अर्थ चंद्रमा है।

 Floating Shivling: विज्ञान के लिए रहस्य, आस्था के लिए चमत्कार

 क्या वास्तव में तैरता था शिवलिंग?

13वीं सदी के अरब लेखक ज़खरिया अल काज़िनी ने अपनी पुस्तक ‘Wonders of Creation’ में Floating Shivling का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा कि आक्रमणकारी महमूद गजनवी ने जब 1025 ईस्वी में मंदिर पर हमला किया, तब उसने शिवलिंग को जमीन और छत के बीच हवा में तैरते देखा।

 क्या था Floating Shivling का रहस्य?

कुछ मान्यताओं के अनुसार, मंदिर की संरचना में चुम्बकीय पत्थरों का ऐसा जाल था कि शिवलिंग हवा में स्थिर रह सके। इसे आज के magnetic levitation से जोड़ा जाता है। हालाँकि आधुनिक विज्ञान ने आज तक इस घटना का कोई ठोस प्रमाण नहीं दिया है, लेकिन श्रद्धालुओं के लिए यह आज भी भगवान शिव की चमत्कारी शक्ति का प्रतीक है।

 विध्वंस और पुनर्निर्माण: संघर्षों की श्रृंखला

 हमले और पुनर्निर्माण के प्रमुख पड़ाव

  • 649 ई.: वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया
  • 815 ई.: सिंध के सूबेदार अल जुनैद ने मंदिर को नष्ट किया, प्रतिहार राजा नागभट्ट ने पुनर्निर्माण कराया
  • 1025 ई.: महमूद गजनवी ने मंदिर को लूटा और तोड़ा
  • 11वीं-12वीं सदी: राजा भीमदेव, भोज, और कुमारपाल द्वारा भव्य पुनर्निर्माण कराया गया
  • 1947 के बाद: सरदार वल्लभभाई पटेल ने आज़ादी के बाद मंदिर पुनर्निर्माण का बीड़ा उठाया
  • 1955: डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्र को यह मंदिर समर्पित किया

 सरदार पटेल और आधुनिक सोमनाथ

 एक स्वतंत्र भारत का संकल्प

भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने जूनागढ़ को भारत में मिलाने के तुरंत बाद 1947 में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का निश्चय किया। उन्होंने इसे भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान का प्रतीक माना।

उनकी मृत्यु के बाद के.एम. मुंशी के निर्देशन में मंदिर का निर्माण पूर्ण हुआ। 1 दिसंबर 1955 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने सोमनाथ मंदिर को राष्ट्र को समर्पित किया।

 स्थापत्य कला और चमत्कारिक निर्माण

 आज का मंदिर: आधुनिकता और प्राचीनता का संगम

वर्तमान में बना सोमनाथ मंदिर चालुक्य शैली में निर्मित है। यह पूरी तरह से बलुआ पत्थरों से निर्मित है और इसकी भव्यता किसी भी आगंतुक को मंत्रमुग्ध कर देती है। इसकी छत, स्तंभ और मुख्य द्वार पर अद्वितीय शिल्पकारी के उदाहरण देखे जा सकते हैं।

 तीर्थ यात्रा से पर्यटन तक: आज का सोमनाथ

 श्रद्धा का केंद्र

हर साल लाखों श्रद्धालु और पर्यटक सोमनाथ आते हैं। यहाँ Aarti, Sound and Light Show, और Triveni Sangam जैसे स्थान लोगों को धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों ही रूपों में आकर्षित करते हैं।

 देश-विदेश से शोधकर्ता

Floating Shivling की कहानियों ने न सिर्फ श्रद्धालुओं को, बल्कि वैज्ञानिकों, इतिहासकारों और शोधकर्ताओं को भी आकर्षित किया है। आधुनिक भौतिकी और प्राचीन स्थापत्य के बीच यह मंदिर संवाद की तरह खड़ा है।

आस्था, विज्ञान और इतिहास का त्रिवेणी संगम

Floating Shivling की रहस्यकथा और बार-बार हुए पुनर्निर्माणों की गाथा सोमनाथ मंदिर को भारत की सांस्कृतिक आत्मा का जीवंत प्रतीक बनाती है। यह मंदिर केवल ईंट और पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि श्रद्धा, बलिदान और पुनरुत्थान की जीवंत कथा है।

यह मंदिर आज भी यह सिद्ध करता है कि कोई भी शक्ति आस्था की नींव को हिला नहीं सकती – वह चाहे इतिहास का गजनवी हो या आधुनिक संशयवादी वैज्ञानिक।

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