हनुमान चालीसा: संकट मुक्ति की राह प्रदर्शित करता शक्तिशाली मंत्र

हनुमान चालीसा: संकट मुक्ति की राह प्रदर्शित करता शक्तिशाली मंत्र



हनुमान चालीसा भगवान श्री हनुमानजी को समर्पित एक प्रसिद्ध भजन है जिसमें उनके गुणों, महिमा, और शक्ति का वर्णन है। यह मंत्र हिंदू धर्म में श्रद्धा रखने वालों के लिए विशेष महत्व रखता है। हनुमान चालीसा का पाठ करने से संकटों का निवारण होता है और सभी प्रकार की मुश्किलें दूर होती हैं। इस मंत्र को प्रतिदिन अध्ययन करने से जीवन में खुशियां और समृद्धि की प्राप्ति होती है।


भगवान हनुमान (Lord Hanuman)

भगवान हनुमान, भगवान शिव के भक्त और भगवान राम के दिव्य भक्त हैं। उन्हें मारुति, पवनपुत्र, और बजरंगबली भी कहा जाता है। हनुमानजी अपने शक्तिशाली भवनीर्मित्त शरीर और वीरता के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके भक्ति और समर्पण के कारण वे संकटमोचक माने जाते हैं।


हनुमान चालीसा का महत्व (Importance of Hanuman Chalisa)

हनुमान चालीसा का पाठ करने से भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त होती है और सभी प्रकार के दुखों और दुर्भाग्य से मुक्ति मिलती है। इस मंत्र का नियमित जाप करने से शत्रुओं के प्रति रक्षा होती है और व्यापार या सरकारी नौकरी में सफलता मिलती है। हनुमान चालीसा के पाठ से समस्त संकटों का समाधान होता है और व्यक्ति का मानसिक शांति बनी रहती है।


हनुमान चालीसा के लाभ (Benefits of Hanuman Chalisa)

भक्ति और श्रद्धा की वृद्धि होती है।

सभी प्रकार के भय और संकट से मुक्ति मिलती है।

शत्रुओं से रक्षा की जाती है।

धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

स्वास्थ्य में सुधार होता है।

हनुमान चालीसा के मंत्र (Mantras of Hanuman Chalisa)

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥


रामदूत अतुलित बलधामा।

अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥


महावीर विक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी॥


कंचन बरन बिराज सुबेसा।

कानन कुंडल कुंचित केसा॥


हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजै।

काँधे मूँज जनेऊ साजै॥


संकर सुवन केसरीनन्दन।

तेज प्रताप महा जगवन्दन॥


विद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर॥


प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया॥


सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।

बिकट रूप धरि लंक जरावा॥


भीम रूप धरि असुर सँहारे।

रामचन्द्र के काज सँवारे॥


लाय सँजीवन लखन जियाये।

श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥


रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥


सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।

अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥


सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।

नारद सारद सहित अहीसा॥


जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।

कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥


तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राज पद दीन्हा॥


तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।

लंकेस्वर भए सब जग जाना॥


जुग सहस्त्र जोजन पर भानु।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥


प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं॥


दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥


राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥


सब सुख लहैं तुम्हारी सरना।

तुम रच्छक काहू को डर ना॥


आपन तेज सम्हारो आपै।

तीनों लोक हांक तें कांपै॥


भूत पिसाच निकट नहिं आवै।

महावीर जब नाम सुनावै॥


नासै रोग हरै सब पीरा।

जपत निरंतर हनुमत बीरा॥


संकट तें हनुमान छुड़ावै।

मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥


सब पर राम तपस्वी राजा।

तिनके काज सकल तुम साजा॥


और मनोरथ जो कोई लावै।

सोई अमित जीवन फल पावै॥


चारों जुग परताप तुम्हारा।

है परसिद्ध जगत उजियारा॥


साधु संत के तुम रखवारे।

असुर निकंदन राम दुलारे॥


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अस बर दीन जानकी माता॥


राम रसायन तुम्हरे पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा॥


तुम्हरे भजन राम को पावै।

जनम जनम के दुख बिसरावै॥


अंत काल रघुबर पुर जाई।

जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥


और देवता चित्त न धरई।

हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥


संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥


जै जै जै हनुमान गोसाईं।

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥


जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बंदि महा सुख होई॥


जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा॥


तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

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