पिछले साल अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बासमती चावल का भाव $917 प्रति टन था, जिसके बावजूद भारतीय किसानों को ₹3500 प्रति क्विंटल की कीमत मिल रही थी। लेकिन आज, जब अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में बासमती चावल का भाव $1037 प्रति टन हो गया है, किसानों को मात्र ₹2200 प्रति क्विंटल का ही मूल्य मिल पा रहा है। इस स्थिति से किसानों में गहरा असंतोष और हताशा है, क्योंकि सारा फायदा निजी व्यापारी उठा रहे हैं और किसान संघर्ष की स्थिति में हैं।
किसानों का कहना है कि जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बासमती के दाम बढ़ रहे हैं, तो उन्हें भी इसका लाभ मिलना चाहिए। पिछले साल की तुलना में इस साल बाजार में बासमती के दाम बढ़े हैं, लेकिन किसानों के लिए इसका उल्टा प्रभाव देखा जा रहा है। जहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमतें बढ़ी हैं, वहीं देश के किसानों को अपने उत्पाद के लिए कम दाम मिल रहे हैं। यह सीधा संकेत है कि बिचौलिए और प्राइवेट ट्रेडर इस पूरे सिस्टम का फायदा उठा रहे हैं, जबकि किसान अपने परिश्रम का सही मूल्य पाने से वंचित रह रहे हैं।
पिछले साल अंतराष्ट्रीय मार्केट में बासमती के दाम $917/टन थे तो भारत के किसानों को ₹3500/क्विंटल भाव मिला; आज अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में 1037/तन रेट है तो 2200/क्विंटल मिल रहा है; सारा फायदा प्राइवेट ट्रेडर ले रहा है
— Ramandeep Singh Mann (@ramanmann1974) September 29, 2024
मरता किसान अपनी आवाज कैसे रखे, यहां किसान बासमती फेंक रहे हैं. pic.twitter.com/T3RYKwUw69
किसानों का यह कहना है कि वे अपनी आवाज़ कैसे उठाएं, जब उनके सामने आर्थिक संकट बढ़ता जा रहा है। कई जगहों पर किसानों ने बासमती चावल फेंकने की नौबत तक आ गई है, क्योंकि उन्हें अपनी फसल का उचित दाम नहीं मिल रहा है। इस स्थिति में, सरकार और प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग उठ रही है, ताकि किसानों को उचित समर्थन मिल सके और उनके उत्पाद का उचित मूल्य तय हो सके।
इस विकट परिस्थिति में सरकार को किसानों के हित में तुरंत कदम उठाने की जरूरत है। कृषि मंडियों में पारदर्शिता लाना और प्राइवेट ट्रेडरों की मनमानी पर नियंत्रण लगाना बेहद जरूरी है। अगर यह स्थिति यूं ही बनी रही, तो किसान और अधिक आर्थिक तंगी में फंस सकते हैं और कृषि क्षेत्र में हताशा बढ़ सकती है।
किसान संगठनों ने भी मांग की है कि बासमती चावल के दामों को सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाए और एक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निर्धारित किया जाए, ताकि किसानों को उनका हक मिल सके और वे सम्मानजनक जीवन जी सकें।
अंततः, यह मुद्दा सिर्फ किसानों का नहीं, बल्कि पूरे देश की खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता से जुड़ा है। अगर किसान अपनी आवाज़ नहीं उठा पाएंगे, तो उनके भविष्य और हमारी कृषि व्यवस्था पर गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है।