आंध्र प्रदेश एक अनोखी स्थिति में है। 2014 में तेलंगाना के गठन के बाद से, यह राज्य बिना राजधानी के काम कर रहा है। इसका कारण है राजनीतिक और प्रशासनिक निर्णयों में अस्थिरता।
हैदराबाद: अस्थायी राजधानी:
शुरुआत में, हैदराबाद को 10 साल की अवधि के लिए दोनों राज्यों की साझा राजधानी घोषित किया गया था। लेकिन, 2014 में ही, आंध्र प्रदेश के नेतृत्व ने वेलागापुडी में एक अस्थायी कार्यालय स्थापित करने का फैसला किया, जबकि वे अपनी स्थायी राजधानी का निर्माण करते हैं।
अमरावती: नियोजित राजधानी:
2015 में, तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अमरावती को राज्य की राजधानी घोषित किया। उन्होंने "विश्व स्तरीय" शहर बनाने के लिए 51,000 करोड़ रुपये की योजना बनाई। लेकिन, 2019 में, वाईएस जगन मोहन रेड्डी के सत्ता में आने के बाद इस परियोजना को रोक दिया गया।
तीन राजधानी का प्रस्ताव:
रेड्डी ने "तीन राजधानी" मॉडल का प्रस्ताव रखा, जिसमें कार्यकारी, विधायी और न्यायिक राजधानी अलग-अलग शहरों में होंगे। हालांकि, यह योजना कानूनी चुनौतियों का सामना कर रही है।
वापसी और नया वादा:
2024 में, नायडू ने फिर से सत्ता हासिल की और अमरावती को ही राजधानी घोषित किया। उन्होंने विशाखापत्तनम को आर्थिक राजधानी बनाने का भी वादा किया। इस बार, उन्होंने "अमरावती - लोगों की राजधानी" नामक एक श्वेत पत्र जारी किया और केंद्र से सहायता मांगी।
केंद्र का समर्थन:
केंद्र सरकार ने राज्य को ₹ 2,500 करोड़ की मंजूरी दी है और भूमि अधिग्रहण के लिए कर छूट प्रदान की है।
आंध्र प्रदेश अपनी राजधानी के लिए अभी भी संघर्ष कर रहा है। अमरावती के पुनर्निर्माण में कई बाधाएं हैं, लेकिन नायडू इस परियोजना को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।