सावन का महीना हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व रखता है। इस पवित्र महीने में भक्तगण भगवान शिव की उपासना करते हैं और विभिन्न व्रत-त्योहारों का पालन करते हैं। श्रावण पूर्णिमा भी इसी माह के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे श्रद्धालु बड़े उत्साह और भक्तिभाव के साथ मनाते हैं।
श्रावण पूर्णिमा व्रत का महत्त्व
श्रावण पूर्णिमा का व्रत विशेष महत्त्व रखता है क्योंकि यह दिन गुरु पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन भक्त अपने गुरु की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस व्रत को करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में शांति और समृद्धि का वास होता है। इसके साथ ही, यह व्रत भगवान विष्णु और शिव दोनों को समर्पित होता है, जिससे भक्तों को दोनों देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।
व्रत की विधि
श्रावण पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद घर के पूजा स्थल को गंगा जल से शुद्ध करें और भगवान शिव एवं विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं। श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना करें और व्रत का संकल्प लें।
पूजा में विशेष रूप से पंचामृत, फल, फूल, चंदन, धूप-दीप आदि का उपयोग करें। इस दिन गुरु पूजन का भी विशेष महत्त्व है, इसलिए अपने गुरु की तस्वीर या चरण पादुका के सामने पुष्प अर्पित करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। दिनभर व्रत रखें और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें।
स्नान-दान का महत्त्व
श्रावण पूर्णिमा के दिन स्नान-दान का विशेष महत्त्व होता है। इस दिन गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यदि यह संभव न हो तो घर में गंगा जल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद दान का विशेष महत्त्व है। वस्त्र, अनाज, फल, दूध आदि का दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।
शुभ मुहूर्त
श्रावण पूर्णिमा के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक का है। इस दौरान पूजा और व्रत करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार, श्रावण पूर्णिमा का व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आत्मशुद्धि और अध्यात्मिक उन्नति का भी एक प्रमुख साधन है। इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने से जीवन में सकारात्मकता और शांति का अनुभव होता है।