प्रसिद्ध लेखक और गीतकार मनोज मुंतशिर शुक्ला ने हाल ही में यूट्यूब पर शुभंकर मिश्रा के पॉडकास्ट में अपने विचार साझा किए, जो सोशल मीडिया पर काफी चर्चा का विषय बन गए हैं। मनोज ने कहा, "मुझे अपने ब्राह्मण जींस पर गर्व है और यह गर्व होना ही चाहिए। जिस वंश और कुल में हम पैदा हुए हैं, जिस भारत की मिट्टी में जन्म लिया है, उस पर गर्व होना स्वाभाविक है।"
शुभंकर मिश्रा, जो खुद एक ब्राह्मण हैं, ने इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए मनोज से सवाल किया कि क्या किसी जाति या वंश पर गर्व करना बाकियों को छोटा महसूस कराने जैसा नहीं है। उन्होंने वर्ण व्यवस्था के विषय पर भी चर्चा की और कहा कि प्राचीन भारत में यह व्यवस्था कर्म पर आधारित थी, न कि जन्म पर। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वह इस विषय के बहुत बड़े जानकार नहीं हैं, लेकिन उन्हें ऐसा समझाया गया था।
“अगर कोई दलित बुद्धिमान है तो क्या संविधान उसको ब्राह्मण बना सकता है”
— Abhinav Mishra (@abhinav_blogger) September 29, 2024
“जब संविधान जन्म से आधार को प्रमाण मानता है, फिर ब्राह्मणों को भी अपने जन्म पर गर्व होना चाहिए।”
जबरदस्त पॉडकास्ट 👍 pic.twitter.com/6dTMYAgNDx
मनोज मुंतशिर ने इस पर जवाब देते हुए कहा, "आपका जन्म, आपकी जाति, आपके पूर्वज- ये सब आपके द्वारा चुना हुआ नहीं होता। ये हमारे भाग्य का हिस्सा होता है। जब आप अपने परिवार के नाम के साथ 'मिश्रा' या 'शुक्ला' लगाते हैं, तो यह आपके पुरखों की पहचान है। मुझे अपने परिवार और पूर्वजों पर गर्व क्यों न हो?"
उन्होंने अपने विचारों को और स्पष्ट करते हुए कहा, "ब्राह्मण जींस का देश में योगदान ऐतिहासिक है। यह गर्व उस योगदान के प्रति है, न कि किसी अन्य जाति को नीचा दिखाने के लिए।" साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि 'ब्राह्मण जींस' ट्रेंड उन्होंने नहीं चलाया था, बल्कि किसी अन्य ने शुरू किया था, जिसके बाद ट्रोलिंग शुरू हो गई थी।
मनोज ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी जाति के व्यक्ति को अपने कर्म और बुद्धिमत्ता पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि क्या संविधान के तहत जाति आधारित आरक्षण को इस प्रकार बदला जा सकता है कि व्यक्ति अपनी योग्यता और बुद्धिमत्ता के आधार पर अपनी पहचान दर्ज कर सके।
यह बातचीत सोशल मीडिया पर बड़ी तेजी से वायरल हो गई और कई लोग इस पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। जहां कुछ लोग मनोज के विचारों से सहमत हैं, वहीं अन्य लोग इसे जातिवादी सोच मानते हुए आलोचना कर रहे हैं।
अंततः यह बातचीत जाति, वंश और गर्व पर एक व्यापक चर्चा का रूप ले चुकी है, जो आज के भारत में भी एक संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है।