आज के समय में जहाँ आधुनिक चिकित्सा प्रणाली विभिन्न बीमारियों के उपचार के लिए उन्नत तकनीकों का उपयोग करती है, वहीं भारत की प्राचीन चिकित्सा परंपराएँ भी अपना विशेष स्थान रखती हैं। इनमें से एक प्रमुख तत्व है गेंदे के फूल और गाय के मूत्र का संयोजन, जो कई घातक बीमारियों के इलाज के रूप में प्राचीन काल से ही उपयोग में आता रहा है।
गैंग्रीन और ओस्टियोमाइलाइटिस: प्राचीन उपचार पद्धति
गैंग्रीन और ओस्टियोमाइलाइटिस जैसी गंभीर बीमारियाँ जिनके लिए एलोपैथी में अक्सर प्रभावित अंग को काटने की सलाह दी जाती है, उनके लिए भारतीय चिकित्सा में एक विशेष उपचार बताया गया है। यह उपचार गेंदे के फूल और देशी गाय के मूत्र पर आधारित है।
गेंदे के नारंगी रंग के फूलों की पत्तियों को गाय के मूत्र में पीस कर जो चटनी बनाई जाती है, वह गैंग्रीन और ओस्टियोमाइलाइटिस जैसे घावों पर लगाने से उन्हें ठीक करने में सहायक मानी जाती है। लगातार तीन महीने तक इस चटनी को प्रभावित स्थान पर लगाने से न केवल घाव भरता है, बल्कि नई कोशिकाओं का भी निर्माण होता है।
गाय के मूत्र का स्वास्थ्य लाभ
गाय के मूत्र का भारतीय चिकित्सा पद्धति में बहुत महत्व है। इसे कई गंभीर बीमारियों का इलाज माना जाता है, जैसे कैंसर, आँखों और कानों की बीमारियाँ, छाती के रोग और अन्य अनेक गंभीर बीमारियाँ। इसी कारण से, गाय को भारतीय संस्कृति में पवित्र और मूल्यवान माना गया है।
कई किसान अपनी गायों को तब बेच देते हैं जब वे दूध देना बंद कर देती हैं। लेकिन यह सोचने वाली बात है कि गाय का मूत्र भी बहुत उपयोगी हो सकता है। पतंजलि योगपीठ द्वारा हर दिन हजारों लीटर गाय का मूत्र खरीदा जा रहा है, जो बाजार में ₹8 प्रति किलो तक बिकता है। एक गाय दिन में करीब 4 लीटर मूत्र देती है, जिससे किसान आसानी से आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
गाय का पालन केवल दूध के लिए ही नहीं, बल्कि उसके मूत्र के लिए भी किया जा सकता है, क्योंकि गाय का मूत्र कई बीमारियों के इलाज में सहायक होता है।
हर साल भारत में लाखों गायों का वध किया जाता है, जो चिंताजनक है। गायों की रक्षा और उन्हें बचाने का सबसे प्रभावी तरीका यह है कि हम किसानों को गाय के मूत्र के महत्व के बारे में जागरूक करें। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, बल्कि पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों का भी संरक्षण होगा।
सरकार द्वारा गायों के वध पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाए जाने की आवश्यकता है, लेकिन इसके अलावा, सामाजिक स्तर पर जागरूकता बढ़ाकर किसानों को गायों को बचाने की प्रेरणा दी जा सकती है।
भारत को उसकी भारतीयता की मान्यता के आधार पर पुनः खड़ा करने के प्रयास में प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों और गाय के महत्व को पहचानना एक महत्वपूर्ण कदम है। हमारी परंपराओं में छिपे ये ज्ञान न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं, बल्कि हमारी संस्कृति और समृद्ध विरासत का भी प्रतीक हैं।