पाकिस्तान में हिंदू राजपूतों की व्यथा: जुल्म की दास्तान या सहिष्णुता की मिसाल?

 

उमरकोट, सिंध: सोडा राजपूत समुदाय, जो पाकिस्तान और भारत के बीच बंटा हुआ है, पिछले कई वर्षों से वीजा मुद्दों के चलते अपने परिवारों से मिलने में असमर्थ है। डॉक्टर शक्ति सिंह सोडा, चार बहनों के इकलौते भाई, इसका एक ज्वलंत उदाहरण हैं। उनकी बहनों की शादियाँ राजस्थान के विभिन्न शहरों में हुई हैं, लेकिन 4 साल पहले आखिरी बार मिलने के बाद, शक्ति सिंह का भारतीय वीजा दो बार रद्द किया जा चुका है। उनके वीजा रद्द होने का कारण इंडियन एंबेसी द्वारा लगाए गए ओवरस्टे का आरोप है। शक्ति सिंह का कहना है कि उन्हें जो 6 महीने की एक्सटेंशन दी गई थी, उसी के तहत वे भारत में रहे थे, लेकिन अब यही एक्सटेंशन उनकी परेशानी का कारण बन गई है।

शक्ति सिंह ने कहा, "मैंने वीजा एक्सटेंशन का पालन किया, फिर भी मुझे ब्लैकलिस्ट कर दिया गया। मेरे रिश्ते धार्मिक नहीं, खून के रिश्ते हैं। हमें वीजा आसानी से मिलना चाहिए।" 

राजनीतिक तनाव और पारिवारिक विछोह

सोडा राजपूत समुदाय का कहना है कि सीमाएं पार करना उनके लिए मजबूरी है क्योंकि वे अपनी शादियों के लिए एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उमरकोट, पाकिस्तान का वह इलाका है जो भारत की सीमा से केवल 60 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां के सोडा राजपूतों की शादी भारत के राजस्थान के राजपूत परिवारों में होती है। चूंकि पाकिस्तान के साघर और थरपककम जिलों के राजपूत समुदायों में आपसी शादियां नहीं होतीं, इस कारण से भारतीय रिश्तेदारों से विवाह संबंध बनाए रखने के लिए उन्हें भारत जाना पड़ता है।

गणपत सिंह, जो जोधपुर में अपने परिवार से 5 साल से नहीं मिल पाए हैं, ने बताया कि 2017 में अपने भाई के बच्चों की शादी के बाद वे पाकिस्तान लौट आए थे और उसके बाद उनका वीजा ब्लॉक हो गया। पिछले साल कैंसर से जूझ रही उनकी मां ने इंडियन हाई कमीशन से ह्यूमैनिटेरियन ग्राउंड्स पर गणपत को वीजा देने की वीडियो अपील की, लेकिन उनकी मां का निधन हो गया। गणपत कहते हैं, "मैं मजबूर था, मेरी मां की आखिरी ख्वाहिश थी कि मैं उनसे मिलूं, लेकिन वीजा ना मिलने के कारण मैं उनसे नहीं मिल पाया।"

वीजा नीति में बदलाव और सोडा राजपूतों की मुश्किलें 

राजस्थान के पूर्व गवर्नर एस के सिंह ने 2007 में सोडा राजपूतों को 6 महीने की वीजा एक्सटेंशन की सुविधा दी थी। 10 वर्षों तक यह एक्सटेंशन दिल्ली की बजाय लोकल फॉरेन रेजिडेंट रजिस्ट्रेशन ऑफिस (एफआरआरओ) से मिल जाती थी। लेकिन 2014 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार आने के बाद से इन एक्सटेंशनों को अवैध मानकर कई सोडा राजपूत परिवारों को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया।

एक स्थानीय निवासी ने बताया, "अब लगभग 900 सोडा परिवारों को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है। हमें बस इतना चाहिए कि अपने परिवार से मिलने की सहूलियत हो।"

इंसानी अधिकार और अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग 

पाकिस्तान-इंडिया पीपल्स फोरम फॉर पीस एंड डेमोक्रेसी से जुड़े अनीस हारून का मानना है कि सोडा राजपूतों के वीजा ब्लॉक किए जाने का मसला एक इंसानी मुद्दा है जिसे तत्काल सुलझाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "असल झगड़ा सरकारों के बीच है, लोगों के बीच नहीं। ये एक इंसानी मसला है, और यूएन को इसमें दखल देना चाहिए।"

पाकिस्तान में सैकड़ों सोडा राजपूत परिवार बार-बार इंडियन हाई कमीशन से अपील कर रहे हैं, इस उम्मीद में कि शायद उनके रिश्तेदारों से मिलने की इजाजत मिल जाए। बीबीसी ने भी इस मुद्दे पर इंडियन हाई कमीशन और भारत के विदेश मंत्रालय से संपर्क किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

यह संकट न केवल राजनीतिक मुद्दों की वजह से परिवारों को अलग कर रहा है, बल्कि दोनों देशों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्तों पर भी गहरा असर डाल रहा है।

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