जम्मू-कश्मीर में आरक्षण को लेकर कांग्रेस की साजिश: पिछड़े वर्गों के अधिकारों पर बढ़ा खतरा

जम्मू, 30 सितंबर 2024 - कांग्रेस पार्टी पर दशकों से पिछड़े वर्गों के प्रति दमनकारी नीतियों का आरोप लगता आया है। चाहे इंदिरा गांधी द्वारा मंडल आयोग की सिफारिशों को दबाने का मामला हो, या फिर आज राहुल गांधी की जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) के घोषणापत्र का समर्थन, जिसमें दलितों, गुज्जरों, बकरवालों और पहाड़ी समुदायों के आरक्षण समाप्त करने की बात कही गई है, कांग्रेस का सामाजिक न्याय के मुद्दों पर रुख हमेशा सवालों के घेरे में रहा है।

कांग्रेस का घोषणापत्र और आरक्षण पर खतरा

नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के घोषणापत्र में कहा गया है कि सत्ता में आने पर वे जम्मू और कश्मीर की आरक्षण नीति की समीक्षा करेंगे। इससे जम्मू-कश्मीर के अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), और अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा मिले नए अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं। 

वाल्मीकि समुदाय के नेता घेलु राम कहते हैं, "5 अगस्त 2019 का दिन हमारे लिए एक नई शुरुआत लेकर आया था। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद, हमें सरकारी नौकरियों और अन्य अवसरों में भागीदारी मिली, जो पहले कभी संभव नहीं था।" अब कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का घोषणापत्र इन उपलब्धियों को पलट सकता है, जिससे इन समुदायों को फिर से अधिकारों से वंचित किया जा सकता है।

सामाजिक न्याय के प्रति कांग्रेस का विरोध: इतिहास की पड़ताल

कांग्रेस का पिछड़े वर्गों और दलितों के अधिकारों के प्रति नकारात्मक रुख कोई नई बात नहीं है। पार्टी के इतिहास में नेहरू और अंबेडकर के बीच मतभेद से लेकर इंदिरा गांधी के समय मंडल आयोग की सिफारिशों को दबाने तक कई उदाहरण मौजूद हैं। 1952 और 1954 के चुनावों में पंडित नेहरू ने व्यक्तिगत रूप से डॉ. अंबेडकर के खिलाफ प्रचार किया था, और बाद में काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट को भी ठुकरा दिया था।  

इंदिरा गांधी ने भी मंडल आयोग की सिफारिशों को नजरअंदाज किया, जिसमें OBC के लिए आरक्षण की सिफारिश की गई थी। राजीव गांधी ने भी 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों के खिलाफ अपना विरोध जताते हुए कहा था कि इससे कामकाज की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह कांग्रेस की पिछड़े वर्गों के प्रति नीति को उजागर करता है।

अनुच्छेद 370 और आरक्षण पर मंडराता खतरा

2019 में जब अनुच्छेद 370 हटाया गया, तब जम्मू-कश्मीर के वाल्मीकि, गुज्जर-बकरवाल और पहाड़ी समुदायों को एक नई उम्मीद मिली थी। इन समुदायों को सरकारी नौकरियों और अन्य अवसरों में भागीदारी का मौका मिला। 26 वर्षीय अनीता कुमारी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के घोषणापत्र को लेकर कहा, "अगर अनुच्छेद 370 को फिर से लागू किया गया, तो हमारी पूरी प्रगति ध्वस्त हो जाएगी। यह हमारे समुदायों के लिए एक बड़ी बाधा होगी।"

राहुल गांधी की चुप्पी और कांग्रेस की मंशा

राहुल गांधी, जो खुद को संवैधानिक मूल्यों का संरक्षक बताते हैं, आरक्षण के मुद्दे पर खामोश हैं। उनकी यह चुप्पी कांग्रेस की असल मंशा पर सवाल खड़े करती है। कांग्रेस के इतिहास को देखते हुए यह कोई नई बात नहीं है कि पार्टी ने अतीत में भी दलित और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के खिलाफ काम किया है।

2024 के चुनाव: एक निर्णायक मोड़

जम्मू-कश्मीर में 2024 के चुनाव वाल्मीकि, गुज्जर-बकरवाल और अन्य पिछड़े समुदायों के अधिकारों के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के घोषणापत्र से इन समुदायों को फिर से कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। यह केवल एक राजनीतिक लड़ाई नहीं है, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई है, जो इन वंचित समुदायों के भविष्य को तय करेगी।

कांग्रेस पार्टी की नीतियों और इतिहास को देखते हुए यह सवाल बना रहता है कि क्या पार्टी पिछड़े और दलित वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए वास्तविक प्रतिबद्धता दिखा पाएगी, या फिर उनका संघर्ष बदस्तूर जारी रहेगा।

Rangin Duniya

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