लखनऊ। भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी लौटनराम निषाद ने उच्च न्यायपालिका में कॉलेजियम सिस्टम के जरिए न्यायाधीशों की नियुक्ति को असंवैधानिक बताते हुए इसे समाप्त करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम जातिवाद, परिवारवाद और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देता है, जिससे ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग का उच्च न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व नगण्य रह गया है।
वंचित वर्गों को न्याय से वंचित करने का आरोप
निषाद ने कहा कि उच्च न्यायपालिका में अब तक ऊँची जातियों का वर्चस्व कायम है, जिससे वंचित वर्गों को न्याय नहीं मिल पाता। उच्च न्यायालयों में 1114 स्वीकृत पदों में से केवल 780 न्यायाधीश ही कार्यरत हैं, जबकि 334 पद रिक्त हैं। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 224 के अंतर्गत होती है, जो आरक्षण की व्यवस्था नहीं करते।
सामाजिक विविधता की उपेक्षा
निषाद ने कहा कि सरकार द्वारा मुख्य न्यायाधीशों से न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने का अनुरोध किया जाता है, लेकिन जातिवादी मानसिकता के कारण वंचित वर्गों को अवसर नहीं दिया जाता। उन्होंने बताया कि अब तक केवल चार अनुसूचित जाति और दो ओबीसी न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त हुए हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति का कोई भी प्रतिनिधित्व नहीं है।
न्यायपालिका में आरक्षण और नई प्रणाली की मांग
लौटनराम निषाद ने संविधान के अनुच्छेद 12 और 312(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट को "राज्य" मानते हुए, न्यायपालिका में आरक्षण लागू करने और भारतीय न्यायिक सेवा आयोग (IJSC) का गठन करने की मांग की। उन्होंने कहा कि यदि आईएएस, आईपीएस, और अन्य शीर्ष सेवाओं में वंचित वर्गों के लोग चयनित हो सकते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट में भी ओपन प्रतियोगिता के माध्यम से न्यायाधीश क्यों नहीं बन सकते?
यूपीएससी पैटर्न की प्रतियोगी परीक्षा द्वारा न्यायाधीशों का चयन हो-लौटनराम निषाद
— Lautan Ram Nishad (@LautanRamNish) December 1, 2024
कॉलेजियम सिस्टम के कारण उच्च न्यायपालिका में ओबीसी,एससी,एसटी का प्रतिनिधित्व नगण्य
लखनऊ।भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ.लौटनराम निषाद ने उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों का कॉलेजियम…
कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल
निषाद ने कॉलेजियम सिस्टम को "विश्व की अनोखी परंपरा" बताते हुए कहा कि यह प्रणाली उच्च न्यायपालिका में सिर्फ 3-4 सवर्ण जातियों का वर्चस्व कायम करती है। उन्होंने कहा कि अगर प्राथमिक शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों के चयन के लिए प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित की जा सकती हैं, तो उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए भी UPSC या PSC के पैटर्न पर त्रिस्तरीय न्यायिक भर्ती परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए।
समाज में व्यापक चर्चा की जरूरत
लौटनराम निषाद का यह बयान सामाजिक न्याय और न्यायपालिका में विविधता सुनिश्चित करने के मुद्दे पर गंभीर बहस की मांग करता है। उन्होंने इस विषय पर संसद में बिल पेश करने और न्यायपालिका में संरचनात्मक सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया।