हाइलाइट्स
- Lost Nuclear Bombs की घटनाएं सिर्फ थ्योरी नहीं, सच्ची और खतरनाक हकीकत हैं
- 1950 से अब तक 30 से ज्यादा परमाणु बम ‘ब्रोकेन एरो’ के रूप में लापता हो चुके हैं
- अमेरिका, रूस, चीन, भारत जैसे देशों की गोपनीयता इन हादसों को और रहस्यमय बनाती है
- समुद्र, जंगल और बर्फीली घाटियों में आज भी दबे हैं विनाश के उपकरण
- विशेषज्ञों का मानना है कि Lost Nuclear Bombs अब भी सक्रिय और जानलेवा हो सकते हैं
कल्पना कीजिए कि कोई ऐसा बम, जो पूरा शहर नहीं, बल्कि पूरा देश तबाह कर सकता है, किसी वीरान जगह पर गुम हो गया हो। वो भी इस यकीन के साथ कि अगर किसी दिन वह हाथ लग गया — तो नतीजा इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में दर्ज हो सकता है। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि Lost Nuclear Bombs की कड़वी सच्चाई है।
‘ब्रोकेन एरो’ – जब परमाणु बम गायब हो जाते हैं
अमेरिकी सेना ने एक कोडवर्ड गढ़ा – Broken Arrow। इसका मतलब होता है ऐसा परमाणु हादसा जिसमें युद्ध न हो, लेकिन हथियार लापता या दुर्घटनाग्रस्त हो जाए। 1950 के दशक से लेकर अब तक 30 से अधिक ऐसे मामले सामने आ चुके हैं। हर बार, यह खबर थोड़ी सी देर से ही सही, लेकिन आई – और दुनिया को हिला गई।
1958 – जॉर्जिया का टाइबी द्वीप और ‘मार्क 15’ बम
5 फरवरी 1958 को एक B-47 बमवर्षक और F-86 फाइटर जेट के बीच टकराव हुआ। जान बचाने के लिए पायलट ने अपने पास मौजूद Mark 15 thermonuclear bomb को टाइबी द्वीप के पास समुद्र में गिरा दिया। आधिकारिक रिपोर्ट में दावा किया गया कि बम निष्क्रिय था, लेकिन कई परमाणु विशेषज्ञ मानते हैं कि वह बम पूरी तरह सक्रिय था। आज तक वह Lost Nuclear Bomb नहीं मिला।
1965 – फिलीपीन सागर में समा गया क़हर
USS Ticonderoga नामक अमेरिकी युद्धपोत से एक A-4 Skyhawk विमान समुद्र में गिर गया। इस विमान में एक B43 thermonuclear bomb था। पायलट, विमान और बम — तीनों आज तक नहीं मिले। यह हादसा ओकिनावा के पास हुआ था और अमेरिका ने इसे दो दशक तक छुपाए रखा।
हिमालय में खोया परमाणु डिवाइस – भारत का रहस्य
भारत भी Lost Nuclear Bombs की इस कहानी से अछूता नहीं रहा है। 1965 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA ने एक रेडियोएक्टिव निगरानी डिवाइस नंदा देवी पर्वत पर चीन की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए लगाया था। लेकिन भारी बर्फबारी के चलते वह डिवाइस वहीं दब गया। अब तक वह नहीं मिला है और आशंका है कि वह बर्फ के नीचे रिसाव कर रहा है।
क्या Lost Nuclear Bombs अब भी सक्रिय हैं?
परमाणु हथियारों की सबसे खतरनाक बात यह है कि वो हमेशा निष्क्रिय नहीं हो जाते। अगर बम का कोर — जिसमें प्लूटोनियम या यूरेनियम होता है — सुरक्षित है, तो वह बम दशकों बाद भी फंक्शन कर सकता है। यानि, अगर इन Lost Nuclear Bombs में से कोई एक भी गलत हाथों में चला गया, तो आज भी वह वही तबाही मचा सकता है जो 1945 में जापान ने झेली थी।
सरकारें क्यों छुपाती हैं यह सच?
दुनिया की ताकतवर सरकारें नहीं चाहतीं कि उनके नागरिक जानें कि उनके देश ने कितनी बड़ी लापरवाही की है। अमेरिका, रूस, चीन, भारत — सभी देशों ने ऐसे हादसों को कई वर्षों तक छुपा कर रखा। इसका मुख्य कारण है डर – आतंकवाद, जन विद्रोह, वैश्विक अस्थिरता।
यह रणनीति ही है कि Lost Nuclear Bombs की अधिकांश घटनाओं की जानकारी या तो “गोपनीय” रखी जाती है या फिर “गुमनाम”।
कहां कहां हो सकते हैं ये Lost Nuclear Bombs?
- अमेरिका के टाइबी द्वीप के समुद्री इलाके
- जापान के पास फिलीपीन सागर की गहराइयां
- भारत के लद्दाख और नंदा देवी के ग्लेशियर
- रूस के साइबेरिया में बर्फीले क्षेत्र
- अटलांटिक और आर्कटिक महासागर की अतल गहराई
इन सभी स्थानों की खासियत है – दूरदराज, वीरान और कठिन पहुंच। यही कारण है कि ये Lost Nuclear Bombs अब तक नहीं मिले।
अगर कल कोई बम मिल जाए तो?
जरा सोचिए — अगर कल इनमें से कोई Lost Nuclear Bomb आतंकी संगठन के हाथ लग जाए? यह एक ग्लोबल सिक्योरिटी क्राइसिस होगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि भविष्य में यह खतरा और बढ़ सकता है क्योंकि अब तकनीक इतनी उन्नत हो गई है कि गुम हथियारों को खोजा जा सकता है, पर साथ ही, उनका दुरुपयोग भी आसान हो गया है।
क्या कभी मिल पाएंगे ये Lost Nuclear Bombs?
परमाणु हथियारों को ट्रैक करने की तकनीक भले ही विकसित हुई है, लेकिन इतने पुराने और छुपे हुए बमों को ढूंढना आज भी मुश्किल है। अमेरिका ने टाइबी द्वीप पर कई बार सर्च ऑपरेशन चलाए, लेकिन हर बार नाकामी हाथ लगी। चीन और भारत के मामले तो अभी भी रहस्य हैं जिन पर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं होती।
‘Lost Nuclear Bombs’ — क्या बनेंगे भविष्य का विनाशक हथियार?
आज जब दुनिया एक नई शीतयुद्ध की ओर बढ़ रही है, और आतंकवाद फिर सिर उठा रहा है, ऐसे में Lost Nuclear Bombs भविष्य में विनाशक हथियार बन सकते हैं। ये बम अब कोई गोपनीय रिपोर्ट नहीं, बल्कि मानवता के लिए संभावित खतरे हैं। और जब तक ये नहीं मिलते, हर दिन एक अनकहे डर के साए में गुजरता रहेगा।
कब जागेगी दुनिया?
‘ब्रोकेन एरो’ जैसे हादसों की सच्चाई दुनिया की आंखों में झोंकी गई धूल है। इन Lost Nuclear Bombs का अस्तित्व न केवल सैन्य विफलता है, बल्कि नैतिक और मानवीय विफलता भी है। अब समय आ गया है कि विश्व एक साथ आकर इन खतरों से निपटने के लिए ठोस कदम उठाए। क्योंकि अगर ये बम दोबारा जगे, तो शायद दुनिया को उनके लिए तैयार होने का मौका भी न मिले।