नई दिल्ली: क्षत्रिय मूलनिवासी महासंघ ने एक बार फिर विवाद खड़ा कर दिया है, इस बार उन्होंने हिंदू सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। महासंघ ने आरोप लगाया है कि भाजपा सरकार ने एक क्षत्रिय सम्राट की प्रतिमा को हटाया और इसके खिलाफ कोई भी हिंदू आवाज नहीं उठा रहा है। महासंघ के अनुसार, यह घटना क्षत्रिय इतिहास को मिटाने की कोशिश का हिस्सा है।
महासंघ के वक्तव्य में दावा किया गया है कि "क्षत्रियों के इतिहास को जानबूझकर धूमिल किया जा रहा है। हमारे पूर्वजों की धरोहरों और प्रतीकों को हटाकर उन्हें भुलाने की कोशिश की जा रही है।" इस मामले में सोशल मीडिया पर भी एक हैशटैग #क्षत्रिय_हिन्दू_नहीं चलाया गया है, जिसमें यह बताया गया है कि क्षत्रिय इतिहास को हिंदू पहचान से अलग करना चाहिए।
हिंदू सरकार मे तोड़ दी क्षत्रिय सम्राट की प्रतिमा।
— क्षत्रिय मूलनिवासी महासंघ (@kmm_bharat) October 22, 2024
की हिंदू नही बोला।
क्षत्रियों के इतिहास को मिटाया जा रहा। #क्षत्रिय_हिन्दू_नहीं
कुंभमेला यह बौद्ध उत्सव है। महाराजा हर्षवर्धन ने बौद्ध भिक्खुओ को बुलाकर बौद्ध कुंभमेला करवाते थे। भाजपा ने महाराजा हर्ष वर्धन की प्रतिमा हटाई… pic.twitter.com/coDYrxzMlA
कुंभ मेले को बताया बौद्ध उत्सव
महासंघ ने कुंभ मेले के इतिहास को लेकर भी एक नई बहस छेड़ दी है। उनका कहना है कि कुंभ मेला मूल रूप से एक बौद्ध उत्सव था, जिसे सम्राट हर्षवर्धन द्वारा आयोजित किया जाता था। "महाराजा हर्षवर्धन ने बौद्ध भिक्खुओं को बुलाकर कुंभ मेले का आयोजन करवाया था, लेकिन इसे हिंदू उत्सव के रूप में बदल दिया गया," महासंघ के प्रवक्ता ने कहा।
भाजपा पर लगाया प्रतिमा हटाने का आरोप
महासंघ ने भाजपा पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार ने महाराजा हर्षवर्धन की प्रतिमा को हटाया है, जो क्षत्रिय गौरव का प्रतीक है। महासंघ के प्रवक्ताओं ने यह भी कहा कि वे जल्द ही उस स्थान पर प्रतिमा को फिर से स्थापित करेंगे और "विदेशी ब्राह्मणों" के नाम और पुतले हटाएंगे। उनका दावा है कि भारत में विदेशी ब्राह्मणों का कोई स्थान नहीं होगा, और देश की धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए यह कदम उठाया जाएगा।
इस विवाद से राजनीतिक हलकों में चर्चा बढ़ गई है। जहां कुछ लोग क्षत्रिय महासंघ की मांगों को समर्थन दे रहे हैं, वहीं अन्य इसे सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं। भाजपा ने अभी तक इस आरोप पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस तेज हो सकती है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है और महासंघ की मांगों को कैसे संबोधित करती है।