संभल, उत्तर प्रदेश: मशकूर रज़ा दादा, जो अपने विवादित और सनसनीखेज़ यूट्यूब कंटेंट के लिए जाने जाते हैं, हाल ही में एक विवाद का केंद्र बन गए। घटना तब हुई जब वह संभल के डिप्टी एसपी अनुज चौधरी का इंटरव्यू लेने के लिए ज़बरदस्त दबाव बना रहे थे। अधिकारियों के मना करने के बावजूद, मशकूर ने लगातार अनुचित बयानबाज़ी करते हुए इंटरव्यू लेने की कोशिश की, जिससे मामला गंभीर हो गया।
पुलिस ने उनकी इस हरकत पर सख्त कार्रवाई की और कथित तौर पर उन्हें ऐसा "पुलिसिया इलाज" दिया, जिसकी गूंज सोशल मीडिया पर सुनाई दी। इस घटना के वीडियो और ऑडियो क्लिप्स तेजी से वायरल हो रहे हैं, जिसमें मशकूर कभी खुद को यूट्यूबर, कभी समाजसेवी, तो कभी भाजपा नेता बताते नजर आ रहे हैं।
योगी सरकार का संदेश
इस घटना को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा तेजी से फैल रहे यूट्यूबर्स और सोशल मीडिया के 'संप्रदाय' पर अंकुश लगाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। सरकारी अधिकारियों ने इसे कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए एक जरूरी कदम बताया।
"ये हैं मशकूर रज़ा दादा" "फेमस होना चाह रहे थे, इसलिए संभल के डिप्टी एसपी अनुज चौधरी का इंटरव्यू लेने के लिए बेचैन थे !!
— MANOJ SHARMA LUCKNOW UP🇮🇳🇮🇳🇮🇳 (@ManojSh28986262) December 24, 2024
मना किए जाने के बावजूद जबरन इंटरव्यू लेने के लिए बहुत सारी बातें फेंक रहे थे, अंततः इनका पुलिसिया इलाज कर दिया गया, इस तरह तेजी से फ़ैल रहे यूट्यूबर सम्प्रदाय… https://t.co/QJRstOcI1Q pic.twitter.com/YSomW9iH2a
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
हालांकि, पुलिस की इस कार्रवाई पर लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आई है। कुछ लोग इसे सही ठहराते हुए कहते हैं कि कानून को तोड़ने वालों को सबक सिखाना जरूरी है। वहीं, अन्य लोग पुलिस की 'अत्यधिक शक्ति' का दुरुपयोग बताते हुए इसे निंदनीय कह रहे हैं।
प्रेस की आज़ादी बनाम कानून का पालन
यह घटना एक बड़े मुद्दे को उजागर करती है—प्रेस की आज़ादी और कानून का पालन। विशेषज्ञों का मानना है कि सोशल मीडिया के इस युग में जिम्मेदारी से पत्रकारिता करना अनिवार्य है, लेकिन सरकारी संस्थाओं को भी संयम और कानूनी दायरे में रहकर ही कार्रवाई करनी चाहिए।
मशकूर रज़ा दादा के साथ हुई इस घटना ने यूट्यूब और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरलिटी की होड़ के पीछे छिपे खतरों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
जहां एक ओर योगी सरकार ने सोशल मीडिया के 'जिम्मेदार उपयोग' का संदेश दिया है, वहीं दूसरी ओर यह भी जरूरी है कि पुलिस और प्रशासन अपनी कार्रवाई में पारदर्शिता और न्यायसंगतता बनाए रखें। मशकूर रज़ा दादा की कहानी सिर्फ एक घटना नहीं है, बल्कि यह सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और उससे जुड़े खतरों का प्रतीक है।
आपका क्या मानना है? क्या यह कार्रवाई सही थी, या इसमें पुलिस का अत्यधिक दखल था? अपनी राय हमें जरूर बताएं।