Palm Wine

सुबह अमृत, दोपहर ज़हर: क्या वाकई ‘ताड़ी’ है रामबाण या धीरे-धीरे मारने वाला नशा?

Lifestyle

हाइलाइट्स

  • Palm Wine के औषधीय गुणों ने बड़कागांव में इसे दवा और नशे दोनों के रूप में स्थापित कर दिया है।
  • सूर्योदय से पहले ली गई ताड़ी शरीर को कई बीमारियों से निजात दिलाती है।
  • दोपहर बाद की Palm Wine में नशे की प्रवृत्ति देखी जाती है, जिससे इसे दारू का विकल्प भी माना जाता है।
  • महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सभी करते हैं सुबह की ताड़ी का सेवन, जिससे इसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है।
  • ताड़ी उत्पादन ने कई ग्रामीण परिवारों को आत्मनिर्भर बनाया है, खासकर पांसी समाज के लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं।

Palm Wine: बड़कागांव की पारंपरिक जीवनशैली का अहम हिस्सा

बड़कागांव, हजारीबाग — झारखंड के हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड में एक पारंपरिक पेय पदार्थ इन दिनों चर्चा में है — Palm Wine, जिसे स्थानीय भाषा में “ताड़ी” कहा जाता है। यह न सिर्फ स्वाद में अनोखा है बल्कि इसके औषधीय गुणों के कारण यह ग्रामीण जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।

जहां सुबह की ताड़ी को प्राकृतिक औषधि माना जाता है, वहीं दोपहर के बाद की ताड़ी हल्के नशे की स्थिति पैदा करती है, जिससे यह एक स्थानीय पेय से अधिक एक सामाजिक-आर्थिक गतिविधि बन चुकी है।

 सूर्योदय से पहले की ताड़ी: रामबाण औषधि

शरीर के लिए लाभकारी

बड़कागांव के वैद्य अरुण कुमार का कहना है कि सुबह की Palm Wine में भरपूर मात्रा में विटामिन-A, B और C होते हैं। इसके नियमित सेवन से आंखों की रोशनी बढ़ती है, हड्डियाँ मजबूत होती हैं और इम्युनिटी में सुधार होता है। खासकर जौंडिस, पेट दर्द, कब्ज और वजन की समस्या में यह प्राकृतिक पेय असरदार साबित होता है।

 दोपहर के बाद की Palm Wine: नशा या परंपरा?

स्वाद और असर में बदलाव

सुबह की ताड़ी का स्वाद मीठा और ताज़ा होता है, जबकि दोपहर बाद यही Palm Wine खट्टा होकर नशीली हो जाती है। यही कारण है कि कई ग्रामीण इसे शराब का विकल्प मानते हैं, और दोपहर के समय इसे संयम से पीने की सलाह दी जाती है।

 हर उम्र का चहेता पेय

महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की पहली पसंद

बड़कागांव में Palm Wine केवल पुरुषों तक सीमित नहीं है। इसके औषधीय गुणों के कारण महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी इसका सेवन करते हैं। यह नजारा ताड़ी के अड्डों में आसानी से देखा जा सकता है, जहां सुबह-सुबह लोग कुल्हड़ भर-भर के ताड़ी पीते हैं।

 ताड़ी उत्पादन: ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़

आत्मनिर्भरता की कहानी

बड़कागांव, झरिवा, लंगातू, चोरका, पंडरिया, खैरातरी, लौकुरा, चंदौल, पुंदोल और केरेडारी के पतरा व पगार जैसे क्षेत्रों में Palm Wine का व्यापक उत्पादन होता है। इस व्यवसाय से पांसी जाति के लोग विशेष रूप से जुड़े हुए हैं और इससे सैकड़ों परिवारों की आजीविका चल रही है।

कीमत और बिक्री

ताड़ी की कीमत 20 से 40 रुपये प्रति कुल्हड़ है, जो आम आदमी की पहुंच में है। इसके अड्डों पर सुबह और शाम भीड़ लगी रहती है, जो इसकी लोकप्रियता और मांग का प्रमाण है।

 कैसे बनती है Palm Wine?

खजूर के पेड़ों से रस निकासी की प्रक्रिया

स्थानीय ताड़ी उत्पादक सुरेंद्र चौधरी और सरजू चौधरी बताते हैं कि खजूर के पेड़ की शाखा के पास की छाल को चाकू से हल्के से छीलकर वहां एक मिट्टी का बर्तन टांगा जाता है। पेड़ से निकलता रस उस बर्तन में रात भर जमा होता है। यही ताज़ा रस सुबह ‘Palm Wine’ बनकर लोगों की सेहत का रक्षक बन जाता है।

 ताड़ी के औषधीय लाभ

वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

  • विटामिन ए – आंखों के लिए लाभदायक
  • विटामिन बी – पाचन तंत्र मजबूत करता है
  • विटामिन सी – इम्युनिटी बढ़ाता है
  • खनिज तत्व – हड्डियों की मजबूती और ब्लड प्रेशर नियंत्रित करने में सहायक
  • प्राकृतिक शुगर – मध्यम मात्रा में एनर्जी बूस्टर

 विशेषज्ञों की राय

रांची के आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. नीलमणि पाठक का कहना है कि Palm Wine यदि संयम और सुबह के समय सेवन किया जाए, तो यह एक औषधि की तरह काम करता है। लेकिन नशे की प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए दोपहर बाद इसके सेवन से बचना चाहिए।

 चुनौतियाँ और सामाजिक दृष्टिकोण

हालांकि Palm Wine ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया है, लेकिन इसके दोपहर बाद के नशे वाले प्रभाव ने इसे सामाजिक विवादों में भी घसीटा है। कई बार नशे में धुत ग्रामीणों की आपसी झड़पें भी देखी गई हैं। इसलिए इस पर संयम और जागरूकता बेहद जरूरी है।

 प्रशासन और नीति

वर्तमान में ताड़ी के व्यवसाय को कानूनी मान्यता नहीं मिली है, परंतु इसकी सामाजिक स्वीकार्यता इतनी है कि प्रशासन भी इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता। ग्रामीण विकास के दृष्टिकोण से Palm Wine व्यवसाय को संगठित और सुरक्षित बनाने की आवश्यकता है।

Palm Wine न केवल बड़कागांव की सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि यह ग्रामीण जीवनशैली, स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता की भी प्रतीक बन चुकी है। यदि इसके सेवन और उत्पादन को सुनियोजित किया जाए, तो यह पूरे झारखंड के लिए एक मॉडल बन सकता है।

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