छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम सुनते ही एक वीर योद्धा की छवि सामने आती है, जिसने अपने अदम्य साहस और संगठन कौशल से मराठा साम्राज्य की स्थापना की। आज, उन्हें अक्सर हिंदुत्व के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो हिंदू धर्म की रक्षा के लिए लड़े। लेकिन क्या वास्तव में शिवाजी महाराज हिंदुत्व की लड़ाई लड़ रहे थे? और यदि ऐसा था, तो फिर औरंगजेब की सेना में ब्राह्मण सैनिक क्या कर रहे थे?
शिवाजी महाराज का संघर्ष, मुख्यतः राजनीतिक और प्रशासनिक था। उनका उद्देश्य एक स्वतंत्र और सक्षम राज्य की स्थापना करना था, जिसमें जनता की भलाई और न्याय सुनिश्चित हो। वे धर्म के आधार पर अपनी नीतियाँ नहीं बनाते थे, बल्कि योग्यता और वफादारी को महत्व देते थे। उनकी सेना में हिन्दू, मुस्लिम, मराठा, और अन्य जातियों के लोग शामिल थे। शिवाजी के बारे में यह कहना कि वे हिंदुत्व के लिए लड़ रहे थे, ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना है।
शिवाजी महाराज की धर्मनिरपेक्ष नीतियाँ
शिवाजी महाराज की सेना में अनेक मुस्लिम सैनिक और अधिकारी थे। उनके प्रमुख सेनापति, सिद्दी इब्राहिम खान, जो एक मुस्लिम थे, उनकी नीतियों और संगठन के प्रति वफादार थे। शिवाजी की न्याय प्रणाली भी धर्मनिरपेक्ष थी। वे अपने राज्य में सभी धर्मों का सम्मान करते थे और धार्मिक भेदभाव को प्रोत्साहन नहीं देते थे। उनकी नीतियाँ उनके समर्पण और राज्य की स्थिरता को दर्शाती हैं, न कि किसी विशेष धर्म की रक्षा के लिए।
आज हमें बताया जाता है कि शिवाजी महाराज हिंदुत्व के लिए लड़ रहे थे
— Bhanu Nand (@BhanuNand) July 16, 2024
यह सुनते ही छत्रपति शिवाजी महाराज के करोड़ अनुयाई आंख बंद करके हिंदुत्व के पीछे भागने लग जाते हैं ,हिंदू मुस्लिम करने लग जाते हैं,
जबकि सच्चाई से यह बिल्कुल उलट है, छत्रपति शिवाजी महाराज कोई हिंदुत्व की लड़ाई… pic.twitter.com/NvktSIYEjJ
औरंगजेब की सेना में ब्राह्मण सैनिक
अगर हम यह मानें कि शिवाजी महाराज हिंदुत्व की लड़ाई लड़ रहे थे, तो यह सवाल उठता है कि औरंगजेब की सेना में ब्राह्मण सैनिक क्यों थे? इतिहासकार दयाराम अपनी पुस्तक में लिखते हैं, "राजतिलक से पूर्व छत्रपति शिवाजी महाराज के हाथों औरंगजेब की सेना के कई ब्राह्मण सैनिक मारे गए।" यह तथ्य इस बात का प्रमाण है कि उस समय के युद्ध और संघर्ष धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि राजनीतिक और प्रशासनिक कारणों से होते थे। ब्राह्मण सैनिक, जो औरंगजेब की सेना में थे, अपनी वफादारी और पेशेवर जिम्मेदारियों के कारण वहाँ थे, न कि किसी धार्मिक उद्देश्य के लिए।
राजनीतिक प्रोपेगैंडा और सच्चाई
आज, कुछ राजनीतिक दल और नेता शिवाजी महाराज की विरासत का उपयोग अपने स्वार्थी उद्देश्यों के लिए करते हैं। वे लोगों के मन में हिंदू-मुस्लिम विभाजन को बढ़ावा देकर वोट बैंक की राजनीति करते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को धार्मिक आधार पर बाँटकर अपनी सत्ता को मजबूत करना होता है। यह समाज में भ्रम और अस्थिरता फैलाने का एक तरीका है। सच्चाई यह है कि शिवाजी महाराज का संघर्ष एक धर्मनिरपेक्ष और न्यायपूर्ण राज्य की स्थापना के लिए था।
छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत को सही परिप्रेक्ष्य में समझना आवश्यक है। वे एक महान योद्धा और कुशल प्रशासक थे, जिनकी नीतियाँ और आदर्श आज भी प्रेरणादायक हैं। उनका संघर्ष किसी विशेष धर्म के लिए नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र और न्यायपूर्ण राज्य की स्थापना के लिए था। हमें उनके जीवन और कार्यों से प्रेरणा लेकर एक धर्मनिरपेक्ष और समावेशी समाज की स्थापना के लिए काम करना चाहिए, न कि धार्मिक विभाजन को बढ़ावा देना चाहिए।
शिवाजी महाराज की महानता को धर्म के संकुचित दायरे में बाँधना उनकी विरासत के साथ अन्याय होगा। हमें उनकी नीतियों और आदर्शों को समझकर उनका सम्मान करना चाहिए और समाज में शांति और समृद्धि के लिए काम करना चाहिए।